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घूमने-फिरने का टारगेट

3 अप्रैल 2023

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सा ल-छह महीने बाद बंदा घूमने जाता है तो सोचता है कि कुछ दिन रिलेक्स करेगा, अच्छी पुस्तकें पढ़ेगा, योग करेगा, हलका खाना खा- एगा, चेहरे पर चमक और जीवन के लिए एक नई अंतर्दृष्टि लेकर लौटेगा। मगर एक हफ्ते में 17 पैकेट मैगी खाने के बाद वह डेढ़ किलो एक्सट्रा वजन और ढेर सारा गिल्ट लेकर घर लौटता है।

घर पर रोटी पर जरा सा घी लगा दिए जाने पर गुस्से में हवाई फायर कर देनेवाला बंदा बाहर जाकर इस बात पर लड़ रहा होता है कि आलू के परांठे के साथ अचार और दही तो ठीक है, मगर मक्खन क्या संजीव कपूर आकर लगाएगा?

घर पर चाय में चीनी का एक भी दाना डल जाने पर खानदानी तलवार निकाल लेनेवाला शख्स भी घूमने जाने पर हर दो घंटे में आइसक्रीम के बूस्टर डोज ले रहा होता है। सुबह-शाम गुनगुने पानी से जलनेति करनेवाला बंदा भी पहाड़ों पर दारू के छींटे मारकर अपनी नींद खोल रहा होता है।

आप थोड़े सुकून के लिए शहर से 30 किलोमीटर दूर किसी होम स्टे में रुककर खुद को फाह्यान की छोटी बुआ का लड़का समझ रहे होते हैं, लेकिन वहाँ घूम रहा एक ट्रैवल एजेंट आपको बताता है कि सर, आप लोग यहाँ क्या कर रहे हैं... 'असली पॉइंट' तो आगे है।

यह वह आदमी है, जिसने माउंट एवरेस्ट पर सबसे पहले पहुँचने का जश्न मना रहे एडमंड हिलेरी की पीठ पर मुक्का मारकर उसे बताया

था कि भाई, इतना खुश क्यों हो रहा है... असली पॉइंट तो आगे है। इसे स्वर्ग के दरवाजे पर भी खड़ा कर दिया जाए तो ये अपने 500 रुपए

बनाने के लिए लोगों को यह कहकर कहीं और ले जाए कि स्वर्ग तो कुछ भी नहीं, असली पॉइंट तो आगे है!

वह आपको पहाड़ों पर 5 किलोमीटर ट्रैकिंग की सलाह दे रहा है और आपकी फिटनेस का आलम यह है कि सुबह नहाने के बाद जोर से तौलिया रगड़ लेने पर आपकी साँस फूल गई थी। वह ट्रैकिंग पर जाने का आप पर ऐसा दबाव बनाता है कि लगता है कि इसे 'न' कह दी तो यह तो आपको खच्चर से बाँधकर उसी पहाड़ की चोटी से नीचे गिरा देगा। और अगले दिन अखबार में खबर छपेगी...पहाड़ से गिरने पर खच्चर और गधे की हुई मौत!

आप ऑफिस के टारगेट का पीछा छुड़ाकर यहाँ आए थे और यह बंदा आते ही आपको दो दिन में 12 पॉइंट घूमने का टारगेट दे रहा है। आप बड़ा घर और बड़ी गाड़ी न होने का गिल्ट भुलाने यहाँ आए हैं और ये आते ही 'ये 12 पॉइंट घूमे बिना चले गए तो... की बात बोलकर आपके गिल्ट बुफे में एक और डिश एक कर रहा है।

इन सारे दबावों के आगे सरेंडर कर आप फाइनली लोकल टूर करने का प्लान बनाते हैं, मगर जो ड्राइवर आपको घुमाने निकलता है, वह इस बात का खासा खयाल रखता है कि आप कहीं भी 10 मिनट से ज्यादा रुककर पहाड़ों की साफ हवा अपने फेफड़ों में न भर लें।

दो मिनट से ज्यादा नदी किनारे रुकने पर वह आपको ऐसे टोकता है कि जैसे आप बालटी में पानी भरकर घर ले जा रहे हों। जहाँ कहीं भी आप थोड़ा रुकने की सोचें, वह आपको बताता है कि 'असली' पॉइंट तो आगे है।

