भूत होते हैं या नहीं, इस विषय पर कोई बात करे तो नतीजा कुछ भी नहीं निकलने वाला लेकिन इतना ज़रूर होगा कि आप उकता जाएंगे। लेकिन ऐसी कितनी ही जगहें हैं जहाँ आज भी इन्सान क़दम रखने से डरते हैं । ऐसा ही है वर्षों से उजाड़ और वीरान पड़ा भूतों का गांव कुलधरा । यह जैसलमेर से लगभग 18 किलोमीटर दूर स्थित है जिसे कभी कर्मकाण्डी पालीवाल ब्राह्मण समाज ने सरस्वती नदी के किनारे पर बसाया था। आज स्थिति यह है कि यहां शाम के बाद कोई इन्सान नहीं रुकता, क्योंकि स्थानीय लोगों के अनुसार यहां रात में भूतों का बसेरा रहता है। भूतों के गांव से यह इतना विख्यात हो चुका है कि राज्य सरकार ने इसे टूरिस्ट स्पॉट घोषित किया है। हो सकता है आपने भी किसी टीवी चैनल पर इस भुतहे गाँव की कहानी देखी हो ! जानकार मानते हैं कि कुलधरा एक शापित गांव है।
कुलधरा जैसलमेर से लगभग अठारह किलोमीटर की दूरी पर स्थिति है । इस इलाक़े में पालीवाल ब्राह्मणों के चौरासी गांव थे और यह उनमें से एक था । इसमें लगभग 600 घर थे। कुलधरा गाँव पूर्ण रूप से वैज्ञानिक तौर पर बना था। पालीवाल ब्राम्हण अत्यंत उद्यमी थे। अपनी बुद्धिमत्ता, कौशल और अटूट परिश्रम के बल पर उन्होंने धरती पर सोना उगाया था । पाली से कुलधरा आने के बाद पालीवालों ने रेगिस्तान की ज़मीन पर खेती करने का सपना देखा था। उन्होंने जिप्सम की परत वाली ज़मीन को पहचाना और वहीं पर बसकर खेती करने लगे। जिप्सम की परत बारिश के पानी को ज़मीन में अवशोषित होने से रोकती और इसी पानी से पालीवाल खेती करते । और ऐसी वैसी नहीं बल्कि जबर्दस्तं फसल पैदा करते । पालीवालों ने ऐसी तकनीक विकसित की थी कि बारिश का पानी रेत में गुम नहीं होता था बल्कि एक खास गहराई पर जमा हो जाता था। यही था उनकी समृद्धि का रहस्य।
लेकिन, वैज्ञानिक आधार पर बसा, अत्यंत विकसित गाँव देखते-देखते वीरान कैसे हो गया ? ऐसा क्या कारण है कि वो गाँव दोबारा नहीं बस पाया ? जानकारों के मुताबिक इस गाँव के उजड़ने की वजह था गाँव का अय्याश दीवान सालम सिंह। गाँव की ही एक सुन्दर लड़की पर उसकी गंदी नज़र ने उस गाँव की तबाही की कहानी लिख दी। दीवान उस लड़की को हर कीमत पर पाना चाहता था। सत्ता के मद में चूर उस दीवान ने लड़की के घर संदेश भिजवाया कि यदि उसे वह लड़की नहीं मिली तो वह गांव पर हमला करके लड़की को उठा ले जाएगा। गाँववाले मुश्किल में पड़ गए। वे उस बेटी को बचें, या पूरे गाँव को? इस पर फैसला लेने के लिए गांव वाले एक मंदिर पर इकट्ठा हो गए और पंचायतों ने फैसला किया कि कुछ भी हो जाए अपनी बेटी उस हैवान के हवाले नहीं करेंगे। अंततः गांव वालों ने गांव खाली करने का निश्चय कर लिया और रातोंरात सभी 84 गांव आंखों से ओझल हो गए। जाते-जाते उन्होंने श्राप दिया कि आज के बाद इन घरों में कोई नहीं बस पाएगा।
पालीवाल ब्राह्मणों के श्राप का असर वहाँ आज भी देखा जा सकता है। जैसलमेर के स्थानीय निवासियों की मानें तो कुछ परिवारों ने कुलधरा में बसने की कोशिश की, लेकिन वह सफल नहीं हो सके। लोग बताते हैं कि जो भी वहां बसने गया, फिर लौटकर नहीं आया। उनका क्या हुआ, वे कहां गए कोई नहीं जानता। इतिहासकारों के मुताबिक पालीवाल ब्राह्मणों ने अपनी संपत्ति जिसमें भारी मात्रा में सोना-चांदी और हीरे-जवाहरात थे, उसे जमीन के अंदर दबा रखा था। पर्यटक यहां इस चाह में आते हैं कि उन्हें यहां की ज़मीन में दबा हुआ सोना मिल जाए। यह गांव आज भी जगह-जगह से खुदा हुआ मिलता है।
कुलधरा जाकर रिसर्च टीमें भी काम कर चुकी हैं जो किसी सकारात्मक निर्णय पर नहीं पहुँच सकीं। सच क्या है, यह आज भी रहस्य है। आवश्यकता है कि चाहे वो देश के बड़े-बड़े आचार्य, ज्योतिषाचार्य एवं वास्तु के जानकार हों, अपने ज्ञान का प्रयोग करें या वैज्ञानिक अपने तरीकों से उस गाँव को बसाने और फिर से हरा-भरा करने का प्रयास करें ताकि यह बात सिद्ध हो सके कि भूत होते ही नहीं हैं, और 'भूत' नाम के डर का अस्तित्व मनुष्य की शक्तियों के आगे कुछ भी नहीं।