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हीन मानसिकता और मानव

10 मई 2022

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भारतीय संस्कृति में वेदों के आधार पर मनुष्य को चार वर्णों में बांटा गया है। प्रथम ब्राह्मण,वैश्य, क्षत्रिय और शुद्र
इस वर्ण व्यवस्था का वर्गीकरण मनुष्य ने उनके काम के आधार पर किया है।
ब्राह्मण:- वेदों का अध्धयन करना एवं पूजा-पाठ एवं यज्ञ हवन आदि करना।
वैश्य:-व्यापार करना एवं उत्पादन की चीजों का आयात निर्यात करना।
क्षत्रिय-युद्धों में सैनिक के रुप में कार्य करना एवं तात्कालिक राज्य की सरकार की रक्षा और सुरक्षा के लिए कार्य करना।
शुद्र:- उपरोक्त तीनों वर्गों की सेवा करना
शुद्र वर्ण इस वर्ण व्यवस्था में सबसे निचले पायदान पर था और इस समय भी इस वर्ण व्यवस्था के आधार पर कार्य किये जाते हैं।
मनुष्य को कार्यों के आधार पर वर्णों में विभक्त करना क्या उचित लगता है। यदि उनको बांट दिया गया हो तो उनके आधार पर उनके साथ भेदभाव करना कहां तक उचित है। यह इस देश के बुद्धिजीवी वर्ग की सोच के ऊपर निर्भर है।
यदि किसी परिवार में एक ही पुत्र के चार बेटे हैं और उन चारों के काम-काम अलग है एक भारतीय प्रशासनिक सेवा में अधिकारी हो और एक चपरासी के पद पर कार्यरत हो तो उनके साथ छुआछूत और भेदभाव करना कहां तक उचित रहेगा। क्या यह उचित व्यवहार है जिसमें एक ही पुत्र के चार बेटों को काम के आधार पर इतनी असमानता झेलनी पड़े कि वह अपने आप को हीन समझने लगे।
एक सच्चे मनुष्यत्व की उचित पहचान क्या है। मनुष्य मनुष्य में भेद पैदा करना या मनुष्य के जीवन में प्रेम, बंधुत्व और सद्भावना के साथ जीना।
यह बात उस मनुष्य की मानसिकता पर निर्भर करता है कुछ लोग अपने आप को श्रेष्ठ साबित करने के लिए किसी भी हद तक जाकर मनुष्यत्व विहीन हो जाते हैं। उनके अंदर मानवतावादी दृष्टिकोण हीन हो जाती है। जिससे वे एक मनुष्य के भेदभाव और छूआछूत का व्यवहार अपनाकर मानवता को खतरे में डालने से बिलकुल नहीं चूकते हैं।
यह मनुष्य के अस्तित्व और उसकी प्रतिष्ठा की जरूरत बन जाती है।
ऐसे ही भेदभावपूर्ण रवैये के कारण एक गांव में इतना अधिक संघर्ष हो गया की इस भेदभाव की आग में एक निर्दोष जिंदगी की मौत हो गई।
उस समय में गांव में रहने वाली हर जाती के लोगों के पास पानी पीने के लिए अलग-अलग कुएं होते थे। उनके अलग-अलग शमशान घाट और विद्यालयों में बैठने के लिए खुले-खुले स्थान होते थे।
बड़ी जातियों के लोग छोटी जातियों के लोगों से मेहनत मजदूरी करवाकर उन्हें खाने के लिए अनाज और कुछ रूपये दे देते थे। इनके पास अपने पूर्वजों की कुछ जमीनें होती थी। उन पर अपना गुजर बसर कर लिया करते थे। कोई भी व्यक्ति साधन सम्पन्न नहीं होता था। बड़ी जातियों के घरों में पक्के मकान होते थे। लेकिन इनके घरों में पक्के मकानों की संख्या बहुत कम होती थी।
ये लोग अपनी रोजी-रोटी के लिए सारे दिन मेहनत करने से नहीं थकते थे। फिर भी कुछ लोगों को समय से रोटी नहीं मिलती थी।
नीचे जाति का ठप्पा इनके माथे पर लगा रखा था। खेतों का सारा काम करने के बावजूद भी इनके हाथ से निकले हुए अनाज को खाने का कोई सवाल ही नहीं उठता था। लोगों की विकृत मानसिकता उनके स्वाभिमान को ऊंचा उठाने के लिए जरूरी थी।
हालांकि निम्न जाति के लोगों से कुंआ खुदवाकर उनसे पानी पिया जाता था। लेकिन नये कुंए से कभी भी पानी नहीं पिया जाता था। इस कुएं को महीनों भर बाद ही प्रयोग में लाया जाता था।
निम्न जाति के लोगों को उच्च जाति के लोग घरों में नहीं घुसने देते थे। यदि उन्हें कुछ काम होता था तो बाहर से दूर रहकर बात की जाती थी। समाजिक भेदभाव गहरी जड जमाये हुए था।
निम्न जातियों के लोगों का प्रवेश मंदिरों में अवरूद्ध था हालांकि इस समय भी इस तरह का प्रचलन गांवों में देखा जाता है क्योंकि मनुष्य के जीवन को उसके काम के आधार पर पवित्र और अपवित्र या शुद्ध अशुद्ध माना जाता है।
