हिमालय से एक बूंद,
जल की निकली थी कभी |
उस बूंद की याद में वो,
रो रहा है आज भी |
बह रही कितनी नदियाँ,
उस गिरी के आँसु से |
बन गया समंदर उसके,
अश्रु के सैलाब से |
जीत किसकी हार किसकी,
प्यार में ये कुछ नहीं |
जीतकर भी हारने से,
प्यार का अंजाम क्या है |
दिल मेरा मुझसे अब अक्सर, पूछता है बस यही |
यूँ मुझे गैरो को देने, का तुम्हे अधिकार क्या है ?