श्री धर्मवीर भारति हिंदी साहित्य के प्रयोगवादी कवि थे | डॉ. भारति हिंदी की साप्ताहिक पत्रिका 'धर्मयुग' के प्रधान संपादक थे। भारत सरकार द्वारा 1972 में डॉ. धर्मवीर भारती को पद्मश्री से सम्मानित किया गया। रथ का टूटा हुआ पहिया हूं धर्मवीर भारति की सर्वश्रेस्ट और लोकप्रिय कविताओं में से एक है | महाभारत में जब अभिमन्यु कौरवों के चक्रव्यूह में फस गए थे तब अभिमन्यु के हाथों में अपने बचाव के लिए केवल रथ का टूटा हुआ पहिया था | मैं रथ का टूटा हुआ पहिया हूं लेकिन मुझे फेंको मत! क्या जाने कब इस दुरूह चक्रव्यूह में अक्षौहिणी सेनाओं को चुनौती देता हुआ कोई दुस्साहसी अभिमन्यु आकर घिर जाय! अपने पक्ष को असत्य जानते हुए भी बड़े-बड़े महारथी अकेली निहत्थी आवाज़ को अपने ब्रह्मास्त्रों से कुचल देना चाहें तब मैं रथ का टूटा हुआ पहिया उसके हाथों में ब्रह्मास्त्रों से लोहा ले सकता हूं! मैं रथ का टूटा पहिया हूं लेकिन मुझे फेंको मत इतिहासों की सामूहिक गति सहसा झूठी पड़ जाने पर क्या जाने सच्चाई टूटे हुए पहियों का आश्रय ले !
">रथ का टूटा हुआ पहिया हूं - धर्मवीर भारती
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मैं रथ का टूटा हुआ पहिया हूं - डॉ. धर्मवीर भारती | Hindi Poem | Dharmvir Bharti