चाहे उच्च लोगों के द्वारा कितने ही गलत और असामाजिक काम क्यों ना कर दिये जाये। कुछ लोगों की मानसिकता इतनी हीन थी कि कमजोर लोगों का मारने का बहाना ढूंढ़ते रहते थे। समय निकलता जा रहा था । देश को आजाद हुए और संविधान को लागू हुए चार दशक बीत चुके थे लेकिन अभी भी लोगों के मन में इतनी गन्दी मानसिकता भरी पड़ी थी। लोगों की हीन दृष्टि मानव के लिए खतरा बनी हुई थी।
लोग अभी संविधान से अनभिज्ञ थे और अपने हक और अधिकारों के लिए लड़ने के लिए जूझ रहे थे। यह बहुत ही विडम्बना थी लोगों में आज भी अपने हक और अधिकारों के प्रति जागरूकता नहीं आ पाई थी।
सामाजिक मतभेद अब भी बहुत बुरी तरह फैले हुए थे । लोगों को प्रताड़ित करना इस समय भी बंद नहीं हो पाया था।  इस बात से मन में गहरा असंतोष हो उठता था कि लोगों का रूख शिक्षा के प्रति क्यों नहीं मुड़ पाया। या तो उनके लिए शिक्षा का महत्व पता नहीं था या लोग एकमात्र नौकरी को ही शिक्षा प्राप्त करने का साधन मानते थे। आज भी इस हकीकत को बयान करने में बहुत बड़ा दुख होता है कि लोग आज भी अपने अधिकारों को प्रयोग करने का महत्व समझ नहीं पा रहे हैं।
"यही विडम्बना है इस समाज की" मनुष्य मनुष्य में भेदभाव और छुआछूत की बीमारी एक ख़तरनाक बीमारी थी जिससे एक वर्ग विशेष बुरी तरह प्रभावित था।
इस बीमारी के कारण ही उस वर्ग को अंधविश्वास और पाखंडवाद की आंधी में फंसना पड़ा और वह समाज शिक्षा के प्रभाव से वंचित रह गया या आंशिक रूप से ही लाभ उठा सका।
गांव की सुंदरता और उसके चारों तरफ का वातावरण बहुत ही आकर्षक था। लेकिन वहां की हवा में छुआछूत और जांत पाति का जहर घुला हुआ था जो लोगों के फेफड़ों को गंदी मानसिकता का संक्रमण दे चुका था। इस संक्रमण से प्रभावित होकर भी समाज का एक वर्ग शोषण और अत्याचारों के इलाज के बिना अपनी दम तोड रहा था।
हर मौसम में यहां के वातावरण का मिजाज अलग ही होता था। हर जाति के लोग अपनी जाति के समूह के आधार पर दूर-दूर बसे हुए थे। लोग आपस में एक दूसरे के कार्यक्रमों में हिस्सा नहीं लेते थे। दोनों पास-पास रहते हुए भी एक-दूसरे से काफी दूर थे।
पानी के कुओं पर भी अपनी-अपनी जाति का नाम लिखा हुआ था। शोषित लोगों के कुओं के साथ भी बहुत भेदभाव किया जाता था। कुंओं का घाट फूटफूटकर रोता था क्योंकि इसके किनारे पर शोषक लोगों का कचरा डाला जाता था।
कुछ गंदी मानसिकता के लोग अपने दिल की खुशी को जाहिर करने से नहीं चूकते थे। ये लोग कभी-कभी पानी के कुओं में मरे हुए जानवरों को भी डाल देते थे। लेकिन जब तक इसका पता चलता पानी के अंदर जमा कीचड़ अपने अंदर दबाकर हीनता के शिकारियों की सच्चाई को छुपा लेता था।
कभी-कभी कुएं का पानी खत्म हो जाने पर बड़े लोगों के कुओं से पानी नहीं ला सकते थे। यहां घडे लेकर घंटों तक इंतजार किया जाता था। जब तक उनकी कोई स्त्री आकर कुएं से पानी निकालकर नहीं देती आंखें उस बस्ती की तरफ राह देखती रहती थी।
कहते हैं कि ईश्वर सभी के लिए समान है लेकिन इन लोगों को उम्मीद करना बहुत दूर था क्योंकि ये उस मंदिर के पास से चले जाने पर भी मंदिर का भगवान अपवित्र हो जाता था। इनके लिए मंदिर की मुर्तियां देखना भी उनकी आंखों में खटकने लगता था।
उनकी नजर में कोई इस तरह की हरकतें करते पकड़ा जाता तो उसे बुरी तरह मारा जाता था। उसके समाज के लोग उसका दोष बताकर उसे चुपचाप अपने घर में बिठा लेते थे लेकिन उनकी हिम्मत नहीं कि वे उनका विरोध कर सके।
लेकिन मन की आंकाक्षाओं ने मनुष्य को उड़ान दी है। ये लोग भी अपने मन पाठ-पूजा करने की उम्मीदें करते थे। इसलिए इन्होंने अपने पूर्वजों को ही देवता बनाकर मंदिर स्थापित करना शुरू कर दिया। अपने समाज के कुछ संत लोगों को इन्होंने अपना भगवान मिनट लिया था।
