कुछ कमी सी है
मुकम्मल ना समझो ज़िंदगी कुछ कमी सी है
जज़बातो में लिपटें अहसास कुछ कमी सी है।
दिल की बात जान सकता सिर्फ दिल ही,
दिल में बसी जो आस कुछ कमी सी है।
ये ख्वाब और साथ अपनो के खड़े होने का,
खूशबू बिखरी अपनेपन की कुछ कमी सी है।
दूर होते अहसास मुसलसल जो थे पास,
चाहे हो कोई कितना भी ख़ास कुछ कमी सी है।
अल्फाज़ सिमटकर चिपक गए एक दूसरे से,
तवज्जो बेशक मिल जाए पर कुछ कमी सी है।
मसला होगा हल जब मिलोगे तुम मुझसे एक दिन,
तसव्वुर में जी हूँ अब तक पर कुछ कमी सी है।
मिले हो इतने बरसों में खुश हो मुझे देखकर,
राब्ता मुझसे दिखाओ कितना भी पर कुछ कमी सी है।
जो आँखू में मेरे आँसू भर आए तुम्हें देखकर,
आँखे हुई तुम्हारी भी नम पर कुछ कमी सी है।
मिट चुके थे अहसास लगता है फिर लौट आए,
अहसासो में डूबे गहरे राज़ पर कुछ कमी सी है।
शाहाना परवीन...✍️