मैंने तुम्हें सपने में देखा, अब तुम्हें देखने का, यही तो एक जरिया बचा है। इन दिनों... अब तुम तो हमें देखने या मिलने से रहें। भूलने की आदत जो है तुम्हें। खैर ! अब तुम्हें लेकर बुरा भी क्या मानें? क्योंकि उसके लिए भी, हक जो ढूंढने पड़ेंगे हमें। हां, आजकल तुम सपने में भी, मोबाइल में नजरें गड़ाए हुए द
प्रदर्शन कारियों के अटपटे बोल डॉ शोभा भारद्वाजवारिस पठान का भाषण सुन कर हैरानी हुई .वह कुछ भी बोल सकते हैं धमका सकते हैंइनके अनुसार संविधान अभिव्यक्ति की आजादी देता है परन्