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इतने ऊंचे उठो कि जितना उठा गगन है

24 फरवरी 2016

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देखो इस सारी दुनिया को एक दृष्टि से

सिंचित करो धरा, समता की भाव वृष्टि से

जाति भेद की, धर्म-वेश की

काले गोरे रंग-द्वेष की

ज्वालाओं से जलते जग में

इतने शीतल बहो कि जितना मलय पवन है॥


नये हाथ से, वर्तमान का रूप सँवारो

नयी तूलिका से चित्रों के रंग उभारो

नये राग को नूतन स्वर दो

भाषा को नूतन अक्षर दो

युग की नयी मूर्ति-रचना में

इतने मौलिक बनो कि जितना स्वयं सृजन है॥


लो अतीत से उतना ही जितना पोषक है

जीर्ण-शीर्ण का मोह मृत्यु का ही द्योतक है

तोड़ो बन्धन, रुके न चिन्तन

गति, जीवन का सत्य चिरन्तन

धारा के शाश्वत प्रवाह में

इतने गतिमय बनो कि जितना परिवर्तन है।


चाह रहे हम इस धरती को स्वर्ग बनाना

अगर कहीं हो स्वर्ग, उसे धरती पर लाना

सूरज, चाँद, चाँदनी, तारे

सब हैं प्रतिपल साथ हमारे

दो कुरूप को रूप सलोना

इतने सुन्दर बनो कि जितना आकर्षण है॥

-द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी

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उठो धरा के अमर सपूतो

24 फरवरी 2016
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उठो धरा के अमर सपूतो पुनः नया निर्माण करो। जन-जन के जीवन में फिर से नई स्फूर्ति, नव प्राण भरो। नया प्रात है, नई बात है, नई किरण है, ज्योति नई। नई उमंगें, नई तरंगे, नई आस है, साँस नई। युग-युग के मुरझे सुमनों में, नई-नई मुसकान भरो। डाल-डाल पर बैठ विहग कुछ नए स्वरों में गाते हैं। गुन-गुन-गुन-गुन करते भ

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इतने ऊंचे उठो कि जितना उठा गगन है

24 फरवरी 2016
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देखो इस सारी दुनिया को एक दृष्टि से सिंचित करो धरा, समता की भाव वृष्टि से जाति भेद की, धर्म-वेश की काले गोरे रंग-द्वेष की ज्वालाओं से जलते जग में इतने शीतल बहो कि जितना मलय पवन है॥ नये हाथ से, वर्तमान का रूप सँवारो नयी तूलिका से चित्रों के रंग उभारो नये राग को नूतन स्वर दो भाषा को नूतन अक्षर दो युग

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मूल मंत्र

24 फरवरी 2016
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केवल मन के चाहे से हीमनचाही होती नहीं किसी की।बिना चले कब कहाँ हुई हैमंज़िल पूरी यहाँ किसी की।।पर्वत की चोटी छूने कोपर्वत पर चढ़ना पड़ता है।सागर से मोती लाने कोगोता खाना ही पड़ता है।।उद्यम किए बिना तो चींटीभी अपना घर बना न पाती।उद्यम किए बिना न सिंह कोभी अपना शिकार मिल पाता।।इच्‍छा पूरी होती तब, जबउ

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कौन सिखाता है चिड़ियों को

24 फरवरी 2016
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कौन सिखाता है चिड़ियों को चीं-चीं, चीं-चीं करना? कौन सिखाता फुदक-फुदक कर उनको चलना फिरना?कौन सिखाता फुर्र से उड़ना दाने चुग-चुग खाना?कौन सिखाता तिनके ला-ला कर घोंसले बनाना?कौन सिखाता है बच्चों का लालन-पालन उनको?माँ का प्यार, दुलार, चौकसी कौन सिखाता उनको?कुदरत का यह खेल, वही हम सबको, सब कुछ देती।किन्

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मैं सुमन हूँ

24 फरवरी 2016
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व्योम के नीचे खुला आवास मेरा;ग्रीष्म, वर्षा, शीत का अभ्यास मेरा;झेलता हूँ मार मारूत की निरंतर, खेलता यों जिंदगी का खेल हंसकर। शूल का दिन रात मेरा साथ किंतु प्रसन्न मन हूँमैं सुमन हूँ...तोड़ने को जिस किसी का हाथ बढ़ता, मैं विहंस उसके गले का हार बनता; राह पर बिछना कि चढ़ना देवता पर, बात हैं मेरे लिए द

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पूसी बिल्ली

29 फरवरी 2016
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पूसी बिल्ली, पूसी बिल्लीकहाँ गई थी?राजधानी देखने मैंदिल्ली गई थी!पूसी बिल्ली, पूसी बिल्लीक्या वहाँ देखा?दूध से भरा हुआकटोरा देखा!पूसी बिल्ली, पूसी बिल्लीक्या किया तुमने?चुपके-चुपके सारा दूधपी लिया मैंने!-द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी

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हम सब सुमन एक उपवन के

29 फरवरी 2016
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हम सब सुमन एक उपवन केएक हमारी धरती सबकीजिसकी मिट्टी में जन्मे हममिली एक ही धूप हमें हैसींचे गए एक जल से हम।पले हुए हैं झूल-झूल करपलनों में हम एक पवन केहम सब सुमन एक उपवन के।।रंग रंग के रूप हमारेअलग-अलग है क्यारी-क्यारीलेकिन हम सबसे मिलकर हीइस उपवन की शोभा सारीएक हमारा माली हम सबरहते नीचे एक गगन केहम

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चंदा मामा, आ जाना

29 फरवरी 2016
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चंदा मामा, आ जाना, साथ मुझे कल ले जाना।कल से मेरी छुट्टी है ना आये तो कुट्टी है।चंदा मामा खाते लड्डू, आसमान की थाली में।लेकिन वे पीते हैं पानी आकर मेरी प्याली में।चंदा देता हमें चाँदनी, सूरज देता धूप।मेरी अम्मा मुझे पिलातीं, बना टमाटर सूप।थपकी दे-दे कर जब अम्मा, मुझे सुलाती रात में।सो जाता चंदा मामा

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मुन्ना-मुन्नी ओढ़े चुन्नी

29 फरवरी 2016
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मुन्ना-मुन्नी ओढ़े चुन्नी, गुड़िया खूब सजाईकिस गुड्डे के साथ हुई तय इसकी आज सगाईमुन्ना-मुन्नी ओढ़े चुन्नी, कौन खुशी की बात है,आज तुम्हारी गुड़िया प्यारी की क्या चढ़ी बरात है!मुन्ना-मुन्नी ओढ़े चुन्नी, गुड़िया गले लगाए,आँखों से यों आँसू ये क्यों रह-रह बह-बह जाए!मुन्ना-मुन्नी ओढ़े चुन्नी, क्यों ऐसा यह

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हम हैं सूरज-चाँद-सितारे

29 फरवरी 2016
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हम हैं सूरज-चाँद-सितारे।।हम नन्हे-नन्हे बालक हैं,जैसे नन्हे-नन्हे रजकण।हम नन्हे-नन्हे बालक हैं,जैसे नन्हे-नन्हे जल-कण।लेकिन हम नन्हे रजकण ही,हैं विशाल पर्वत बन जाते।हम नन्हे जलकण ही,हैं विशाल सागर बन जाते।हमें चाहिए सिर्फ इशारे।हम हैं सूरज-चाँद-सितारे।।हैं हम बच्चों की दुनिया ही,एक अजीब-गरीब निराली।

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