shabd-logo

जीवित और मृत

3 अगस्त 2022

22 बार देखा गया 22

जमींदार शारदाशंकर के परिवार के साथ उनके रानीघाट स्थित बड़े से घर में रह रही विधवा कादम्बिनी का अब कोई निकट सम्बन्धी नहीं बचा था। एक एक करके सब मर गये थे। उसके पति के परिवार में भी कोई ऐसा नहीं था जिसको कि वह अपना कह सके या जिसका कोई पति या बच्चा हो सिवाय एक छोटे बच्चे के जो कि उसके पति के बड़े भाई का बेटा था व कादम्बिनी की आँख का तारा था।

उस बच्चे की माँ उसके जन्म के पश्चात् बहुत बीमार पड़ गई थी इसलिये उसका पालन पोषण उसकी काकी कादम्बिनी ने किया था। जब कोई किसी और के बच्चे को इतने लाड़ प्यार से पालता है तो उनके बीच में केवल एक ही सम्बन्ध रह जाता है और वह है प्रेम का सम्बन्ध। उस सम्बन्ध में अधिकार या सामाजिक नियम कोई मायने नहीं रखते। प्रेम को कोई किसी कानूनी दस्तावेज के द्वारा प्रमाणित नहीं कर सकता ओर न ही स्वयं प्रेम की यह अभिव्यक्ति होती है।प्रेम केवल और प्रगाढ़ ही हो सकता है क्योंकि यही इसका रूप है।

कादम्बिनी ने अपने कुंठित वैधव्य का सारा प्यार इस बच्चे पर अर्पित कर दिया था कि सावन की एक रात कादम्बिनी की अकस्मात् मृत्यु हो गई। किसी अज्ञात कारणवश उसकी हृदयगति रुक गई। हर जगह समय अपनी गति से चलता रहा परन्तु इस एक छोटे से प्यार से परिपूर्ण हृदय में इसकी घड़ी की सुई चलनी बन्द हो गई। इस मामले को पुलिस की निगाह से दूर व चुपचाप रखने के लिये जमींदार के घर के चार ब्राह्मण कर्मचारियों ने उसके शव को जला दिया।

रानीघाट में श्मसान घाट बस्ती से बहुत दूर एक निर्जन स्थान पर था। वहाँ एक पानी की नाँद के किनारे एक झोपड़ी व उसके बगल में एक विशाल बरगद के वृक्ष के अतिरिक्त कुछ और नहीं था। इस नाँद को वहाँ बहुत समय पहले बहने वाली एक नदी, जो कि अब सूख गई थी, के सूखे हुए हिस्से को खोद कर बनाया गया था व स्थानीय लोग इस नाँद को नदी की एक पवित्र धारा मान कर पूजते थे। ये चार लोग शव को झोपड़ी के अन्दर रख कर चिता के लिये लकड़ी के पहुँचने की प्रतीक्षा करते हुए बैठे थे। लम्बी प्रतीक्षा के बाद वे व्याकुल होने लगे व उनमें से दो व्यक्ति, निताई व गुरुचरण बाकी दोनों व्यक्तियों, विधू व बनमाली, को शव की देखरेख करता हुआ छोड़कर बाहर ये देखने गये कि लकड़ी के आने में इतना विलम्ब क्यों हो रहा है।

वो एक बरसात की काली घटाओं वाली रात थी। आकाश में काले बादल घुमड़ रहे थे और तारे दिखाई नहीं दे रहे थे। झोपड़ी में दो लोग चुपचाप बैठे थे। उनमें से एक के पास उसकी चादर में लिपटी हुई माचिस व मोमबत्ती थी लेकिन वे इस ठंडी हवा में माचिस जला नहीं पाये, इसके साथ साथ लाई हुई लालटेन का तेल भी खत्म हो गया था। कुछ क्षणों की शान्ति के बाद, उनमें से एक बोला, "भाई, अगर हमारे पास थोड़ी तम्बाकू रहती तो कितना अच्छा रहता। हम जल्दबाजी में सबकुछ भूल गए।" दूसरा व्यक्ति बोला, "मैं जाकर दौड़ के थोड़ी सी लेकर आता हूँ। एक मिनट से ज्यादा नहीं लगेगा।" विधू उसकी बात समझते हुए बोला, "अच्छी बात है, तो मैं यहाँ खुद अकेला रुकूँ क्या?’ दोनों फिर से चुप हो गये।

पाँच मिनट एक घंटे के बराबर लग रहा था। दोनों अपने आप को मन ही मन कोसते हुए सोच रहे थे कि लकड़ी लेने गये बाकी दोनों लोग आराम से कहीं बैठकर बीड़ी फूँक रहे होंगे व गप्पें मार रहे होंगे और जल्द ही उनको अपना यह अहसास सच भी लगने लगा था। तालाब के किनारे मेंढकों के टर्राने की व झींगुरों की आवाज के अतिरिक्त कहीं कोई आवाज नहीं थी। तभी अचानक उनको ऐसा लगा कि पलंग थोड़ा हिल सा रहा है व शव ने एक तरफ करवट ली है। विधू और बनमाली थरथर काँपने लगे और भगवान को याद करने लगे। अगले ही क्षण एक लम्बी सी आह सुनाई दी जिसे सुनते ही वे दोनों तुरन्त बाहर भागे व गाँव की ओर दौड़ने लगे।

कुछ मील दौड़ने के बाद, वे रास्ते में बाकी दोनों साथियों से मिले जो हाथों में लालटेन लिये हुए थे। उन दोनों ने सच में बीड़ी फूँकी थी और उनको लकड़ी के बारे में कुछ अता पता नही था। उन्होंने झूठ बोलते हुए कहा कि लकड़ी कट रही है व थोड़ी देर में पहुँचने वाली है। तब विधू व बनमाली ने उनको झोपड़ी में जो हुआ कह सुनाया। निताई व गुरुशरण बोले कि ये सब बकवास है व उन दोनों को अपनी जगह छोड़ के भागने के लिये फटकारने लगे।

वे चारों तुरन्त श्मसान घाट की झोपड़ी की तरफ लौटे। अंदर जाकर उन्होंने देखा कि पलंग खाली था और लाश का कोई अतापता नहीं था। वे एक दूसरे की तरफ घूरने लगे। क्या यह भेड़ियों का काम हो सकता है? लेकिन यहाँ तो वो कपड़ा भी नहीं था जिससे उन्होंने लाश को ढका था। झोपड़ी के चारों तरफ ढूँढ़ने पर उन्होंने दरवाजे के पास मिट्टी में कुछ ताजा व छोटे पदचिन्हों को देखा जो कि किसी औरत के प्रतीत होते थे। अब समस्या यह थी कि यह बात जमींदार को कैसे बताई जाए। जमींदार शारदाशंकर मूर्ख नहीं थे जो कि भूत की बात का विश्वास कर लें। लम्बे विचार विमर्श के बाद उन्होंने सोचा कि वे कहेंगे कि उन्होंने शव की अंत्येष्टि कर दी है।

सूर्योदय के समय जब कुछ व्यक्ति लकड़ी लेकर आये तो इन चारों ने उनसे कह दिया कि देर हो जाने की वजह से उन्होंने झोपड़ी में रखी लकड़ी से ही शवदाह कर दिया। उन लोगों को इस बात पर शक करने का कोई कारण नहीं था। एक शव कोई ऐसी बहुमूल्य वस्तु तो है नहीं कि जिसे कोई चुरा ले।

यह संभव है कि कभी कभी एक शरीर जो कि मृत प्रतीत होता है, असल में जीवित होता है किन्तु सुषुप्तावस्था में अचेतन होता है व वो कुछ समय बाद फिर से जीवित हो सकता है। सच में कादम्बिनी मरी नहीं थी, किसी कारणवश वो मृतप्रायः या अचेतन हो गई थी किन्तु अब फिर से ठीक हो गई थी।

