दर्दीले पल
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ये दर्द मुझे जीने नहीं देता,
ना हसने देता ना ही रोने देता।
बस एक खामोश मंज़र है चारों तरफ,
ना जाने क्यूँ मुझे अंधेरा देता ?
तन्हाइयों से कर ली मैने दोस्ती,
नफरत दिल में पल रही।
चाहती हूँ भूल जाऊँ दुनिया को,
ये वक्त मुझे कुछ भूलने नहीं देता।
क्या करूँ किस से कहूँ ?
बात अपने दिल की।
अंधेरो में अंधेरा दिख रहा है मुझे,
अब तो कोई दिया भी रौशनी नहीं देता।
उदास हूँ हर वक्त,
हसी गायब हो गई चेहरे से।
कहाँ से लाऊँ जीने के लिए ताकत,
कोई रास्ता दिखाई नहीं देता।
कोई तो होगा दुनिया में
जो समझेगा दर्द मेरा।
वरना यहाँ तो शाहाना
कोई किसी को सहारा नहीं देता।
शाहाना परवीन...✍️