मेरी कलम से...
मेरे मन के शब्दों की भाषा
सुनने दो मेरे मन को।
शब्दों को करने दो बात आपस में,
उन्हें खुलकर जीने दो।
सुनो ध्यान से ,क्या कहते हैं शब्द?
दिल की गहराईयों में जाकर,
चुपके से सबको अपना बनाते ये शब्द।
अहसासो का आँचल थामें
धीरे से आगे बढ़ते हैं।
तन्हाईयों को फिर गले लगाते,
सबसे सगी होते ये शब्द।।
सभी सुधी पाठक गण को मेरा स्नेहिल नमस्कार....
मन के भावों को व्यक्त करने का सबसे अच्छा माध्यम लेखन है। मुझे बचपन से ही कहानियाँ , बाल कथाएँ, लेख, आलेख, कविताएँ , पत्र-पत्रिकाएँ आदि पढ़ने में रुचि थी। मेरी इस रूचि को लेखन के क्षेत्र में आगे बढ़ाया मेरे पिताजी ने। जो स्वयं भी लिखने में रूचि रखते थे पर वह कोई कवि या लेखक नहीं थे। कहते हैं कि यदि आप अपनी किसी रूचि को पूरा करने की इच्छा रखते हैं तो उचित मार्ग दर्शन से आप अपने उद्देश्य को प्राप्त करने में सफल हो सकते हैं। मेरे पिताजी के कारण ही आज मैं अपने हसीन ख्वाब को पूरा करने में कामयाब हो पाई हूँ।
"पिता के शब्द आज शाहाना की हर रचना में शाहाना के साथ रहते हैं,
पिता जी पास नहीं आज पर शाहाना की हर रचना में वह महसूस होते हैं।।"
मेरे पिता जी के आशीर्वाद व प्रेरणा से ही यह संभव हो पाया है कि मैं अपने कई संकलन लिख पाई हूँ।
"कुछ ख्वाहिश अधूरी सी" काव्य संग्रह आप सभी के समक्ष प्रस्तुत करते हुए मुझे अपार सुख की अनुभूति हो रही है। इस काव्य संग्रह में मैनें जीवन के विभिन्न पक्षों को उकेरने का प्रयास किया है। मैनें हर विषय पर लिखने का प्रयास किया है। जो विषय हमारे इर्दगिर्द घूमते हैं, हमारे जीवन से सम्बंध रखते हैं उन्हीं पर लिखने की एक छोटी सी कोशिश का नाम है "कुछ ख्वाहिश अधूरी सी"। इस संग्रह के लिए मैं अपने परिवार, साहित्यिक मित्रों को धन्यवाद कहना चाहूगीं जिन्होनें इस काव्य को लिखने के लिए मुझे प्रेरित किया और सहयोग दिया।
मैं आभार व्यक्त करना चाहूगीं शब्द.इन का , जिन्होनें मेरे अंदर हौंसला उत्पन्न किया जिससे मैं अपने काव्य संग्रह को शब्द.इन पर प्रकाशित कर पाई। आप सबका सहयोग व स्नेह बना रहे आपका कोटि कोटि धन्यवाद
शाहाना परवीन...✍️
मुजफ्फरनगर (उत्तर प्रदेश)