ये वे लोग थे जो चोरी छिपे गांव छोड़कर दूर जंगलों में बसेरा बनाकर पूजा भक्ति में लीन होकर वेदों की कुछ चुनिंदा बातों को जान चुके थे। उसकी वजह से इन्हें संत महात्मा या ज्ञानी पुरुष कहां जाता था। उस समय के वातावरण में उस समाज का यह बुद्धिजीवी वर्ग की श्रेणी में आता था। लेकिन समय के साथ ही इनके कार्य और चरित्र बदलते गये और सच्चे साधु समाज के ढोंगी और पाखंडी बाबाओं के रुप में आने लगे।
" मनुष्य को उस भगवान के पास जाने की आवश्यकता क्यों होती है जो उसे नीच और हीन समझता है। मनुष्य के हर रूप में भगवान होता है।"
उन लोगों की आशाये उनकी उम्मीदों से बहुत परे थी।
समय के साथ समय का परिवर्तन होता जा रहा था। लोगों के अंदर जागरूकता पैदा हो रही थी और उच्च जाति के लोगों के बीच भी शिक्षित वर्ग पैदा हो रहा था। इसलिए समाज में थोड़ा परिवर्तन होने लगा था।
इस दुनिया में हर मनुष्य समान होता है,और हर मनुष्य के पास समान बुद्धि होती है। इस बुद्धि का विकास वहां के वातावरण के ऊपर निर्भर करता है। लेकिन किसी भी मनुष्य में हर संवेदना उपस्थित रहती है। चाहे अच्छी हो या बुरी।
लेकिन दबे कुचले और हीन समझे जाने वाले लोग अपना गुस्सा अपने जीवन की सुरक्षा के लिए दबाकर बैठ जाते हैं। यह उनके सोच से परे है। उन्हें अपनी जाति के कारण लहु के घूंट पीकर जिंदगी को नर्क की तरह जीने को मजबूर होना पड़ता है।
यही हालत इन लोगों की हो रखी थी। लोग अपनी मजबूरी में मजबूर थे। वे किसी भी हालत म जिंदगी और समाज के लिए खतरा मोल नहीं लेना चाहते थे इसलिए वे अपने खुशियों में जहर घोलकर नही जीना चाहते थे।
यह समय का परिवर्तन मनुष्य के जीवन को बहुत बदल देता है। गांवों में धीरे-धीरे कुओं का जल खत्म होने लगा। जब जल खत्म होने लगा तो सरकार ने नलकूपों की की व्यवस्था शुरू की। गांव-गांव में हैंडपंप लगाए जाने लगे लेकिन हैंडपंप ज्यादा दिन चल नहीं पाये। प्रारंभ में नलकूपों पर एक जातिविशेष के लोगों का ही कब्जा था लेकिन धीरे-धीरे उस हैंडपंप की खराबी के समय में इन लोगों ने नलकूपों  पर पानी  लेने जाना शुरू कर दिया।
कुछ समय तक निम्न जाति के लोगों ने उनकी दया पर ही पानी पीना उचित समझा क्योंकि उनकी परिस्थिति उन्हें बोलने की गवाह नहीं देती थी।
उन्हें पानी मांगने के लिए भी उनके बच्चों की दया पर निर्भर रहना पड़ता था कभी-कभी भीड़ में लोगों को इतना डराया-धमकाया जाता कि बेचारे खाली घडा लेकर वापस आ जाते थे। इस बात के लिए वह घर पर आकर अपनी जाति के लगे कलंक पर खूब रोते थे। वे उसी भगवान को खूब कोसते जिसे उन्हें आंखों से नहीं देखने दिया जाता था।
"इस तरह की हीनता की कहानी लिखते-लिखते  मेरी  आंखें भी नम होने लगती है।"
इस तरह की घटनाओं को पढ़ने और लिखने पर समाज के उस वर्ग को कोसते हुए संकोच नहीं होता है जो मानवता की दम जाति के सांसों में तोड़ देता है। यह प्रकृति और भगवान ने कभी भी मनुष्य के साथ भेद अपनाने का संदेश दिया है। चाहे वेदों में काम करने के आधार पर वर्ण विभाजन कर रखा हो लेकिन वर्ण विभाजन के आधार पर छुआछूत और भेदभाव फैलाने कुछ बातें न तो किसी वेद में वर्णित है और न ही किसी ईश्वर ने इसका संदेश दिया है।
छुआछूत और भेदभाव मनुष्य के दिमाग की एक लाइलाज बीमारी है जिसे शिक्षा की गोली से ही सुधारा जा सकता है।
पानी पीने का दंश भी बेचारे लोगों को सहना पड़ता था। उनकी मजबूरी उनकी जिंदगी को मजबूर कर रही थी। कुछ समय तक उन लोगों को इसी तरह सहन करना पड़ रहा था। जब मिनट के काम के लिए उन्हें घंटों खड़े रहना पड़ता था। वे वहां। पर सिर पर मटके के साथ-साथ अपने लिए पानी के नल को खाली होने का इंतजार करती रहती थी। लेकिन यह इंतजार उनकी आंखों में दर्द बनकर निकलता था। वे अपने बड़ों और अपने पुरूषों को खूब कोसती थी। क्योंकि उनके लिए यह मुसीबत उनकी न बोलने और हक और अधिकारों की आवाज नहीं उठाने की वजह से हो रही थी।
