8 मार्च 2016
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आकाशवाणी के कानपुर केंद्र पर वर्ष १९९३ से उद्घोषक के रूप में सेवाएं प्रदान कर रहा हूँ. रेडियो के दैनिक कार्यक्रमों के अतिरिक्त अब तक कई रेडियो नाटक एवं कार्यक्रम श्रृंखला लिखने का अवसर प्राप्त हो चुका है. D
वो देखने में तो सींक-सलाई था लेकिन दुस्साहस में हिटलर से कम नहीं। ऊँची-ऊँची जगहों से खेल-खेल में कूद जाना, ज़हरीले कीड़े-मकोड़ों को बेवजह हाथ से पकड़ना और वो तमाम करतब जिनसे वो लोगों का ध्यान अपनी ओर खींच सके, वो सब करने से वह कभी नहीं चूकता था। क़रीब सोलह-सत्रह बरस का रहा
‘एक तो करेला, ऊपर से नीम चढ़ा’...ये कहावत आपने ज़रूर सुनी होगी I इसका मतलब है एक मुश्किल पर दूसरी मुश्किल आ जाना I लेकिन आश्चर्य की बात ये है कि करेला और नीम दोनों ही बड़े काम की चीज़ें है I अगर आप भारत में रहते हैं तो आप करेला और नीम दोनों से ही भलीभांति परिचित होंगे I अगर हम बात सिर्फ नीम की करें तो य
ज़मीन में गड़ा धन मिलने की बातें किसी क़िस्से-कहानी से कम नहीं लगते। लेकिन इन विषयों पर बातें करना, सुनना, जानना बहुत रोमांचकारी होता है। अब सवाल ये कि कौन बताए गड़े धन का पता? इस खोज के लिए विज्ञान के अपने तरीके हैं जबकि ज्योतिष, ध्यान जैसे गूढ़ विज्ञान के अलग तरीक़े और मान्यताएं। हालाँकि, ऐसी कल्पनाओं
श्रीरामचरितमानस में सुन्दरकाण्ड पाठ का बहुत महत्त्व है। इस पाठ के लाभ अनन्त हैं। जीवन में जब व्यक्ति को किसी समस्या का हल कहीं ढूंढे नहीं मिलता, विद्वजन सुन्दरकाण्ड के नियमित पाठ की सलाह देते हैं। कुछ बातें शोध के लिए नहीं, बल्कि श्रद्धापूर्वक करने के लिए होती हैं। विद्यार्थियों, नवयुवकों के लिए मात
"कोई कार्य आरम्भ करने से पहले स्वयं से तीन प्रश्न कीजिये- मैं यह क्यों कर रहा हूँ ? इसके परिणाम क्या हो सकते हैं ? क्या इस कार्य में मैं सफल हो पाउँगा ? गहराई से सोचने पर यदि इन प्रश्नों के संतोषजनक उत्तर मिल जाएं, तभी उस कार्य को आरम्भ करें।" -चाणक्य
"इस बात को व्यक्त मत होने दीजिये कि आपने क्या करने के लिए सोचा है I बुद्धिमानी से उसे रहस्य बनाए रखिए और उस काम को करने के लिए दृढ़ रहिए I" -चाणक्य
भूत होते हैं या नहीं, इस विषय पर कोई बात करे तो नतीजा कुछ भी नहीं निकलने वाला लेकिन इतना ज़रूर होगा कि आप उकता जाएंगे। लेकिन ऐसी कितनी ही जगहें हैं जहाँ आज भी इन्सान क़दम रखने से डरते हैं । ऐसा ही है वर्षों से उजाड़ और वीरान पड़ा भूतों का गांव कुलधरा । यह जैसलमेर से लगभग 18 किलोमीटर दूर स्थित है जिसे
