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अध्याय एक...

1 नवम्बर 2021

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जंगल जंगल ढूंढ रहा हैं..... 
मृग अपनी कस्तूरी.....।। 

कितना मुश्किल हैं तय करना.... 
खुद से खुद की दूरी...।। 

भीतर शून्य... 
बाहर शून्य... 
शून्य चारों ओर हैं....।। 

मैं ही नहीं हूँ मुझमें.... 
फिर भी मैं मैं का ही शोर हैं.... ।।


छोटी सी कविता में सब कुछ बयां कर दिया हैं.... 
सच भी यही है.... इंसान की फितरत ही ऐसी हैं..... खुद में लाख कमियाँ हो.... लेकिन वो नहीं दिखाई देगा.... किसी ओर में कमियाँ निकालने की बात हो तो झूंड बन जाएगा....।।।। 

कबीर दास जी का एक दोहा आज भी मुझे अच्छे से याद हैं.... 

बुरा जो ढूंढन मैं गया... 
बुरा ना मिलिया कोई... 
जो तन झांका आपने.... 
मुझसे बुरा ना कोई.... 
कबीरा मुझसे बुरा ना कोई...... 


लेकिन आज इसके बिल्कुल विपरीत परिस्थिति हैं... 
आज हमें खुद में कोई कमी नहीं मिलती.... ओरो में लाखों मिल जाती हैं....।। 

कभी खुद से खुद की मुलाकात करके तो देखो.... बहुत कुछ बदल जाएगा....।। 

मैं अपने आप पर ही बीती एक बहुत छोटी सी बात आपको बताती हूँ....। 

बात उन दिनों की हैं जब स्कूल में पढ़ा करती थी...।।। 
तीसरी कक्षा में पढ़ती थी...।।। दिपावली की लंबी छुट्टियों के बाद जब स्कूल गई तो स्कूल एक अलग ही रंग में रंगा हुआ था.... रंग तो अलग थे ही ओर भी बहुत कुछ बदला बदला सा था....।।। 

मेरा ध्यान गया.... हर कक्षा के बाहर उपर की तरफ़ लगी एक नीले रंग की पट्टी पर..... जिसमें सफेद अक्षरों से कुछ प्रेरणादायक पंक्तियाँ लिखी हुई थी....।। मैं जिस कक्षा में बैठती थी.... उसके बाहर भी एक ऐसा ही विचार लिखा हुआ था.....।।। लेकिन वो विचार मेरी समझ के बाहर था....।। 
उस पर लिखा था... 

खुद सुधरो.... जग सुधरेगा...।। 

ये पंक्ति मैने पढ़ी तो सही पर समझ नहीं आई..... मेरे मन में सवाल उठने लगे.... की अकेले मेरे सुधर जाने से जग कैसे सुधर जाएगा....।।। 
मेरी फितरत ऐसी थी की जब तक मुझे मेरे सवालों के जवाब नहीं मिल जाते थे मैं उनके बारे में सोचती रहती थी....।।। 
ऐसे ही सोचते सोचते कई दिन निकल गए.... पर जवाब नहीं मिला...।।।। आखिर कार एक दिन हिम्मत करके मैने चालू कक्षा में एक अध्यापक के सामने अपनी बात रखी...।।।। सारे विधार्थी मुझ पर हंसने लगे....।। लेकिन मुझे सिर्फ अपने जवाब से मतलब था...।। 
अध्यापक जी ने बढ़े ही सरल तरीके से मुझे समझाया...। वो मुझे ओर कक्षा के दो ओर छात्रों को बाहर लाए ओर हमें बारी बारी से वो पंक्तियां पढ़ने को कहा... हमने वैसा ही किया... फिर उन्होंने मेरी ओर देखकर कहा... ये विचार सिर्फ तुम्हारे लिए नहीं लिखा हैं.... सबके लिए हैं.... अगर आज हर कोई अपने आप में बदलाव लाएगा.... सब के सब अपने कर्तव्य और अच्छे कर्म करेगें तो ये जग.... ये देश तो सुधर ही जाएगा ना....।।। 

बात कितनी छोटी सी हैं... पर उसमें गहराई कितनी हैं.... 

मैं आज तक 40  की उम्र में आने के बाद भी उस बात को नहीं भूली हूँ.... मैं अपने बच्चों को भी यही बात समझाती हूँ.... और आज आप सबसे भी ये ही कहना चाहती हूँ की..... हम सामने वाले के सही होने का इंतजार क्यूँ करें.... हम शुरूआत खुद से ही क्यूँ ना करे....।।।।। 
कमियाँ सभी में होती हैं.... मुझमें भी होंगी.... आप में भी होंगी.... लेकिन हमें काम करना हैं खुद को सुधारने का... किसी ओर की कमियाँ नहीं ढूंढनी.... खुद की ढूँढों और उसे मिटाओ....।।। 
अगर सभी ऐसी सोच के साथ काम करेंगे तो ये जग.... हमारा देश जरूर आगे बढ़ेगा.... ये मेरा विश्वास हैं.....।।।।।।। 

जय श्री राम.... 🙏🙏
प्रान्जलि काव्य

प्रान्जलि काव्य

सुंदर रचना

3 नवम्बर 2021

Dinesh Dubey

Dinesh Dubey

बहुत बढ़िया लिखा है

2 नवम्बर 2021

Diya Jethwani

Diya Jethwani

2 नवम्बर 2021

शुक्रिया जी

1
रचनाएँ
फितऱत.....
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आज कल हर कोई एक दूसरे के पीछे लगा हुआ हैं.... सबको एक दूसरे में कमियाँ और खामियां ढूंढने की आदत लग चूकी हैं..... लेकिन क्या कभी खुद से खुद की मुलाकात की हैं.....!!!! इंसान की इसी फितऱत को दर्शाता हैं मेरा यह छोटा सा लेख...।।।।।।।।

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