जब उसको होश आया, उसने अपने चारों तरफ अँधेरा देखा। उसने पाया कि यह जगह उसके सोने का कमरा नहीं थी। उसने एक बार दीदी कहकर पुकारा किन्तु अँधेरे में कोई उत्तर नहीं आया। उसको अपनी छाती में दर्द उठना व साँस का रुकना याद आया और वो उठ बैठी। उसको याद आया कि उसकी सबसे बड़ी जेठानी कमरे के कोने में बैठकर स्टोव पर बच्चे के लिये दूध गरम कर रही थी कि तभी उसको खड़े होने में असमर्थता महसूस हुई और वो पलंग पर गिर पड़ी। उसने हाँफते हुए पुकारा, "दीदी, मुन्ने को मेरे पास लाओ, मुझे लगता है मैं मरने वाली हूँ।" तभी उसकी आँखों के सामने अँधेरा छा गया ऐसे जैसे कि किसी लिखे हुए कागज के ऊपर स्याही फैल गई हो। उस क्षण कादम्बिनी की सारी स्मरणशक्ति व चेतना में, उसके जीवन की किताब के अक्षरों में भेद करना असम्भव सा हो गया। इस समय उसको यह भी याद नहीं रहा कि उसके भतीजे ने अपनी मीठी आवाज में उसको आखिरी बार काकी माँ कहकर पुकारा था, कि उसको प्रेम की दवा की आखिरी पुड़िया मिली थी जो कि उसकी इस संसार से मृत्यु की अनजानी व कभी भी समाप्त न होने वाली यात्रा पर देखभाल करेगी।

उसको लगता था कि मृत्यु के स्थान पर अँधेरे व निर्जनता के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। वहाँ देखने व सुनने के लिये कुछ भी नहीं था और वो वहाँ हमेशा जागते हुए बैठे रहने व प्रतीक्षा करने के अलावा कुछ भी नहीं कर सकती थी। तभी उसको खुले हुए दरवाजे से हवा का एक ठंडा व गीला झोंका महसूस हुआ, बरसाती मेंढकों के टर्राने की आवाज सुनाई दी और उसको बचपन से लेकर अब की सारी बातें यकायक याद आ गईं। उसको लगने लगा कि उसका इस संसार से अभी भी कुछ रिश्ता है। तभी अचानक बिजली की चमक में एक पल में उसको नाँद, बरगद का पेड़, बड़ा सा मैदान व पेड़ों की कतार दिखाई दिये। उसको याद आने लगा कि कैसे उसने कुछ शुभ अवसरों पर उस नाँद में स्नान किया था, कैसे श्मसान घाट में मृत शवों को देखकर उसको मृत्यु की भयावहता का अहसास होने लगता था।

उस समय उसके मन में जो पहला विचार आया वो था घर लौटने का। पर तभी उसने सोचा, "वे लोग मुझे वापस स्वीकार नहीं करेंगे क्योंकि उनकी नजरों में मैं जीवित नहीं हूँ। यह उनके लिये एक श्राप की तरह होगा। मुझे जीवितों की धरती से निकाल दिया गया है और मैं जीवित मृत हूँ। अगर ऐसा नहीं होता तो कैसे वो शारदाशंकर के घर की सुरक्षित चाहरदीवारी से बाहर निकल कर इस सुदूर श्मसान घाट तक पहुँच गई थी। परन्तु यदि दाह संस्कार का काम अभी तक समाप्त नहीं हुआ है तो उन लोगों का का क्या हुआ जो उसको जलाने आये थे।, उसको शारदाशंकर के घर में मरने से पहले बीते हुए अंतिम पल याद आने लगे और अपने आप को इस दूर एक श्मसान घाट में पाकर, उसने अपने आप से कहा, "मेरा अब जीवित लोगों के संसार से कोई सम्बन्ध नहीं है। मैं डरावनी हूँ, बुराई का एक पुतला हूँ, मैं अपनी खुद की भूत हूँ।"

उसको सारे बंधन व नियम टूटते हुए लगे। ऐसा लगा कि उसमें जहाँ वह चाहे वहाँ जाने की, जो चाहे वो करने की एक अज्ञात शक्ति व असीमित छूट है। इस भावना के साथ वो उस झोपड़ी से एक पागल स्त्री के जैसे हवा के एक झोंके की तरह निकली और बिना किसी भय, लज्जा या चिन्ता के वो उस अँधेरे मैदान में भागने लगी।

किन्तु चलते-चलते उसके पैरों में दर्द होने लगा व उसको कमजोरी महसूस होने लगी। मैदान का दूर दूर तक कोई अन्त दिखाई नहीं देता था और यहाँ वहाँ धान के खेत और पानी के गहरे तालाब दिखाई देते थे। सूर्योदय के बाद, धीरे धीरे उसको शीशम के पेड़ दिखाई पड़ने लगे और चिड़ियों के चहचहाने की आवाज सुनाई देने लगी थी। अब उसको बहुत डर लग रहा था। उसे तनिक भी आभास नहीं था कि वो कहाँ है व अब उसका दुनिया के लोगों से क्या सम्बन्ध होगा। सावन की उस रात, जब तक उस विशाल मैदान में अँधेरा था, तब तक वो निर्भीक होकर अपने में ही मस्त थी पर अब उजाला व मनुष्य की उपस्थिति उसको परेशान करने लगे। जैसे मनुष्यों को भूत प्रेतों से डर लगता है, वैसे ही भूत प्रेतों को भी मनष्यों से डर लगता है, ये दोनों नदी के दो अलग अलग किनारों पर रहने वाली दो भिन्न प्रजातियाँ हैं।

रास्ते में ऐसे किसी पागल स्त्री की तरह विचरते हुए, मिट्टी से सने हुए कपड़ों में व उसके अजीबोगरीब व्यवहार से कादम्बिनी किसी को भी डरा सकती थी। ऐसे में बच्चे तो शायद उसको देखकर दूर भाग जाते व दूर से ही उस पर पत्थर फेंकते। सौभाग्यवश, पहला व्यक्ति जिसने उसे इस स्थिति में देखा, एक सज्जन था।

उस व्यक्ति ने उसके पास जाकर पूछा, "माँ, ऐसा लगता है कि तुम किसी भद्र परिवार से सम्बन्ध रखती हो। ऐसी स्थिति में तुम इस रास्ते पर अकेले कहाँ जा रही हो?’

पहले तो कादम्बिनी ने उस व्यक्ति के प्रश्न का कोई उत्तर नहीं दिया और उसकी ओर खाली निगाहों से घूरने लगी। उसको सब कुछ छूटा छूटा सा लग रहा था। उसको समझ में नहीं आ रहा था कि वो इस संसार में जीवित कैसे थी, कैसे एक राहगीर उससे प्रश्न पूछ रहा था व कैसे वो इस व्यक्ति को एक भद्र महिला लग रही थी।

उस सज्जन ने फिर पूछा, "माँ, मेरे साथ आओ, मैं तुम्हें तुम्हारे घर ले जाऊँगा। बताओ तुम्हारा घर कहाँ है?’

