2 जुलाई 2017
सखी री! विरह की इस पल का है कोई छोर नहीं....आया था जीवन में वो जुगनू सी मुस्कान लिए,निहारती थी मैं उनको, नैनों में श्रृंगार लिए,खोई हैं पलको से नींदें, अब असह्य सा इन्तजार लिए,कलाई की चूरी भी मेरी, अब