हिंदी की सर्वश्रेष्ठ कवितायेँ एवं गीत. Best Hindi Poems के इस संग्रह में हम लेकर आये है हिंदी कवितायेँ , हिंदी काव्य, हिंदी गीत, ग़ज़ल ।
कविता एक ऐसी प्रयोजनीय वस्तु है जो संसार के सभ्य और असभ्य सभी जातियों में पाई जाती है. जब इतिहास न था, न विज्ञान था और न ही दर्शन तब भी कुछ थी तो वो थी कवितायेँ |
कविता सूची
कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है ! मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है !! मैं तुझसे दूर कैसा हूँ , तू मुझसे दूर कैसी है ! ये तेरा दिल समझता है या मेरा दिल समझता है !! भ्रमर कोई कुमुदनी पर मचल बैठा तो हंगामा सब तमन्नाएँ हों पूरी, कोई ख्वाहिश भी रहे चाहता वो है, मुहब्बत में नुमाइश भी रहे आसमाँ चूमे मेरे पँख तेरी रहमत से और किसी पेड की डाली पर रिहाइश भी रहे तुम अगर नहीं आई गीत गा न पाऊँगा साँस साथ छोडेगी, सुर सजा न पाऊँगा तान भावना की है शब्द-शब्द दर्पण है बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है ओ प्रीत भरे संगीत भरे! ओ मेरे पहले प्यार! मुझे तू याद न आया कर ओ शक्ति भरे अनुरक्ति भरे! उनकी ख़ैरो-ख़बर नहीं मिलती हमको ही खासकर नहीं मिलती शायरी को नज़र नहीं मिलती मुझको तू ही अगर नहीं मिलती सूरज पर प्रतिबंध अनेकों और भरोसा रातों पर नयन हमारे सीख रहे हैं हँसना झूठी बातों पर
हमारे दिल में कोई ख्वाब पल बैठा तो हंगामा
अभी तक डूबकर सुनते थे सब किस्सा मुहब्बत का
मैं किस्से को हकीकत में बदल बैठा तो हंगामा
वे मुस्काते फूल, नहीं
जिनको आता है मुर्झाना,
वे तारों के दीप, नहीं
जिनको भाता है बुझ जाना;
मेह बरसने वाला है
मेरी खिड़की में आ जा तितली।
बाहर जब पर होंगे गीले,
धुल जाएँगे रंग सजीले,
वे मुस्काते फूल, नहीं
जिनको आता है मुरझाना,
वे तारों के दीप, नहीं
जिनको भाता है बुझ जाना
मधुर-मधुर मेरे दीपक जल!
युग-युग प्रतिदिन प्रतिक्षण प्रतिपल
प्रियतम का पथ आलोकित कर!
सौरभ फैला विपुल धूप बन
जाने किस जीवन की सुधि ले
लहराती आती मधु-बयार!
रंजित कर ले यह शिथिल चरण, ले नव अशोक का अरुण राग,
मेरे मण्डन को आज मधुर, ला रजनीगन्धा का पराग;
बया हमारी चिड़िया रानी!
तिनके लाकर महल बनाती,
ऊँची डाली पर लटकाती,
खेतों से फिर दाना लाती,
किन उपकरणों का दीपक,
किसका जलता है तेल?
किसकी वर्त्ति, कौन करता
इसका ज्वाला से मेल?
क्या पूजन क्या अर्चन रे!
उस असीम का सुंदर मंदिर मेरा लघुतम जीवन रे!
मेरी श्वासें करती रहतीं नित प्रिय का अभिनंदन रे!
पद रज को धोने उमड़े आते लोचन में जल कण रे!
ठंडे पानी से नहलातीं,
ठंडा चंदन इन्हें लगातीं,
इनका भोग हमें दे जातीं,
फिर भी कभी नहीं बोले हैं।
उर तिमिरमय घर तिमिरमय
चल सजनि दीपक बार ले!
राह में रो रो गये हैं
रात और विहान तेरे
मैं नीर भरी दुःख की बदली,
स्पंदन में चिर निस्पंद बसा,
क्रंदन में आहत विश्व हँसा,
नयनो में दीपक से जलते,
जों लों बोलत नाहिं।
जान परत हैं काक पिक,
रितु बसंत के नाहिं॥
नदी तुम माँ क्यों हो...? सभ्यता की वाहक क्यों हो...? आज ज़ार-ज़ार रोती क्यों हो...? बात पुराने ज़माने की है
मैं भटकता रहा;
समय, यूं ही निकलता रहा;
मैं भटकता रहा।
उथला जीवन जीता रहा;
तंग हाथ किये, जीवन जीता रहा।
आओ एक किस्सा बतलाऊँ,एक माता की कथा सुनाऊँ,
कैसे करुणा क्षीरसागर से, ईह लोक में आती है?
धरती पे माँ कहलाती है।
स्वर्गलोक में प्रेम की काया,ममता, करुणा की वो छाया
खामोश हूँ आज मैं कुछ तो बात है
ये ख़ामोशी क्यूँ है पता नहीं , कुछ तो बात है...
हर दिन हर पल एक अजीब एहसास है
ज़िंदगी का ये मेरे साथ अच्छा मज़ाक है