आपको 'नकली' पॉइंट भी अच्छा लग रहा होता है, मगर असली पॉइंट मिस न कर दें, इस दहशत में आप उछलकर फिर से गाड़ी में बैठ जाते हैं। डाइवर दाएँ से बाएँ, बाएँ से दाएँ तेज-तेज गाडी घमाता जा रहा है। आपको चक्कर आ रहे हैं।

शेयरिंग टैक्सी में बैठी सवारियाँ उलटियों के चक्रवात बरसाने लगी हैं। बच्चों ने कोरस में रो-रोकर गाड़ी की छत हिला दी है। एक अंकल कोई चायवाला दिखे तो साइड में रोक लेना' की मार्मिक अपील कर रहे हैं।

पूरी गाड़ी में हाहाकार मचा है। नकली पॉइंट निकल चुका है। असली पॉइंट आ नहीं रहा। सूरज डूबता जा रहा है। माहौल में तनाव कॉलेज की इकलौती सुंदर कन्या के नखरों से ज्यादा बढ़ चुका है। दिमाग की नस थुलथुल आदमी की शर्ट के नाभिवाले बटन की तरह कभी भी फट

सकती है। फ्रस्ट्रेशन

गुस्से का सातवाँ आसमान पार कर चुकी है।

आपको लगने लगता है कि मैं पहाड़ों में घूमने नहीं आया, बल्कि तोरा-बोरा टाइप पहाड़ियों में अयमान अल जवाहिरी को ढूँढ़ने आया हूँ और पहचान के लिए आपके पास फोटो नहीं, बल्कि उसकी जाँघ का बाल है।

और ठीक इसी वक्त... बिल्कुल इसी वक्त बीवी ऐसी बात कहती है, जो उसे बीवी बनाती है। आपकी छाती पर घुटना रख वह याद दिलाती है कि मैंने तो पहले ही कहा था, पहाड़ों पर नहीं जाते... मुझे उलटी आती है! वह उलटी आने की बात कर रही है और आप सोचते हैं कि है

परवरदिगारा यह औरत हमेशा उलटी बात ही क्यों करती है!

अगले दो-तीन दिन आप यूँ ही एक के बाद एक पॉइंट पहाड़ों का सिलेबस' मानकर कवर करते जाते हैं। चार दिन, 10 जीबी डाटा और हजारों रुपए पहाड़ों के हवा-पानी में पानी की तरह बहा आने के बाद फाइनली जब घर लौटते हैं तो आपको देखकर हर कोई यही कहता

है... बड़े थके हुए लग रहे हैं दुग्गल साहब, कुछ दिन पहाड़ों पर क्यों नहीं घूम आते!

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रचनाएँ
बातें कम स्कैम (Scam) ज्यादा
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लोगो के पूर्व में दिए हुए प्यार, स्नेह और ऊर्जा को आधार बनाकर एक बार फिर कुछ रचनाएँ आपके हवाले कर रहा हूँ। रचनाएँ अच्छी बनी हैं या बुरी, ये तो पाठक ही तय करेंगे, मगर इतना जरूर कह सकता हूँ कि इन्हें लिखने, सुधारने और सँवारने में मैंने अपना सबकुछ झोंक दिया है। अगर विषय हल्का-फुल्का है तो इस बात का तनाव नहीं लिया कि कैसे इस लेख से मानवजाति को कोई बड़ा संदेश दिया जाए और विषय गंभीर है, तो सहज ही वहाँ हास्य के बजाय व्यंग्य प्रधान हो गया। लेकिन इतनी कोशिश जरूर रही कि गंभीर व्यंग्य रचनाएँ भी विट से अछूती न रहें वरना वे बोझिल हो जाती हैं। मेरा मानना है कि अच्छा हास्य-व्यंग्य कभी उपदेश का चोला पहनकर नहीं आता। वो आपको हमेशा सही-गलत पर ज्ञा न नहीं देता। वो हरदम गिरते नैतिक मूल्यों की बात कर मनहूस शक्ल बनाए नहीं बैठता। वो एक हँसमुख दोस्त की तरह आता है। खूब हँसी-मजाक करता है। माहौल को हल्का करता है और जाते-जाते कुछ ऐसा कह जाता है कि आप रुककर उस पर विचार करने लगें। यह पहाड़ों की धार्मिक यात्रा की तरह है, जो आपको घूमने का आनंद तो देती ही है, साथ ही यह गर्व भी दे जाती है कि आपकी यात्रा का एक पवित्र मकसद है। ऐसी यात्रा जहाँ पवित्रता अंतिम गंतव्य है, लेकिन सफर मजे से भरा हुआ है।

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