ज़रुरी नहीं जो स्वभाव से अच्छा हो वो दिल से भी अच्छा हो ,
और जरुरी ये भी नहीं जो दिल से अच्छा हो वो सोच से भी अच्छा हो ।
तीनो अलग बातें है ,
एक हमारी समाजिकता से बनी है
एक हमारी भावुकता से और
एक हमारी आत्मिकता से ।
30 अक्टूबर 2015
ज़रुरी नहीं जो स्वभाव से अच्छा हो वो दिल से भी अच्छा हो ,
और जरुरी ये भी नहीं जो दिल से अच्छा हो वो सोच से भी अच्छा हो ।
तीनो अलग बातें है ,
एक हमारी समाजिकता से बनी है
एक हमारी भावुकता से और
एक हमारी आत्मिकता से ।
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पेशे से वेब डिज़ाइनर हूँ | शब्दानगरी संगठन सदस्य | कला प्रेमी एवं हिंदी प्रेमी |
Dअर्थपूर्ण भाव के सम्प्रेषण हेतु आपको शब्दनगरी की ओर से धन्यवाद |
30 अक्टूबर 2015
ये वही अंतर है जो होना और दिखना में है स्वाभाव तो दिखने वाली चीज है पर वो अंदर से क्या है वो अलग बात hai
30 अक्टूबर 2015
बिलकुल सही कहा आपने, सामाजिकता, भावुकता और आत्मीयता के सुगढ़ ताने-बाने से ही बनता है हमारा स्वभाव और व्यक्तित्व !
30 अक्टूबर 2015