वर्षों गुजर गये लेकिन उनकी समस्या का कोई समाधान नहीं था। वहां पर मिलने वाली हर सुविधा पर पहला अधिकार उच्च जाति के लोगों का ही होता था। चाहे वह पानी का नलकूप हो या सरकारी राशन।
एक दिन की बात है सुबह के समय गांव की औरतें सिर पर घड़े रखकर गांव से बाहर बने उस नलकूप पर पानी के लिए जा रही थी। आज सभी ने अपने दिमाग में यह उनके साथ हो रहे अत्याचार के विरुद्ध बोलने का कीड़ा काट रहा था। इसलिए सभी चौराहे पर खड़ी होकर एक-दूसरे का इंतजार कर रही थी। उनका समूह आज जंग के मैदान में उतरने को था। उन्होंने इस जंग में पुरुष और वृद्धों को शामिल नहीं किया था। इनके सीने में आज अधिकारों को पाने की ज्वाला भड़क चुकी थी। इस लड़ाई को आरपार करने के लिए आज पूरी तरह तैयार थी। इन सभी के समूह में रजनी अपनी सेना का नेतृत्व कर रही थी जो अपने सारे गांव में स्वभाव से बहादुर थी। वह गांव में किसी भी झगडे को निपटाने में आगे रहती थी और कभी भी अन्याय के विरुद्ध बोलने के लिए पीछे नहीं हटती थी।
ये सभी महिलाएं पुरुष प्रधान समाज की बेड़ियों में जकड़ी हुई थी जो समाज के बड़े लोगों के बीच बोलने पर समाज के लोग उन्हें बुरे व्यवहार की औरत समझते थे। इन महिलाओं की आवाज अपने अधिकारों के प्रति भी दबकर रह जाती थी।
गांव में जो महिला सबसे कम बोलती थी। उस महिला को सबसे अच्छी औरत समझा जाता था। वह परिवार और समाज में इज्जत की हकदार होती थी। अशिक्षित होना महिला के लिए अधिकारों के लिए बहुत हानिकारक था। देश की आजादी के चार दशक बाद भी महिला समता के अधिकार से वंचित थी। उसकी यह दशा उसे अपनी जिंदगी के लिए उदासीनता में ले जाती है।
लेकिन कुछ स्त्रियों की हिम्मत ने आज उनकी इस दुर्दशा को सुधारा है। पिछले दशक में नारियों की दशा में काफी सुधार हुआ है जो नारियों को स्वनिर्भर बनाता है। इस समय महिलाओं ने हर क्षेत्र में अपनी प्रतिभा का अच्छा प्रदर्शन किया है, और पुरूषों से आगे बढ़कर काम किया। इस समय कुछ महिलाएं केवल देश में ही कीर्तिमान बना रही बल्कि विश्व पटल पर भी अपनी छवि बिखेर रही है।
रजनी अपने दल के साथ लगातार बढ़ रही थी। सभी स्त्रियों के मन में गुस्सा हो रहा था। धीरे-धीरे बातें करते हुए सभी महिलाएं नलकूप पर पहुंच गई।
वे सभी वहां पहुंच कर एक साइड में खड़ी हो गई। कुछ समय तक वे इंतजार करती रही। उसके बाद रजनी ने एक स्त्री से कहा कि तुम मेरे से बाद में आई हो तो पहले पानी क्यों भर रही हो। तुम हटो पहले हमें पानी भरने दो।
उस स्त्री ने बहुत ही घमंड के साथ कहा तुम ज्यादा बोल रही हो क्या? जल्दी आ गई तो क्या हुआ?
तेरे ज्यादा पंख उगने लगे हैं। शांत रहो नही तो थप्पड़ों से लाल कर दूंगी। तू नीच तेरे दिमाग़ में गोबर भरा तू अपनी औकात नहीं समझती क्या?
रजनी:- तू ज्यादा क्यों बोल रही है। ये मत समझना कि मैं डर जाऊंगी। तूने किसी और से पंगा लिया होगा। बहुत दिन से देख रही हूं इन अत्याचारों को अब सहन नहीं होंगे। यह नल तेरे बाप का नहीं है।
रजनी पानी भरने के लिए आगे बढ़ने लगी जैसे ही वह आगे बढ़ने लगी। वह औरत उसके ऊपर पत्थर उठाकर मारने की कोशिश करने लगी।
रजनी की आंखों में खून उतर आया आए उसने भी अपने हाथ में पत्थर उठाया और वह भी आगे बढ़ने लगी।
रजनी के इस साहस को देखकर उस औरत के पसीने आने लगे। उसने बुरी तरह गालियां और अपशब्द बोलना शुरू किया।
लेकिन रजनी के साथ महिलाओं ने भी रजनी का साथ देकर उसके पीछे जाने लगी। इस तरह सभी महिलाओं को साथ आते हुए देखकर वह औरत डर गई और पीछे हट गई ।
वह पीछे हटकर बहुत ही गुस्सा हो रही थी। रजनी और सभी महिलाओं ने पानी भर लिया। उसके बाद वे वहां से जाने लगी।
वह औरत वहां पर आज बहुत ही गुस्सा हो चुकी थी क्योंकि उसे आज अपमान सहन करना था।
आज उसे निम्न जाति की महिलाओं ने डरा दिया जिन्होंने आज तक कभी सामना नहीं किया। हमारी जाति ऊंची है । इन गंदी महिलाओं ने आज हमारी इज्जत की धज्जियां कैसे उड़ाई है?