लद गए वो दिन जब आदमी से हाल पूछो तो बड़ी मायूसी से कह देता था, 'बस, चल रही है दाल-रोटी किसी तरह'। अब धोखे से भी ये जुमला मुंह से निकल जाए तो कौन जाने दूसरे ही दिन डाका पड़ जाए। ये मज़ाक नहीं, बल्कि आज की हक़ीक़त है। 20 रूपए किलो आटा और 160 रूपए किलो दाल का भाव उस आदमी को ज़रूर रटा होगा जो सुबह से शाम तक म
हिंदू धर्म में माँ सरस्वती को विद्या की देवी कहा गया है। सरस्वती जी को वीणावादिनि, वीणापाणि एवं वाग्देवी आदि नामों से भी जाना जाता है। सरस्वती जी को श्वेत वर्ण अत्यधिक प्रिय होता है। श्वेत वर्ण सादगी का प्रतीक माना जाता है। हिन्दू धर्म के अनुसार श्री कृष्ण जी ने सर्वप्रथम सरस्वती जी की आराधना की थी।
मनुष्य को स्वप्नावस्था और समाधि जैसी अर्धचेतनावस्था में लाने की कला सम्मोहन कहलाती है। लेकिन, सम्मोहित अवस्था में मनुष्य की इंद्रियाँ तो उसके वश में रहती हैं। वह अपने तमाम कार्य जाग्रतावस्था जैसे ही कर सकता है लेकिन, किंतु यह सब कार्य वह सम्मोहनकर्ता के सुझाव पर करता है।भारत में अति प्राचीन काल से स
हटिया खुली बजाजा बंद, झाड़े रहो कलट्टर गंज...फागुनी मस्ती में शहर के पुराने रईस व सेठों द्वारा उभरते सेठों पर फब्ती है जो बहुचर्चित हुई। आज यह होली की फब्ती हर ज़ुबान पर होती है। आइए इसकी दास्तान जानें। सन् 1866 में शहर के कलेक्टर डब्लू एच हालसी ने अनाज मण्डी का उद्घाटन दशहरे के अवसर पर किया। इससे पह
यदि आप बेरोजगार हैं या बिना लागत आमदनी करके सफलता के शिखर पर पहुंचना चाहते हैं तो डाक विभाग आपकी मदद कर सकता है। डाक विभाग की कैश ऑन डिलीवरी सुविधा का लाभ उठाकर आप मोटी आमदनी कर सकते हैं। आपको करना बस इतना है कि ऑनलाइन अपने शहर की चुनिंदा दुकानों की खास-खास चीजों का प्रचार कीजिए, आर्डर मिल
(व्यंग्य)शहर में ऐसा शोर था कि अश्लील साहित्य का बहुत प्रचार हो रहा है। अखबारों में समाचार और नागरिकों के पत्र छपते कि सड़कों के किनारे खुलेआम अश्लील पुस्तकें बिक रही हैं।दस-बारह उत्साही समाज-सुधारक युवकों ने टोली बनाई और तय किया कि जहाँ भी मिलेगा हम ऐसे साहित्य को छीन लेंगे और उसकी सार्वजनिक
(व्यंग्य)नीम के पेड़ के नीचे बने चबूतरे पर मदारी और जमूरा दोनों पस्त से अलसाए बैठे हैं। गर्मी इतनी कि दूर-दूर तक आदमी तो दूर, कोई जानवर तक नजर नहीं आ रहा। नीम के पत्तों में कोई हलचल नहीं. कोई खड़खड़ाहट नहीं..उमस से हलकान मदारी, जेब से रूमाल निकाल चहरे पर फिराते बोला - ‘जमूरे..’‘हाँ उस्ताद..’ आदतन आलाप
(व्यंग्य)अगर डरता हूँ तो केवल कुत्तों से।ये ख़ौफ़ बचपन से मुझ पर हावी है। स्कूल से छुट्टी होते ही घर लौटते समय टॉमी का इलाका पडता था। मजाल है कि कोई उससे बच के निकल जाए ? क्या साइकिल क्या पैदल ,क्या अमीर क्या गरीब, क्या हिन्दू क्या मुसलमान, सब को सेकुलर तरीके से दौड़ा देता था। हम बस्ता लटकाए एक कोने म
I'm waiting for those who really care for me.Deepak