ये ख्वाहिशें
पा लेना चाहती थी जिसे
समेट लेना चाहती थी दुनिया को
अपने आँचल में
पर क्या पूरी हो पाई ख्वाहिश?
शायद नहीं...
क्योकिं ख्वाहिश कोई आम चीज़ नही है
जो आसानी से मिल जाए।
ख्वाहिश वो है जो
हर किसी से मिन्नतें करवाती है।
ख्वाहिश वो है जो सबको
लालची बनाती है।।
यही ख्वाहिश किसी को दिवाना तो
किसी को मरीज़ बनाती है।
यही ख्वाहिश किसी को कामयाब तो
किसी को नाकामयाब भी बनाती है।।
वो प्यार जो मिलता नसीब से,
बनकर दिल धड़कता किसी और के सीने में
यही ख्वाहिश कभी दिल को पत्थर तो
कभी दिल को कमज़ोर बनाती है।
किसी को अपना तो कभी
किसी को ग़ैर बनाती है।
वक्त तो बदनाम है बेकार में,
समझता है इंसान पर अंजान है।
बिना सोचे समझे करता वो काम
जिससे वह परेशान है।
ख्वाहिश सिमटती जाती है खुद में
धीरे धीरे खत्म हो जाती है हर वो इच्छा
जो कभी ज़िंदगी का एक
मकसद हुआ करती थी।
यही ख्वाहिश किसी को उजाला तो
किसी को अंधकार देती है।
शाहाना परवीन...✍️