इस तरह वह बड़बड़ाते हुए घर पहुंच गई। उसने यह बात अपने पति को बताई तो पति ने अपने पडौस में कुछ लोगों को बताई। इसके बाद सभी इकट्ठे होकर रजनी की शिकायत करने के लिए उसके घर पहुंच गये।
गांव के चौराहे पर खड़े होकर गालियां देने लगे थे। इस समय उनसे कोई बोल नहीं रही था। सभी लोग घरों के अंदर थे। वे वहां पर गंदी-गन्दी गालियां और जातिसूचक शब्दों का प्रयोग कर रहे थे। उनका हल्ला सुनकर सभी लोग घरों के अंदर से बाहर निकलकर आये। जैसे ही कुछ लोग उनके सामने आये। वे उन पर गुस्सा करके हमले की कोशिश कर रहे थे। लेकिन उन लोगों ने अपने आप को बचाया और वापस अपने घरों में घुस गये।
वे बुरी तरह गालियां बक रहे थे। यह होती है निम्न वर्ग पर अत्याचार करने की साजिश ।
रजनी और उसके साथ महिलाओं का क्या दोष था जो उन पर इस तरह से शब्दों से हमला किया जा रहा था। काफी देर तक ये अपने कारनामों को दिखाते रहे। इसके बाद कुछ समझदार लोगों ने उनसे बात करने की कोशिश की। वे लोग उनसे माफी मांगने लगे। लेकिन ये लोग उन्हें मारने के लिए दौड़ रहे थे।
कुछ बड़े लोगों ने उनके पैरों में गिरकर क्षमा मांगी तब जाकर वे वहां से गये। इसके बाद रजनी और उसके समुह की सारी महिलाओं को इकट्ठा करके गांव के लोगों ने डांटा और कहा कि इस गांव में हमें टिकने दोगी या नही।
हम नीची जाति वालों को बोलने और कुछ करने के अधिकार कहां है इनसे टक्कर लेना मौत को गले लगाना है। इसलिए इनसे मत झगड़ा करो। नहीं तो तुम्हारे एक के चक्कर में सारे गांव को यहां से भागना पडेगा।
रजनी कुछ बोलने की कोशिश कर रही थी उसी समय गांव के कुछ लोग उसके ऊपर टूट पड़े। उसने अपने आपको कमजोर पाया और वह बेचारी चुप हो गई।
रजनी के साथ की सभी महिलाओं के मन में बहुत गुस्सा आ रहा था लेकिन वे इस समय ज्यादा नहीं बोल सकती थी क्योंकि इस समय उनकी जिंदगी के लिए बहुत ही खतरा था। उनका समाज के लोगों के बीच ज्यादा बोलना अपने परिवार के लिए भारी हो सकता है। इसलिए उन्होंने चुप रहने में ही भलाई समझी।
यह स्त्री के मन की पीड़ा थी जो उसे मौन रखने के लिए मजबूर कर रही थी। एक स्त्री को सच्चाई के लिए बोलना भी मनुष्य के सम्मान और इज्ज़त के विरूद्ध होता है।
उस समय मनुष्य और निम्न जातियों के लोगों की एक ही हालत थी जिसके लिए वे आवाज नही उठा सकते थे।
इस दशा को सोचकर आंखें नम हो जाती है। यह बात कभी बड़ी ही सोचनीय योग्य थी जब इस हालत के लिए लोगों ने स्त्री को मजबूर कर रखा था।
उस दिन की घटना को लेकर रजनी बहुत चिंतित थी। उसके साथ की सभी स्त्रियों ने उसे धीरज बंधाया और कहा कि आपको घबराने की आवश्यकता नहीं है। हम तुम्हारे साथ है।
यह लड़ाई अब एक घरेलू लड़ाई न होकर हक और अधिकारों को पाने के लिए दो जातियों के बीच की लड़ाई हो गई थी। जिसकी शुरुआत अपने ऊपर हो रहे अत्याचार के खिलाफ नारियों के एक समूह ने उठाई थी। यह लड़ाई उस समाज के पुरूषों के द्वारा चाहे कितनी भी ग़लत कहीं जा रही हो लेकिन यह मानवता के लिए एक सच्ची लड़ाई थी।
यह मानव की मानसिक विकृति को ठीक करने की लड़ाई थी। यह देश में निम्न वर्ग के ऊपर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ हो रही लड़ाई थी।
इस दिन की उच्च जाति के लोगों की दबंगाई और उनके द्वारा दी जाने वाली धमकियों के कारण कुछ लोग बुरी तरह डर चुके थे। उन लोगों ने रजनी और उसके साथ अपनी बहादुरी दिखाने वाली महिलाओं को बहुत कोसा।
लोगों के मन में डर बुरी तरह बैठ गया उन लोगों ने खुलेआम चेतावनी दी थी कि तुम निम्न हो निम्न ही रहोगी यदि ज्यादा बनने की कोशिश की तो तुम्हारी खैर नही।

कैसी भयानक अत्याचार थे इस दुनिया में, जो एक मनुष्य को दबाने के लिए उसके ऊपर कितना दबाव बनाया जाता था? निम्न वर्ग के लोग अपनी विवशता पर अपने आप को कोसते और कोसते थे उस परमात्मा को जिसने इस तरह के भेद पैदा किये हो।