कादम्बिनी सोच में पड़ गई। वो अपनी ससुराल वापस जाने का सोच भी नहीं सकती थी और उसका कोई अपना पैतृक घर भी नहीं था कि तभी उसे अपनी बचपन की सहेली योगमाया का ध्यान आया। हालाँकि वो उससे बचपन के बाद नहीं मिली थी, उनमें बीच बीच में पत्राचार होता रहता था। कभी कभी उनमें इस बात पर जरूर प्रतियोगिता होती थी कि उसमें से कौन एक दूसरे को ज्यादा प्यार करता है। कादम्बिनी का कहना था कि वो योगमाया से ज्यादा किसी चीज को प्यार नहीं करती थी और योगमाया का कहना था कि कादम्बिनी उसके प्यार को ठीक से समझ नहीं पाती थी। पर उन दोनों को यह मालूम था कि अगर दुबारा मौका मिला तो दोनों एक दूसरे का साथ नहीं छोड़ेंगी। "मैं निशिंदपुर में श्रीपति चरण बाबू के घर जा रहीं हूँ।" कादम्बिनी ने उस सज्जन से कहा।

वो व्यक्ति कोलकाता जा रहा था। निशिंदपुर पास तो नहीं था पर वो उसके रास्ते से हट के नहीं था। उसने खुद कादम्बिनी को श्रीपति चरण बाबू के घर पहुँचाया।

प्रारम्भ में दोनों सहेलियों को एक दूसरे को पहचानने में परेशानी हुई पर जैसे ही उन्हें एक दूसरे में बचपन का रूप दिखा, उनकी आँखें चमक उठीं। योगमाया बोली, "मैंने कभी भी नहीं सोचा था कि मैं तुमको दुबारा देखूँगी। तुम यहाँ कैसे? तुम्हारे ससुराल ने क्या तुम्हें घर से निकाल दिया है?’

कादम्बिनी कुछ देर चुप रहने के बाद बोली, "भई, मुझसे मेरी ससुराल के बारे में मत पूछो। तुम मुझे अपने घर के एक कोने में एक नौकर की तरह आश्रय दे दो, मैं तुम्हारा हर काम करूँगी।"

योगमाया ने कहा, "अरे वाह, तुम मेरी नौकरानी कैसे हो सकती हो, तुम तो मेरी सहेली, मेरी बहन जैसी हो।" तभी श्रीपति बाबू कमरे में आये। कादम्बिनी उनकी ओर एक क्षण के लिये देखकर बिना सर ढके व बिना कोई आदरभाव दिखाये धीरे से कमरे से बाहर चली गई। योगमाया ये सोचकर कि कहीं श्रीपति बाबू उसकी सहेली के अभद्र व्यवहार से गुस्सा न हो जाएँ, उनसे माफी माँगने लगी। श्रीपति बाबू इतनी आसानी से मान गये कि उसको कुछ अजीब सा लगा।

हालाँकि कादम्बिनी ने अपनी सहेली के घर का काम सँभाल लिया था पर वो उसके साथ घनिष्ठ नहीं हो पाई, उनके बीच में मृत्यु की एक दीवार थी। यदि कोई व्यक्ति खुद पर संदेह करने लगता है या अपने बारे में ही सावधान रहता है तो वो किसी और के साथ घनिष्ठ नहीं हो सकता है। कादम्बिनी को ऐसा लगता था कि योगमाया, उसका घर व पति किसी और संसार के हैं। वो सोचती थी, "वे लोग प्यार, कर्तव्य व भावनाओं से परिपूर्ण एक संसार में रहते हैं और मैं एक खाली छाया हूँ। वे लोग जीवित संसार में हैं और मैं इस संसार से परे हूँ।"

ये सब देखकर योगमाया भी परेशान थी और उसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था। अनिश्चितता के वातावरण में कविता, बहादुरी, या शिक्षा तो पनप सकते हैं किन्तु घरेलू माहौल नहीं और इसी कारण औरतें किसी भी रहस्य को दबा कर नहीं रख सकती हैं। इसलिये जिस चीज को वे समझ नहीं सकती हैं, या तो वे उस चीज से अपना नाता ही तोड़ लेती हैं व कोई सम्बन्ध नहीं रखती हैं या फिर वे उस चीज को किसी और ज्यादा उपयोगी चीज से बदल देती हैं। और यदि उनको कुछ भी समझ में नहीं आता है तो वे क्रोधित हो जाती हैं। जैसे जैसे कादम्बिनी का व्यवहार योगमाया की समझ से परे होने लगा, उतना ही योगमाया को उसके ऊपर इस बात पर गुस्सा आने लगा कि क्यों यह आफत उसके गले आन पड़ी है।

यहाँ पर एक और समस्या थी। कादम्बिनी खुद भी डरी हुई थी पर फिर भी वो अपने आप से भाग नहीं सकती थी। भूत प्रेत से डरने वाले लोग अंदर ही अंदर भयभीत हो जाते हैं क्योंकि वे भय के कारण को साक्षात देख नहीं सकते हैं। पर कादम्बिनी को किसी बाहरी चीज का डर थोड़े ही था, वो तो खुद अपने आप से ही डरी हुई थी। कभी कभी दिन की शांति में वो कमरे में अकेले बैठे हुए ही चिल्लाने लगती थी और शाम को लैंप की रोशनी में अपनी छाया को देखकर जोर जोर से कांपने लगती थी। घर का हर सदस्य उसके डर से चौकन्ना था। घर के नौकर, नौकरानियाँ व स्वयं योगमाया को सब जगह भूत नजर आते थे। तभी एक दिन आधी रात को कादम्बिनी अपने कमरे के दरवाजे पर आकर चिल्लाई, "दीदी, दीदी, मैं तुमसे विनती करती हूँ मुझे अकेला मत छोड़ो।

योगमाया को डर भी लग रहा था व क्रोध भी आ रहा था। उसका बस चलता तो उसी समय वो उसको घर से निकाल देती। पर दयालु-हृदय श्रीपति बाबू ने बड़े यत्न से कादम्बिनी को शांत कराया व बगल के कमरे में भेज दिया।

अगले दिन श्रीपति बाबू को अनपेक्षित रूप से फटकार मिली। योगमाया ने उन पर लांछन लगाते हुए कहा, "तो कितने अच्छे पुरुष है आप, एक औरत अपने पति का घर छोड़कर आपके घर में रहने लगती है, महीनों बाद भी वो जाने का नाम नहीं लेती है पर फिर भी आपने कभी तनिक शिकायत तक नहीं की। आप क्या सोचते हैं, मैं आप जैसे मर्दों को अच्छी तरह समझती हूँ।"

यह सच है कि औरत पुरुष की कमजोरी होती है और औरतें उनके ऊपर इस बात को लेकर ज्यादा आक्षेप लगा सकती हैं। यद्यपि वो यह कसम खाने को तैयार थे कि सुन्दर पर बेचारी कादम्बिनी के प्रति उनके मन में कोई खोट नहीं था फिर भी उनके व्यवहार से उल्टा ही प्रतीत होता था। कादम्बिनी के आने के समय उन्होंने अपने आप से कहा था, "हो सकता है कि इस निःसंतान विधवा के साथ उसके घर वालों ने अन्याय किया हो या क्रूरता भरा व्यवहार किया हो इसीलिये वो वहाँ से भागकर हमारे यहाँ शरण लेने आई है। चूँकि उसके माता पिता नहीं हैं इसलिये मैं उसको कैसे छोड़ सकता हूँ?" उन्होंने इस विषय पर और सवाल जबाब करना उचित नहीं समझा क्योंकि हो सकता है कि वो इस विषय पर पूछे सवालों से और परेशान न हो जाए।

पर चूँकि अब उनकी अपनी पत्नी ही उनके उदार व धैर्यवान व्यवहार की ओर लांछन लगा रही थी, उनको लगा कि अपने घर में शान्ति रखने के लिये कादम्बिनी के ससुराल वालों को उसके बार में बताना ही होगा। आखिरकार काफी सोचविचार के बाद वे इस निर्णय पर पहुँचे कि कादम्बिनी के ससुराल को पत्र लिखने के बजाय खुद ही रानीघाट जाकर वस्तुःस्थिति का पता करना ज्यादा उचित रहेगा।

श्रीपति बाबू के जाने के बाद योगमाया कादम्बिनी के पास जाकर बोली, "प्रिय, अब तुम्हारा यहाँ रहना उचित नहीं है। लोग क्या कहेंगे?"

