क्या ज़िंदगी केवल ख्वाहिश है
क्या केवल ख्वाहिशों ही से बनी है ज़िदगी....?
ख्वाहिशों की चाह मे इंसान कब
अपनी ज़िदगी पूरी कर लेता है ....
पता ही नहीं चलता....
रह जाती हैं पीछे सुनहरी वो यादें
जो टकटकी लगाए उसे देखती हैं
जिन यादों को उसने कभी जिया ही नहीं।
फिर भी मन में रह जाता एक सवाल
कुछ ख्वाहिश अधूरी सी।।
अब पछताने से क्या होगा?
वक्त लौट कर नहीं आयेगा।
ख्वाहिशें अधूरी ही रह जायेगीं और
जीवन ऐसे ही गुज़र जायेगा।
मन में फिर से वहीं सवाल आयेगा
कुछ ख्वाहिश अधूरी सी।।
शाहाना परवीन...✍️