इस धमकी का भय लोगों में काफी दिनों तक व्याप्त रहा। कुछ लोग उनकी इस लड़ाई की वजह से पानी के लिए जान बंद हो गये थे।
लेकिन रजनी अशिक्षित होते ही अपने हक और अधिकारों को अच्छी तरह जानती थी। इस समय वह अपने समाज के सम्मानित लोगों के सामाजिक दबाव में कमजोर भले ही पड़ गई थी। लेकिन उसकी हिम्मत पूरी तरह नहीं टूट पाई।
वह कभी भी किसी से फालतू की लड़ाई नहीं करती थी। लेकिन सच्चाई के लिए वह अड जाती थी।
इस समय वह अपने समाज की कमजोरी की वजह से बहुत कमजोर महसूस कर रही थी।
" मनुष्य को जिंदगी कुछ करने के लिए मिली है जिसमें एक बार मरना है लेकिन कमजोर होकर भी जीना एक मृत व्यक्ति के समान ही होता है जो केवल सोता-जागता,और खाता-पीता है उसकी जिंदगी उस पशु के समान है जो केवल खाने के लिए जीता है और जीने के लिए खाता है। पशु मनुष्य की अपेक्षा अपनी मानसिक स्थिति के रूप में कमजोर होता है लेकिन जब उस पर अत्याचार ज्यादा होने लगते हैं तो वह भी आवाज उठाने में पीछे नहीं रहता है। कभी-कभी पशु भी पलटकर जवाब देने से नहीं चूकते हैं।"
इसलिए उदासीनता में जीने से बढ़िया मरना ही भला है।
रजनी को अपने अपमान का जितना दुख नहीं था उतना दुख था जाति के सम्मान का। जिसमें सम्पूर्ण समाज घुट-घुटकर जिल्लत की जिंदगी जीने के लिए तैयार था। यह वातावरण ही तो उस जाति या समाज के लिए एक मत का वातावरण तैयार करता है।
"मानव हो तो मानव की तरह जीना सीखो। जब अपने हक और अधिकारों की बात हो तो उसके लिए लड़ना सीखो।"
रजनी ने सोच लिया था इस लड़ाई को आगे बढ़ाने से कोई फायदा नहीं है इसलिए कुछ दिन तक शांत रहना ही अच्छा है। क्योंकि मेरे समाज के लोगों में इतनी हिम्मत और साहस नहीं की वे सच के सामने खड़े होकर विरोध करना शुरू कर दें।
वह कुछ दिनों तक अपने समाज के माहौल के साथ ही चुप रहकर पानी भरने के लिए नहीं जाती थी। कभी चली भी जाती तो वह भीड नहीं होने का समय देखती थी। कुछ स्त्रियां इस घटना से बुरी तरह डर गई थी। वे अपने घर में घुसकर जीने के लिए तैयार थी लेकिन उन्हें लड़ाई से बहुत डर लगता था।
कुछ दिनों तक सभी लोगों के मन में शांति रही थी। सारी स्थिति सामान्य हो गई। लोगों ने उनके खेतों में काम करना शुरू कर दिया था। उनके साथ बोलना शुरू हो गया था। लेकिन कुछ लोग अब भी इस पीड़ा से प्रभावित थे कि सरकारी नलकूप होने के बावजूद भी उनके घर की स्त्रियां पानी के लिए इधर-उधर भटक रही है।
"कहते हैं नीच जाति के लोग गंदे रहते थे, लेकिन जब इस तरह की घटनाओं का आकलन किया जाए तो एक बात दिमाग में अवश्य आती है कि जब लोग उनके हिस्से की सभी सुविधाओं से वंचित थे,उनके साथ दुर्व्यवहार हो रहा था उन्हें पीने के पानी तक मोहताज होना पड़ रहा था और खाने के लिए उनके लिए सीमित अनाज और रहने के लिए एक छोटी सी झोंपड़ी मिल पाती थी तो ये लोग अपने स्तर को कैसे ऊंचा उठा सकते थे। इन लोगों का काम ही गंदगी के साथ खेलना था तो इन लोगों को गंदा रहना इनकी मजबूरी थी , इन लोगों काम वहां से शुरू होता था जहां से अन्य जातियों के काम खत्म हो जाते थे। "
हालांकि समय के साथ निम्न जातियों के लोगों के जीवन में सुधार आ रहा था और समाज  के लोगों को शिक्षित होने के लिए चाहे भेदभाव झेलना पड़ रहा था लेकिन भेदभाव की सीमा लगातार कम होती जा रही थी। इस समय लोगों में खाने-पीने की दुरियां थी लेकिन रास्ते में चलना स्कूल में ज्यादा दूरी बनाकर नहीं रहना।
हालांकि बच्चों के साथ पानी पीने की टंकी या हैंडपंप पर छुआछूत और भेदभाव का सामना करना पड़ता था एवं कभी-कभी अभद्रता की भाषा को भी झेलना पड़ता था। उन लोगों के संस्कार ऐसे थे कि इन बच्चों के साथ नहीं खेलते थे इस तरह की दुर्भावनाएं अभी भी जीवित थी।

उच्च जाति के लोगों के साथ किसी भी व्यक्ति के द्वारा विरोध किया जाता था तो उनके द्वारा उसे टारगेट बनाकर रखा जाता था और उसके लिए मौका देखने की फिराक में रहते थे। समय के साथ उससे बदला लेने की कोशिश हमेशा बनी रहती थी।
