गर्व इस बात में नहीं कि हिन्दू हूँ या मुसलमान, गर्व इस बात में नहीं कि सिख हूँ या ईसाई, गर्व तो इस बात में है कि इंसान हूँ. 60 के दशक का गीत " ना हिन्दू बनेगा ना मुसलमान बनेगा, इंसान की औलाद है इंसान बनेगा " की महत्ता खत्म हो चुकी. रवीन्द्रनाथ टै
इंसानियत की बस्ती जल रही थी, चारों तरफ आग लगी थी... जहा तक नजर जाती थी, सिर्फ खून में सनी लाशें दिख रही थी, लोग जो जिंदा थे वो खौफ मै यहा से वहां भाग रहे थे, काले रास्तों पर खून की धारे बह रही थी, हर तरफ आग से उठता धुंआ.. चारों और शोर, बच्चे, बूढ़े, औरत... किसी मै फर्क नही किया जा रहा, सबको काट रहे ह