कादम्बिनी ने योगमाया की तरफ देखकर कहा, "मेरा लोगों से कुछ लेना देना नहीं है।"

योगमाया थोड़ी सी हताश होकर चिड़चिड़ी आवाज में बोली, "हो सकता है कि तुम्हारा कोई लेना देना न हो लेकिन हमारा तो है। आखिर कब तक हम किसी और की विधवा को अपने घर में रख सकते हैं?’

कादम्बिनी ने कहा, "मेरे पति का घर कहाँ है?’

योगमाया ने सोचा, "उफ! ये औरत क्या बक रही है।’

कादम्बिनी धीरे से बोली, "मैं तुम्हारी क्या लगती हूँ? क्या मैं संसार की हूँ? तुम सब हँसते हो, रोते हो, प्यार करते हो, तुम्हारे पास कई सारी चीजें हैं, मैं तो केवल देखती रहती हूँ। तुम सब मनुष्य हो, मैं तो केवल एक छाया हूँ। मुझे समझ नहीं आता कि मैं भगवान ने क्यों मुझे तुम लोगों के बीच डाल दिया है। तुम्हें ये चिन्ता है कि मैं तुम्हारा घर बरबाद कर दूँगी पर मुझे ये नहीं समझ में आता कि मेरा तुमसे सम्बन्ध क्या है। पर जब भगवान ने मेरे लिये कोई जगह नहीं छोड़ी है तो मैं तुम्हारे पास ही रहूँगी व तुम्हें परेशान करूँगी फिर चाहे तुम मुझे मार ही क्यों न डालो।"

उसकी आँखों व आवाज में कुछ ऐसा था कि योगमाया उसकी बात का शब्दार्थ न समझते हुए भी मतलब समझ गई और उसको कोई उत्तर देते न बना। न ही अब उसे कोई प्रश्न पूछते बना और दुखी व पराजित मुद्रा में वो कमरे के बाहर चली गई।

श्रीपति बाबू रानीघाट से रात के दस बजे के करीब लौटे। भारी बरसात से सब कुछ धुला धुला सा लगता था। बरसात की आवाज से ऐसा लगता था ये कभी बन्द नहीं होगी व रात का भी कोई अन्त नहीं होगा।

"क्या हुआ?" योगमाया ने पूछा।

"ये एक लम्बी कहानी है।" श्रीपति बाबू ने कहा। "मैं तुम्हें बाद में बताऊँगा?" उन्होंने अपने गीले कपड़े उतार कर खाना खाया व तम्बाकू पीने के बाद सोने चले गये। वे कुछ सोच में डूबे हुए लग रहे थे। योगमाया ने अब तक तो अपनी जिज्ञासा को दबा के रखा था पर बिस्तर पर पहुँचते ही उसने पूछा, "क्या पता लगा, बताइये मुझे?"

"तुमसे जरूर कोई गलती हुई है।" श्रीपति बाबू ने कहा।

योगमाया ये सुनकर थोड़ा सा नाराज हो गई। औरतें कभी गलतियाँ नहीं करती हैं और अगर वो करती भी हैं तो आदमियों के लिये उसका जिक्र न करना ही उचित है। बात को ऐसे ही जाने देना चाहिये।

योगमाया ने थोड़ा उग्र स्वर में पूछा, "किस बात में?’

श्रीपति बाबू ने कहा, "जिस औरत को तुमने घर में आश्रय दिया है वो तुम्हारी सहेली कादम्बिनी नहीं है?" एक पति के मुँह से इस प्रकार की बात निकलना झगड़े की बात हो सकती है।

"तो तुम्हारा कहना ये है कि मैं अपनी ही सहेली को नहीं जानती।" योगमाया बोली "क्या मुझे उसको पहचानने में तुम्हारा इन्तजार करना पड़ेगा, अजीब बात है?"

श्रीपति बाबू बोले, "ये बात नहीं है, मैं यह सबूत के आधार पर बोल रहा हूँ।" उन्हें इस बात के बारे में कोई संदेह नहीं था कि कादम्बिनी मर चुकी है।

"सुनिये, योगमाया बोली। "आपको पूरी बात का पता नहीं है। आपने जो भी जहाँ से भी सुना है सही नहीं है। वैसे भी आपसे जाने को किसने कहा था, अगर आपने एक पत्र लिख दिया होता तो पूरी बात का खुलासा हो गया होता?"

अपनी पत्नी के अविश्वास को देखकर श्रीपति बाबू ने सारे सबूतों को पूरी तरह पूरी तरह से समझाने का प्रयास किया किन्तु असफलता ही हाथ लगी। वे दोनों थोड़ी थोड़ी देर में बहस करने लगते थे। लेकिन दोनों ही इस बात पर सहमत हो गये कि कादम्बिनी को घर से तुरन्त निकाल देना चाहिये क्योंकि श्रीपति बाबू का यह विश्वास था कि उनकी अतिथि उन लोगों के साथ छल कर रही है और योगमाया का यह मानना था कि वो अपने घर से भाग कर आई है। पर बहस के दौरान उनमें से कोई भी अपनी बात से हटने को तैयार न था। वे जोर जोर से बोलने लगे? इससे अनजान कि कादम्बिनी बगल के कमरे में थी।

एक आवाज आई, "ये बहुत खराब बात है। जो भी हुआ मैंने अपने कानों से सुना था?"

दूसरी चिल्लाने की आवाज आई, "मैं ये कैसे मान लूँ,मैं उसको अपनी आखों से पहचान सकती हूँ?"

आखिरकार योगमाया बोली, "ठीक है? ये बताइये कि कादन्बिनी कब मरी थी?" वो सोच रही थी कि कादम्बिनी के लिखे हुए पत्रों की तारीखों से वो श्रीपति बाबू को गलत सिद्ध कर देगी। पर उसने पाया कि कादम्बिनी श्रीपति बाबू को बताई गई तारीख के ठीक एक दिन बाद उनके घर आई थी। योगमाया को अपना हृदय जोर से धड़कने हुआ लगने लगा व श्रीपति बाबू भी थोड़ा असहज महसूस कर रहे थे। तभी अचानक उनके कमरे का दरवाजा खुल गया व ठंडी हवा से उनके कमरे का लैंप बुझ गया। उनका कमरा ऊपर से नीचे तक बाहर के अँधेरे से भर गया। तभी कादम्बिनी उनके कमरे के अंदर आकर खड़ी हो गई। सुबह का करीब ढाई बज रहा था और बाहर मूसलाधार बरसात हो रही थी। "सखी, कादम्बिनी बोली, "मैं तुम्हारी कादम्बिनी ही हूँ पर अब मैं जीवित नहीं हूँ। मैं मृत हूँ?"