एक दिन उस गांव का एक व्यक्ति उसकी मजदूरी मांगने के लिए उनके यहां गया था। वह उसके घर पर पहुंच गया तो उच्च जाति का व्यक्ति जिसके यहां से मजदूरी  लेनी थी उसने उसे अपने यहां से मारपीट कर भगा दिया और उसके साथ बहुत ही अभद्रता पूर्ण व्यवहार किया गया उस साठ साल के व्यक्ति ने बीस साल के किशोर ने मारकर और जाति के नाम पर अपशब्द सुनाकर अपने घर से भगा दिया और उसे घर से भगा दिया। उसका नाम रमेश था। वह वहां से गुस्सा होकर अपने मोहल्ले में आ गया और गालियां बकते हुए चौराहे पर खड़ा हो गया। कुछ ही देर में सारा मोहल्ला इकट्ठा हो गया। कुछ लोग इस अपमान को सहन करने के लिए बैठने की सलाह दें रहे थे लेकिन रमेश के मन में क्रोध भरा हुआ था वह गुस्से से लाल हो रहा था । वह बुरी तरह पसीने से लथपथ अपने घर तक आ पहुंचा लेकिन उसने गालियां देना अभी बंद नहीं किया था क्योंकि वह इस हरकत के लिए निर्दोष था। उसने उसके घर मजदूरी करके कुछ गुनाह नहीं किया था।
जब वह मजदूरी मांगने गया तो उसे तिरस्कार झेलना पड़ रहा था उसके अलावा उसे मारा गया था।
कुछ लोगों ने इस मामले को शांत करने की कोशिश की लेकिन रमेश का इसमें कोई दोष नहीं था इसका दोष यही था कि वह उसके मजदूरी करके आया था और जाति से कमजोर था। उन्होंने उसकी उम्र का भी लिहाज नहीं किया था। उसके ऊपर शब्दों के साथ में डंडो से प्रहार कर डाला था।
"मनुष्य की कीमत उसकी जाति और उसके काम से आंकी जाती है। इस दुनिया में केवल अमीर लोगों की ही कीमत होती है। गरीब और निम्न जातियों के लोगों को उस पैदा करने वाले कथनीय ईश्वर ने जुल्म और अत्याचारों को सहन करने के लिए ही पैदा किया है। ईश्वर भी मनुष्य के साथ इस तरह का भेदभाव करता है कि उसे  कार्य करने की स्वतंत्रता ना हो और कार्य के आधार पर उससे निर्दोष होने पर ज़ुल्म और अत्याचार झेलने पडे।"
आज रमेश के सीने की आग भड़क रही थी। वह बहुत ही ज्यादा गुस्से में था गांव के सभी लोग इकट्ठे हो गये। जो लोग इस मामले को दबाने की कोशिश कर रहे थे उनके ऊपर कुछ लोग झुंझलाकर टूट पडे। अब तक सहेंगे ये अत्याचार जो जीवन को मर-मरकर काटने के लिए मजबूर कर रहे है।
स्त्रियों के बीच खड़ी रजनी ने भी सभी स्त्रियों से कहा कि हम जितने चुप रहेंगे उतने ही अत्याचार होते रहेंगे इसलिए हमें इन परिस्थितियों में एक साथ मिलकर सामना करने की आवश्यकता है। ये लोग हमारी मजबूरी का फायदा उठाकर हम पर अत्याचार कर रहे हैं। इन लोगों से दबकर रहना बहुत ही खतरनाक होगा। कब तक दबकर जीवन यापन करेंगी हमारी औलादें।
कुछ महिलाओं ने रजनी का सपोर्ट किया लेकिन कुछ महिलाएं वहां से खिसकने लगी क्योंकि उनको डर था कि उन लोगों ने सुन लिया तो वे यही पर आकर हमला कर देंगे।
पुरूषों के बीच में भी कुछ लोग हिम्मत करके रमेश कै साथ खड़े होने के लिए तैयार थे। उनमें से रजनी के परिवार सभी लोग मौजूद थे। उनकी मौजूदगी में उन लोगों ने योजना बनाई कि इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए ठोस कदम उठाने कुछ आवश्यकता है। कुछ लोग कह रहे थे कि उच्च जाति के पंच-पटेलों से शिकायत की जाये जिससे कि वे अपने बच्चों को समझाये।
कुछ लोग कह रहे थे कि हमें मिलकर सभी का डटकर सामना करना चाहिए और कल पानी लेने के लिए औरतों के साथ में आदमी भी जाये यदि उनके द्वारा कुछ कहा जाये तो उनको मजा चखा कर ही लौटे बाद की बाद में देखी जायेगी। लेकिन इस तरह अत्याचार नहीं झेल सकते हैं।
उनमें से एक व्यक्ति ने कहा कि तुम कुछ भी मत करो केवल कानून के आधार पर ही अपनी लड़ाई लड़ो। जो कुछ करेगा वह कानून करेगा। हम-तुम करेंगे तो उल्टे केस में फंसाकर हमें ही जेल भिजवा दिया जायेगा।सभी लोगों को यह सलाह उचित लगी।
उनमें से ही कुछ लोग कहने लगे कि जब केस हो जायेगा तो इन लोगो की सब अक्ल ठिकाने आ जायेगी। पुलिस इनको जेल में डालकर जब मारेगी तो ये सब सुधर जायेंगे। कुछ लोगों को यह समाधान सही लगा लेकिन कुछ लोग अभी भी डर रहे थे।
