तृषा जगी
धरती की प्यासे हैं कूप
छज्जों पर नाच रही सोने सी धूप
गर्मी के दिन थोड़ी नरमी के दिन
आ गए सूर्य की,
ढिठाई के दिन
ठिलियों पर
बैठ गये आम्रफल रसीले
ढेर लगे जामुन के, महकते कलींदे
चटपटे अचारों, गुल्कंदों के दिन
जलजीरा शर्बत
सतुआई के दिन
छोड़ कर
किताबें हँसी गाँव भागी
तारों की गफलिया सुबह तलक जागी
भरे मर्तबान कुछ कहानी के दिन
अलसाई भोर
अमराई के दिन
नीम नीम
निखरा दुपहरी का रूप
नानी की तरुणाई फटक रही सूप
दहके पलाश की जवानी के दिन
बूढ़े बरगद की
अँगड़ाई के दिन