यह सुनकर योगमाया डर के मारे चिल्ला पड़ी व श्रीपति बाबू की भी जबान बंद हो गई। "पर ये बताओ कि मृत होने के अलावा मैंने तुम्हारा और कौन सा नुकसान किया है? यदि मेरे पास इस समय इस संसार में रहने के लिये कोई और जगह नहीं है तो मैं कहाँ जाऊँ?’ और तभी वो ऐसे चीखी जैसे कि बरसात की इस रात में वो भगवान को नींद से जगाना चाहती हो, "बताओ? कहाँ जाऊँ मैं?’ ऐसा कहने के बाद दोनों पति पत्नी को भौंचक्का छोड़कर कादम्बिनी या तो एक ठिये की खोज में या किसी और संसार की ओर चली गई।

ये कहना मुश्किल है कि कादम्बिनी रानीघाट कैसे पहुँची। पहले तो वो अपने को किसी को दिखाए बिना एक दिन तक एक खण्डहरनुमा मंदिर में बिना खाये पिये पड़ी रही। बरसात की इस शाम के समय, जब अँधेरा जल्दी हो जाता है व गांव के लोग तूफान के डर से अपने घरों में चले गये, कादम्बिनी सड़क पर फिर से प्रकट हुई। जैसे जैसे उसकी ससुराल पास आने लगी, उसका दिल जोरों से धड़कने लगा पर उसने सिर पर नौकरानियों की तरह लंबा सा घूंघट डाल लिया और दरबानों ने उसको अंदर जाने से नहीं रोका। बीच में, बरसात और तेज हो गई थी और हवा प्रचंड वेग से बह रही थी।

शारदाशंकर की पत्नी जो कि घर की मालकिन थी, उसकी विधवा जेठानी के साथ ताश खेल रही थी और बुखार से पीड़ित छोटा बच्चा शयनकक्ष में सो रहा था। कादम्बिनी सबकी नजर बचाकर शयनकक्ष में पहुँची। ये कहना असम्भव है कि वो ससुराल वापस क्यों आई थी। शायद उसको खुद इस बात का पता नहीं था पर शायद वो बच्चे को दोबारा देखना चाहती थी। इसके बाद उसको नहीं पता था कि वो कहाँ जाएगी या उसका क्या हाल होगा।

लैंप की रोशनी में उसने एक कमजोर और दुर्बल से छोटे से बच्चे को मुठ्ठी बाँध कर सोते हुए देखा। बच्चे को देखकर उसकी ममता की प्यास फिर से जाग उठी कि कैसे वो बच्चे को हर दुर्भाग्य या विपदा से बचाने के लिये उसको एक आखिरी बार अपनी छाती में भींच लेना चाहती थी। पर तभी उसने सोचा, "जब मैं यहाँ नहीं रहूँगी तो इसकी देखभाल कौन करेगा? इसकी माँ को तो सहेलियों का साथ, ताश खेलना, गप्पें मारना पसन्द है व वो इसको मेरी देखरेख में लम्बे समय के लिये भी छोड़कर खुश थी जिससे कि उसको इसके पालनपोषण के बारे में कभी कोई चिन्ता नहीं करनी पड़ती थी। अब इसकी मेरे जैसी देखभाल कौन करेगा?’ तभी उस बच्चे ने करवट बदलते हुए कहा आधी नींद में कहा, "काकी माँ, मुझे थोड़ा पानी दो, "उसने तुरन्त उत्तर दिया, "मेरे प्यारे बेटे, मेरे लाल, तुम अपनी काकी माँ को अभी तक नहीं भूले, "वो घड़े से तुरन्त पानी लेकर आई व उसको अपनी छाती से लगाकर पानी पिलाने लगी। जब तक वो बच्चा नींद में था, उसको अपनी काकी के हाथ से पानी पीने में जरा भी आश्चर्य नहीं हुआ क्योंकि वह उसका आदी था। पर जैसे ही कादम्बिनी, जो कि अपनी ममता की प्यास को तृप्त कर रही थी, ने बच्चे को चूम कर दुबारा लिटाया, बच्चा नींद से जाग गया व उससे चिपक कर बोला, "काकी माँ, क्या तुम मर गई थीं?’

उसने कहा, "हाँ, मेरे बेटे।"

"तो तुम वापस कैसे आईं, तुम दोबारा तो नहीं मरोगी?’

जब तक कि वो कोई उत्तर दे, हंगामा मच गया क्योंकि एक नौकरानी जो अपने हाथ में एक कटोरा लेकर आई थी, चिल्लाते हुए बेहोश होकर गिर पड़ी। उसकी चीख सुनकर शारदाशंकर की पत्नी ताश फेंक कर तुरन्त दौड़ी दौड़ी आईं, कादम्बिनी तो कमरे में खड़ी एकदम जड़ हो गई थी व वो भागने या कुछ बोलने में भी असमर्थ थी। ये सब देखकर बच्चा भी डर गया। उसने सिसकते हुए कहा, "काकी माँ, आपको जाना चाहिये।"

कादम्बिनी को आज पहली बार लगा कि वो मरी नहीं थी। ये पुराना घर, घर की हर चीज, बच्चा, उसका प्यार, ये सब कुछ ही तो उसके लिये समान रूप से जीवित थे और उन सबके व कादम्बिनी के बीच अब कोई फासला न था। जब तक वो अपनी सहेली के घर में रही, वो अपने को मृत महसूस करती रही, ऐसा लगता रहा जैसे कि वो औरत जिसे उसकी सहेली जानती थी मर चुकी थी। पर अब उसने अपने भतीजे के कमरे में महसूस किया कि उसकी काकी माँ कभी मरी ही नहीं थी।

"दीदी, वो टूटे से स्वर में बोली, "आप मुझसे डर क्यों रही हैं, देखिये मैं जैसी थी वैसी ही हूँ।"

उसकी जेठानी अपने को सम्भाल न सकीं और गिर पड़ीं।

अपनी बहन से यह समाचार पाकर शारदाशंकर बाबू खुद अंदर गये। वो हाथ जोड़ कर गिड़गिड़ाते हुए बोले, "भाभी, आपका यह करना उचित नहीं है। सतीश हमारे परिवार का इकलौता बच्चा है, आप उसको नजर क्यों लगा रही हैं, क्या हम आपके लिये अजनबी हैं, जब से आप गई हैं, वो प्रतिदिन कमजोर होता चला गया, लगातार बीमार रहा और रात दिन काकी माँ काकी माँ पुकारता रहा है। पर अब जब आपने इस संसार से विदा ले ली है तो कृपया उससे अपने को मत जोड़िये, कृपया चली जाइये, हम आपकी अंत्येष्टि उचित रीतियों से कर देंगे।"

कादम्बिनी और न सह सकी। वो चीख कर बोली, "मैं मरी नहीं थी, मैं मरी नहीं थी, मैं बोलती हूँ। मैं आपको कैसे समझाऊँ कि मैं मरी नहीं थी। क्या आप देख नहीं सकते कि मैं जीवित हूँ।" यह कह कर उसने जमीन पर गिरे हुए पीतल के कटोरे को उठाकर अपने माथे पर मारा, चोट से खून बहने लगा। "देखिये, मैं जीवित हूँ।"

शारदाशंकर वहाँ एक मूर्ति की तरह खड़े रहे, छोटा बच्चा अपने पिता के लिये रोने लगा और दोनों औरतें जमीन पर विक्षिप्त पड़ी थीं। कादम्बिनी रोते हुए व "मैं मरी नहीं थी, मैं मरी नहीं थी, " कहते हुए कमरे से भागी और उसने सीढ़ियों से उतर कर घर के अंदर एक पानी की नाँद में डुबकी लगा दी। ऊपर की मंजिल से शारदाशंकर ने पानी के छपाके की आवाज सुनी।

उस रात पूरी रात बरसात हुई और सुबह होने तक जारी थी, यहाँ तक कि दोपहर को भी कोई राहत नहीं मिली। कादम्बिनी ने मर कर यह सिद्ध कर दिया कि वो मरी नहीं थी।