रजनी का पति उनके साथ मिलकर उन्हें थाने ले गया और वह जाते-जाते उनके घर पर चेतावनी दे गया कि अब तुम नेता बनकर दिखाना तुम लोग हम पर कितने अत्याचार करते हो। यह बात सुनकर उनके सम्मान को बहुत ठेस पहूंची कि आज नीची जाति के व्यक्ति ने हमें धमका दिया है इसलिए उन्हें उसके ऊपर बहुत ही गुस्सा आ रहा था।

लेकिन उस समय लोगों को पुलिस का बहुत डर रहता था। इसलिए उनके दिल की धड़कनें तेज होने लगी थी।
रमेश यह बात कहकर अपनी जाति के लोगों के साथ पुलिस थाने पहुंच गया। वहां पर जाकर उन्होंने सारी समस्या सुनाई तो वहां का थानेदार कहने लगा कि एक बार सही से सोच लो कि तुम्हें एफ आई आर करनी है। क्योंकि वह भी एक उच्च जाति का थानेदार था इस तरह की शिकायत में बहुत बड़ा एक्शन हो जाता था और कभी-कभी तो इस तरह की एफआईआर एक जातीय संघर्ष का रूप ले लेती थी।
इसलिए वह रमेश को समझाने लगा कि इस समय तुम गुस्से में हो। एफ आई आर होने के बाद केस वापस नही होगा। कहीं यह तुम्हारे लिए भारी नहीं पड जाये इसलिए तुम अपना काम सोच-समझकर करो।
उस समय रमेश के मन में भारी गुस्सा और रजनी के पति ने समझा दिया कि ये हमें दबाने के लिए और उनके बचाव के लिए केस नहीं होने दे रहे हैं। इसलिए इस बार हमें पीछे नहीं हटना है एक बार पीछे हट गये तो हमारे खिलाफ बहुत बुरे अत्याचार होने लगेंगे। हम तुम्हारे साथ है हम उन्हें एक बार सबक सिखाकर ही दम लेंगे। चाहे हमारी जान क्यों ना चली जाये। हम इस तरह के अत्याचार कब तक सहन करेंगे।
आखिरकार रमेश और उसके साथियों ने पुलिस थाने में  एफ आई आर दर्ज करा दी।
उसके पश्चात उच्च जाति के लोगों में पूरी तरह हलचल मच गई।
कुछ लोगों के मानने के अनुसार रमेश एक अशिक्षित और कानून के प्रति अनभिज्ञ व्यक्ति था लेकिन उसने एफ आई आर कैसे कर दी। इस बात का लोगों के मन में गहरा असंतोष था। जब पता चला तो रजनी के पति और उसके परिवार के कुछ जानकार लोग इस कानूनी लडाई में शामिल थे।
एफ आई आर करने की बात पूरे गांव में आग की तरह फ़ैल गई सभी लोग इस बात की चर्चा करने लगे। सभी जातियों के लोगों के पास सूचना मिलते ही हड़कंप मच गया था। क्योंकि उस समय किसी भी समस्या को पंच पटेलों की सहायता से आसानी से निपटा लिया जाता था।

लेकिन यह जातिवाद की मानसिकता उच्च जाति के लोगों में अभी भी भरी हुई थी। वे बिल्कुल नहीं चाहते थे कि निम्न जाति के लोग हमारे सामने खड़े होकर ऊंची आवाज में बात करे। इन्हें हमारी गुलामी जंजीरों से मुक्त होने का अर्थ हमारे सम्मान को अपमानित करना है।
इस तरह रमेश ने अपने साथियों के साथ मिलकर पीटने वालों के खिलाफ केस दर्ज करा दिया। इसके बाद जिन लोगों ने रमेश की पिटाई की वे लोग घबराने लगे। वे लोग घर से गायब हो गये क्योंकि उनके दिमाग में डर बैठ गया कि पुलिस उनके घर कभी भी आ सकती है और उनको पकडकर ले जायेगी।


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रचनाएँ
भेदभाव की आग में
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इस पुस्तक में एक गांव के अंदर उच्च जाति और निम्न जातियों के लोगों के बीच चल रहे संघर्ष की कहानी है। जिसमें निम्न जातियों के लोगों के साथ भेदभाव और छुआछूत का रवैया अपनाया जाता है। उच्च जाति के लोगों निम्न जाति के लोगों भर अत्याचार करते हैं। उन्हें पानी के बहुत संघर्ष करना पड़ता है लेकिन उन्हें आसानी से न्याय नहीं मिल पाता है। इसमें रजनी नाम कुछ एक महिला जो अपने हक और अधिकारों के लिए मांग उठाती है लेकिन उसके समाज के लोग उसकी आवाज को दबाकर उसे भी शांत करना चाहते हैं। लेकिन अंत में उसके परिवार के भी साथ आ जाने से वह अपनी आवाज बुलंद करती है इसके बाद उनमें लड़ाई छिड़ जाती है। जिसका अंत आमने सामने की लड़ाई के रूप में होता है। और उच्च जाति के एक लड़के की मृत्यु हो जाती है।

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