मैने दिल से कहा
मैने दिल से कहा वो जो ना कहना था मुझे
मैने चाहा उसे जिसने ना चाहा कभी मुझे।
करती रही इंतज़ार उसका पर ना आया वो,
मिला ना चैन ना ही आराम कहीं भी मुझे।
क्यों क्हूँ ऐसा कि किस्मत अपनी खराब है,
बीच रास्ते मे जब छोड़ दिया उसने ही मुझे।
दिल लगाऊँ किसी और से ऐसा नहीं कर सकती,
चाहती हूँ सिर्फ उसको कुछ नहीं समझता वो मझे।
मेरी मंज़िल उसी से शुरू , खत्म भी उसी पर,
राह देख रही उसकी नहीं आया वो अब कहाँ जाना मुझे?
ना जाने कहाँ खो गया जो मेरी ज़िंदगी में शामिल है?
ऐ वक्त ज़रा रुक नदी पार जाकर तलाशना है मुझे।
शाहाना परवीन...✍️