103
रचनाएँ
रवीन्द्रनाथ टैगोर की प्रसिद्ध कहानियाँ
0.0
रबीन्द्रनाथ टैगोर एक महान भारतीय कवि थे। उनका जन्म 7 मई 1861 में कोलकाता के जोर-साँको में हुआ था। इनके माता-पिता का नाम शारदा देवी (माता) और महर्षि देवेन्द्रनाथ टैगोर (पिता) था। टैगोर ने अपनी शिक्षा घर में ही विभिन्न विषयों के निजी शिक्षकों के संरक्षण में ली। कविता लिखने की शुरुआत इन्होंने बहुत कम उम्र में ही कर दी थी। वो अभी-भी एक प्रसिद्ध कवि बने हुए हैं क्योंकि उन्होंने हजारों कविताएँ, लघु कहानियाँ, गानें, निबंध, नाटक आदि लिखें हैं। टैगोर और उनका कार्य पूरे विश्वभर में प्रसिद्ध है। वो पहले ऐसे भारतीय बने जिन्हें “गीतांजलि” नामक अपने महान लेखन के लिये 1913 में नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वो एक दर्शनशास्त्री, एक चित्रकार और एक महान देशभक्त भी थे जिन्होंने हमारे देश के राष्ट्रगान “जन गण मन” की रचना की।
1

अनमोल भेंट

3 अगस्त 2022
1
0
0

1 रायचरण बारह वर्ष की आयु से अपने मालिक का बच्‍चा खिलाने पर नौकर हुआ था। उसके पश्चात् काफी समय बीत गया। नन्हा बच्‍चा रायचरण की गोद से निकलकर स्कूल में प्रविष्ट हुआ, स्कूल से कॉलिज में पहुँचा, फिर एक

2

अनाधिकार प्रवेश

3 अगस्त 2022
1
0
0

किसी एक सुबह सड़क के पास खड़े हो कर एक लड़का एक दूसरे लड़के के साथ एक अतिसाहसिक कार्य से सम्बंधित शर्त रख रहा था। ठाकुरबाड़ी के पुष्पवाटिका से फूल तोड़ सकेगा या नहीं, यही उनके तर्क का विषय था। एक लड़का बोला,

3

अवगुंठन

3 अगस्त 2022
1
0
0

महामाया और राजीव लोचन दोनों सरिता के तट पर एक प्राचीन शिवालय के खंडहरों में मिले। महामाया ने मुख से कुछ न कहकर अपनी स्वाभाविक गम्भीर दृष्टि से तनिक कुछ तिरस्कृत अवस्था में राजीव की ओर देखा, जिसका अर्थ

4

इच्छापूर्ण

3 अगस्त 2022
1
0
0

सुबलचन्द्र के बेटे का नाम सुशीलचन्द्र है. लेकिन हमेशा नाम के अनुरूप व्यक्ति भी हो ऐसा कतई ज़रूरी नहीं. तभी तो सुबलचन्द्र दुर्बल थे और उनका बेटा सुशीलचन्द्र बिलकुल भी शांत नही बल्कि बहुत चंचल था. उनका

5

कवि का हृदय

3 अगस्त 2022
1
0
0

चांदनी रात में भगवान विष्णु बैठे मन-ही-मन गुनगुना रहे थे- "मैं विचार किया करता था कि मनुष्य सृष्टि का सबसे सुन्दर निर्माण है, किन्तु मेरा विचार भ्रामक सिध्द हुआ। कमल के उस फूल को, जो वायु के झोंकों स

6

काबुलीवाला

3 अगस्त 2022
1
0
0

मेरी पाँच वर्ष की छोटी लड़की मिनी से पल भर भी बात किए बिना नहीं रहा जाता। दुनिया में आने के बाद भाषा सीखने में उसने सिर्फ एक ही वर्ष लगाया होगा। उसके बाद से जितनी देर तक सो नहीं पाती है, उस समय का एक

7

गूंगी भाग 1

3 अगस्त 2022
1
0
0

कन्या का नाम जब सुभाषिणी रखा गया था तब कौन जानता था कि वह गूंगी होगी। इसके पहले, उसकी दो बड़ी बहनों के सुकेशिनी और सुहासिनी नाम रखे जा चुके थे, इसी से तुकबन्दी मिलाने के हेतु उसके पिता ने छोटी कन्या क

8

भाग 2

3 अगस्त 2022
1
0
0

गांव का नाम है चंडीपुर। उसके पार्श्व में बहने वाली सरिता बंगाल की एक छोटी-सी सरिता है, गृहस्थ के घर की छोटी लड़की के समान। बहुत दूर तक उसका फैलाव नहीं है, उसको तनिक भी आलस्य नहीं, वह अपनी इकहरी देह लि

9

भाग 3

3 अगस्त 2022
1
0
0

सुभाषिणी की कोई सहेली हो ही नहीं, सो बात नहीं। गौ-घर में दो गायें हैं, एक का नाम है सरस्वती और दूसरी का नाम है पार्वती। ये नाम सुभाषिणी के मुंह से उन गायों ने कभी भी नहीं सुने, परन्तु वे उसके पैरों की

10

भाग 4

3 अगस्त 2022
1
0
0

ऊंची श्रेणी के प्राणियों में सुभाषिणी को और भी एक मित्र मिल गया था, किन्तु उसके साथ उसका ठीक कैसा सम्बन्ध था, इसकी पक्की खबर बताना मुश्किल है। क्योंकि उसके बोलने की जिह्ना है और वह गूंगी है, अत: दोनों

11

भाग 5

3 अगस्त 2022
1
0
0

सुभाषिणी की अवस्था दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है। धीरे-धीरे मानो वह अपने आपको अनुभव कर रही है। मानो किसी एक पूर्णिमा को किसी सागर से एक ज्वार-सा आकर उसके अन्तराल को किसी एक नवीन अनिर्वचनीय चेतना-शक्

12

भाग 6

3 अगस्त 2022
1
0
0

कलकत्ते के एक किराये के मकान में एक दिन सुभा की माता ने उसे वस्त्रों से खूब सजा दिया। कसकर उसका जूड़ा बांध दिया, उसमें जरी का फीता लपेट दिया, आभूषणों से लादकर उसके स्वाभाविक सौंदर्य को भरसक मिटा दिया।

13

तोता

3 अगस्त 2022
1
0
0

1 एक था तोता । वह बड़ा मूर्ख था। गाता तो था, पर शास्त्र नही पढ़ता था । उछलता था, फुदकता था, उडता था, पर यह नहीं जानता था कि क़ायदा-क़ानून किसे कहते हैं । राजा बोले, ''ऐसा तोता किस काम का? इससे लाभ त

14

नई रोशनी भाग 1

3 अगस्त 2022
1
0
0

बाबू अनाथ बन्धु बी.ए. में पढ़ते थे। परन्तु कई वर्षों से निरन्तर फेल हो रहे थे। उनके सम्बन्धियों का विचार था कि वह इस वर्ष अवश्य उत्तीर्ण हो जाएंगे, पर इस वर्ष उन्होंने परीक्षा देना ही उचित न समझा। इस

15

भाग 2

3 अगस्त 2022
1
0
0

विन्ध्यवासिनी ने जो बातें कमला से कही थीं वे सब उसने अपने पति से सुनी थीं, नहीं तो उस बेचारी को विलायत का हाल क्या मालूम था। कमला आई तो थी हर्ष का समाचार सुनाने, किन्तु अपनी प्रिय सहेली के मुख से ऐसे

16

भाग 3

3 अगस्त 2022
1
0
0

चलते समय माता-पिता ने विन्ध्य से कुछ दिनों और रहने के लिए कहा किन्तु विन्ध्य ने कुछ उत्तर न दिया। यह देखकर माता-पिता के हृदय में शंका हुई। उन्होंने कहा-"बेटी विन्ध्य! यदि हमसे कोई ऐसी वैसी बात हुई हो

17

भाग 4

3 अगस्त 2022
1
0
0

दुर्गा-पूजा के दिन समीप आये तो विन्ध्य के पिता ने बेटी और दामाद को बुलाने के लिए आदमी भेजा। विन्ध्य खुशी-खुशी मैके आई। मां ने बेटी और दामाद को रहने के लिए अपना कमरा दे दिया। दुर्गा-पूजा की रात को यह स

