जाते हुए लोग
क्यूँ इस कदर रुलाते हैं ?
ये जाते हुए लोग ।
बनाकर अपना क्यूँ छोड़ जाते हैं?
ये जाते हुए लोग ।
अगर बिछड़ना ही है इनको
मिलते हैं क्यूँ?
आँखो में देकर पानी तड़पाते हैं
ये जाते हुए लोग ।
बेचैन कर देती हैं बातें इनकी,
बन जाती हैं यादें इनकी
गले से लगाते हैं फिर क्यूँ ?
ये जाते हुए लोग ।
ज़िंदगी शिकायत तुझसे नहीं कुछ
जानती हूँ तेरा नहीं कसूर।
रहते नहीं साथ फिर मिलते हैं क्यूँ
ये जाते हुए लोग ।
मुकाम के लिए जो तरसते थे कभी
दर दर भटकते फिरते थे कभी
मुकाम मिलते ही क्यूँ बदल जाते हैं
ये जाते हुए लोग ।
शाहाना परवीन...✍️