प्रकृति है जग का आधार
जैवमण्डल पर करती कृपा अपार
पहाड़ नदियाँ, वन-उपवन हैं
शान प्रकृति की जग में
पशु-पक्षी और मानव की भी
साँस बसी है इस पग में!
प्रकृति जगजननी है और सुंदरता की मूरत है
तुझे देखकर जी उठी मैं, कितनी प्यारी सूरत है
रंग-बिरंगी दुनिया में चहचहाती, लहराती है
नित नई ऊषा की छटा पर मुस्काती तू जाती है
तू वायु है, तू जल है, तू धरती, तू ही आकाश
तू ही अग्नि और जननी भी
तू ही है मेरा आवास
तू हँसती है, तू गाती है और तू इठलाती है
दानव-दल की चपेट में आकर तू रोती- चिल्लाती भी है
तेरे अश्रु देखकर मैं हो जाती हूं भाव-विभोर
प्रकृति प्राणरक्षा के खातिर मैं भी चिल्लाती हूँ जोर-जोर
हे! माँ तूने निरन्तर निस्वार्थ सभी का हित किया
मिटने न देंगे अस्तित्व तुम्हारा हमने मिलकर ये प्रण लिया।