18

भाग 5

3 अगस्त 2022
1
0
0

इसके बाद समय बीतता गया, किन्तु अनाथ बंधु ने विन्ध्य को कोई पत्र न लिखा और न अपनी मां की ही कोई सुधबुध ली। पर जब आखिरकार सब रुपये, जो उनके पास थे खर्च हो गये तो बहुत ही घबराये और विन्ध्य के पास एक तार

19

भाग 6

3 अगस्त 2022
1
0
0

अनाथ बन्धु ने प्रायश्चित करना स्वीकार कर लिया। पंडितों से सलाह ली गई तो उन्होंने कहा- "यदि इन्होंने विलायत में रहकर मांस नहीं खाया है तो इनकी शुध्दि वेद-मन्त्रों द्वारा की जा सकती है।" यह समाचार सुनक

20

प्रेम का मूल्य

3 अगस्त 2022
1
0
0

बृहस्पति छोटे देवतओं का गुरु था। उसने अपने बेटे कच को संसार में भेजा कि शंकराचार्य से अमर-जीवन का रहस्य मालूम करे। कच शिक्षा प्राप्त करके स्वर्ग-लोक को जाने के लिए तैयार था। उस समय वह अपने गुरु की पुत

21

पिंजर भाग 1

3 अगस्त 2022
1
0
0

जब मैं पढ़ाई की पुस्तकें समाप्त कर चुका तो मेरे पिता ने मुझे वैद्यक सिखानी चाही और इस काम के लिए एक जगत के अनुभवी गुरु को नियुक्त कर दिया। मेरा नवीन गुरु केवल देशी वैद्यक में ही चतुर न था, बल्कि डॉक्ट

22

भाग 2

3 अगस्त 2022
1
0
0

कुछ दिनों पहले की घटना है कि एक रात को गार्हस्थ आवश्यकताओं के कारण मुझे उस कमरे में सोना पड़ा। मेरे लिए यह नई बात थी। अत: नींद न आई और मैं काफी समय तक करवटें बदलता रहा। यहां तक कि समीप के गिरजाघर ने ब

23

भाग 3

3 अगस्त 2022
1
0
0

वह बोली-"महाशय, जब मैं मनुष्य के रूप में थी तो केवल एक व्यक्ति से डरती थी और वह व्यक्ति मेरे लिए मानो मृत्यु का देवता था। वह था मेरा पति। जिस प्रकार कोई व्यक्ति मछली को कांटा लगाकर पानी से बाहर ले आया

24

भाग 4

3 अगस्त 2022
1
0
0

"लगन का मुहूर्त बहुत रात गए निश्चित हुआ था और बारात देर से जानी थी। अत: डॉक्टर और मेरा भाई प्रतिदिन की भांति शराब पीने बैठ गये। इस मनोविनोद में उनको बहुत देर हो गई। "ग्यारह बजने को थे कि मैं उनके पास

25

यह स्वतन्त्रता/घर वापसी भाग 1

3 अगस्त 2022
1
0
0

पाठक चक्रवर्ती अपने मुहल्ले के लड़कों का नेता था। सब उसकी आज्ञा मानते थे। यदि कोई उसके विरुध्द जाता तो उस पर आफत आ जाती, सब मुहल्ले के लड़के उसको मारते थे। आखिरकार बेचारे को विवश होकर पाठक से क्षमा मा

26

भाग 2

3 अगस्त 2022
1
0
0

बम्बई पहुंचकर पाठक अपनी मामी से पहली बार मिला। वह उसके आने से कुछ प्रसन्न न हुई; क्योंकि उसके तीन बच्चे ही काफी थे एक और चंचल लड़के का आ जाना उसके लिए आपत्ति थी। ऐसे लड़के के लिए उसका अपना घर ही स्वर

27

भाग 3

3 अगस्त 2022
1
0
0

मध्यान्ह पुलिस का सिपाही विशम्भर के द्वार पर आया। वर्षा अब भी हो रही थी और सड़कों पर पानी खड़ा था। दो सिपाही पाठक को हाथों पर उठाए हुए लाए और विशम्भर के सामने रख दिया। पाठक के सिर से पांव तक कीचड़ लगी

28

विदा

3 अगस्त 2022
1
0
0

कन्या के पिता के लिए धैर्य धरना थोड़ा-बहुत संभव भी था; परन्तु वर के पिता पल भर के लिए भी सब्र करने को तैयार न थे। उन्होंने समझ लिया था कि कन्या के विवाह की आयु पार हो चुकी है; परन्तु किसी प्रकार कुछ द

29

सीमान्त भाग 1

3 अगस्त 2022
1
0
0

उस दिन सवेरे कुछ ठण्ड थी; परन्तु दोपहर के समय हवा गर्मी पाकर दक्षिण दिशा की ओर से बहने लगी थी। यतीन जिस बरामदे में बैठा हुआ था, वहां से उद्यान के एक कोने में खड़े हुए कटहल और दूसरी ओर के शिरीष वृक्ष क

30

भाग 2

3 अगस्त 2022
1
0
0

यतीन सारी रात अपने कमरे की खिड़कियां खोलकर जाने क्या-क्या सोचता रहा? जिस लड़की ने अपने मां-बाप को मरते देखा है। उसके जीवन पर कैसी भयंकर छाया आकर पड़ी होगी? ऐसी विदारक घटना के भीतर से आज वह इतनी बड़ी ह

31

भाग 3

3 अगस्त 2022
1
0
0

उस दिन संध्या को घर में रोगिनी और डॉक्टर के सिवा कोई नहीं था। सिरहाने के पास रंगीन कागज के आवरण से घिरा हुआ मिट्टी के तेल का लैम्प धीमी रोशनी फैला रहा था। कॉर्नस पर रखीं हुई टाइमपीस निस्तब्ध कमरे में

32

संकट तृण का

3 अगस्त 2022
1
0
0

जमींदार के नायब गिरीश बसु के घर में प्यारी नाम की एक नौकरानी काम पर नई-नई लगी। कमसिन प्यारी अपने नाम के अनुरूप रुप और स्वभाव में भी थी। वह दूर पराए गांव से काम करने आई थी। कुछ ही दिन हुए थे उसे इस स्थ

33

अतिथि

3 अगस्त 2022
1
0
0

काँठलिया के जमींदार मतिलाल बाबू नौका से सपरिवार अपने घर जा रहे थे। रास्ते में दोपहर के समय नदी के किनारे की एक मंडी के पास नौका बाँधकर भोजन बनाने का आयोजन कर ही रहे थे कि इसी बीच एक ब्राह्मण-बालक ने आ

34

भाग 2

3 अगस्त 2022
1
0
0

भोजन समाप्त होने पर नौका चल पड़ी। अन्नपूर्णा बड़े स्नेह से ब्राह्मण-बालक से उसके घर की बातें, उसके स्वजन-कुटुंबियों का समाचार पूछने लगीं। तारापद ने अत्यंत संक्षेप में उनका उत्तर देकर बाहर आकर परित्राण

35

भाग 3

3 अगस्त 2022
1
0
0

चारुशशि अपने माता-पिता की इकलौती संतान और उनके स्नेह की एकमात्र अधिकारिणी थी। उसकी धुन और हठ की कोई सीमा न थी। खाने, पहनने, बाल बनाने के संबंध में उसका स्वतंत्र मत था; किंतु उसके मन में तनिक भी स्थिरत

36

भाग 4

3 अगस्त 2022
1
0
0

नंदीग्राम कब छूट गया, तारापद को पता न चला। विशाल नौका अत्यंत मृदु-मंद गति से कभी पाल तानकर, कभी रस्सी खींचकर अनेक नदियों की शाखा-प्रशाखाओं में होकर चलने लगी; नौकारोहियों के दिन भी इन सब नदी-उपनदियों क

37

भाग 5

3 अगस्त 2022
1
0
0

तारापद अपनी प्रखर स्मरण-शक्ति एवं अखंड मनोयोग के साथ अंग्रेजी शिक्षा में प्रवृत्त हुआ। मानो वह किसी नवीन दुर्गम राज्य में भ्रमण करने निकला हो, उसने पुराने जगत् के साथ कोई संपर्क न रखा; मुहल्ले के लोग

38

भाग 6

3 अगस्त 2022
1
0
0

इस तरह लगभग दो वर्ष बीत गए। इतने लंबे समय तक तारापद कभी किसी के पास बँधकर नहीं रहा। शायद पढ़ने-लिखने में उसका मन एक अपूर्व आकर्षण में बँध गया था; लगता है, वयोवृद्धि के साथ उसकी प्रकृति में भी परिवर्तन

39

पोस्टमास्टर

3 अगस्त 2022
1
0
0

काम शुरू करते ही पहले पहल पोस्टमास्टर को उलापुर गांव आना पड़ा। गांव बहुत साधारण था। गांव के पास ही एक नील-कोठी थी। इसीलिए कोठी के स्वामी ने बहुत कोशिश करके यह नया पोस्टऑफिस खुलवाया था। हमारे पोस्टमास

40

एक छोटी पुरानी कहानी

3 अगस्त 2022
1
0
0

कहानी सुनानी पड़ेगी ? पर और नहीं सुना सकता। अब इस थके असमर्थ व्यक्ति को छुट्टी देनी पड़ेगी। यह पद मुझे किसने दिया बताना मुश्किल है। धीरे-धीरे एक-एक करके तुम पाँच लोग आकर मेरे चारों तरफ कब इकट्टे हो ग

41

संपादक

3 अगस्त 2022
1
0
0

अपनी पत्नी के जीवनकाल में मुझे प्रभा की कोई चिन्ता नहीं थी। तब प्रभा की अपेक्षा उसकी माँ को लेकर ज्यादा व्यस्त रहता था। उन दिनों सिर्फ प्रभा का खेल, उसकी हँसी देखकर, उसकी टूटी-फूटी बातें सुनकर और प्य

42

उद्धार

3 अगस्त 2022
1
0
0

गौरी पुराने धनाढ्य घराने की बड़े लाड़-प्यार में पली सुन्दर लड़की है। उसके पति पारस की हालात पहले बहुत ही गिरी हुई थी, पर अब अपनी कमाई के बूते पर उसने कुछ उन्नति की है। जब तक वह गरीब था तब तक उसके सास-ससु

43

अनाथ भाग 1

3 अगस्त 2022
1
0
0

गांव की किसी एक अभागिनी के अत्याचारी पति के तिरस्कृत कर्मों की पूरी व्याख्या करने के बाद पड़ोसिन तारामती ने अपनी राय संक्षेप में प्रकट करते हुए कहा- "आग लगे ऐसे पति के मुंह में।" सुनकर जयगोपाल बाबू क

44

भाग 2

3 अगस्त 2022
1
0
0

शिशु का नाम हुआ नीलमणि। जब वह दो वर्ष का हुआ तब उसके पिता असाध्यम रोगी हो गये। बहुत ही शीघ्र चले आने के लिए जयगोपाल बाबू को लिखा गया। जयगोपाल बाबू जब मुश्किल से उस सूचना को पाकर ससुराल पहुँचे, तब श्वस

45

भाग 3

3 अगस्त 2022
1
0
0

नीलमणि की सारी देह में केवल सिर ही सबसे बड़ा था। देखने में ऐसा प्रतीत होता जैसे विधाता ने एक खोखले पतले बांस में फूंक मारकर ऊपर के हिस्से पर एक हंडिया बना दी है। डॉक्टर भी अक्सर भय प्रगट करते हुए कहा

46

भाग 4

3 अगस्त 2022
1
0
0

शरद ऋतु आई। मजिस्ट्रेट साहब गांवों में छानबीन करने दौरे पर निकले और शिकार करने के लिए, जंगल से सटे हुए एक गांव में तम्बू तन गये। गांव के मार्ग में साहब के साथ नीलमणि की भेंट हुई। उसके सभी साथी साहब को

47

अपरिचिता भाग 1

3 अगस्त 2022
1
0
0

आज मेरी आयु केवल सत्ताईस साल की है। यह जीवन न दीर्घता के हिसाब से बड़ा है, न गुण के हिसाब से। तो भी इसका एक विशेष मूल्य है। यह उस फूल के समान है जिसके वक्ष पर भ्रमर आ बैठा हो और उसी पदक्षेप के इतिहास

48

भाग 2

3 अगस्त 2022
1
0
0

कहना व्यर्थ है, विवाह के उपलक्ष्य में कन्या पक्ष को ही कलकत्ता आना पड़ा। कन्या के पिता शंभूनाथ बाबू हरीश पर कितना विश्वास करते थे, इसका प्रमाण यह था कि विवाह के तीन दिन पहले उन्होंने मुझे पहली बार देख

49

भाग 3

3 अगस्त 2022
1
0
0

घर के सब लोग क्रोध से आग-बबूला हो गए। कन्या के पिता को इतना घमंड कलियुग पूर्ण रूप से आ गया है! सब बोले, देखें, लड़की का विवाह कैसे करते हैं। किंतु, लड़की का विवाह नहीं होगा, यह भय जिसके मन में न हो उ

50

भाग 4

3 अगस्त 2022
1
0
0

लेकिन कहानी ऐसे खत्म नहीं हुई। जहां पहुंचकर वह अनंत हो गई है वहां का थोड़ा-सा विवरण बताकर अपना यह लेख समाप्त करूंगा। मां को लेकर तीर्थ करने जा रहा था। भार मेरे ही ऊपर था, क्योंकि मामा इस बार भी हावड़

51

अन्तिम प्यार भाग 1

3 अगस्त 2022
2
0
0

आर्ट स्कूल के प्रोफेसर मनमोहन बाबू घर पर बैठे मित्रों के साथ मनोरंजन कर रहे थे, ठीक उसी समय योगेश बाबू ने कमरे में प्रवेश किया। योगेश बाबू अच्छे चित्रकार थे, उन्होंने अभी थोड़े समय पूर्व ही स्कूल छोड

52

भाग 2

3 अगस्त 2022
2
0
0

नरेन्द्र सोचते-सोचते मकान की ओर चला-मार्ग में भीड़-भाड़ थी। कितनी ही गाड़ियां चली जा रही थीं; किन्तु इन बातों की ओर उसका ध्यान नहीं था। उसे क्या चिन्ता थी? सम्भवत: इसका भी उसे पता न था। वह थोड़े समय

53

भाग 3

3 अगस्त 2022
1
0
0

एक दिन नरेन्द्र को ध्यान आया कि इस बार की प्रदर्शनी में जैसे भी हो अपना एक चित्र भेजना चाहिए। कमरे की दीवार पर उसके हाथ के कितने ही चित्र लगे हुए थे। कहीं प्राकृतिक दृश्य, कहीं मनुष्य के शरीर की रूप-र

54

भाग 4

3 अगस्त 2022
1
0
0

एक सप्ताह बीत गया। इस सप्ताह में नरेन्द्र ने घर से बाहर कदम न निकाला। घर में बैठा सोचता रहता- किसी-न-किसी मन्त्र से तो साधना की देवी अपनी कला दिखाएगी ही। इससे पूर्व किसी चित्र के लिऐ उसे विचार-प्राप्

55

भाग 4

3 अगस्त 2022
1
0
0

एक सप्ताह बीत गया। इस सप्ताह में नरेन्द्र ने घर से बाहर कदम न निकाला। घर में बैठा सोचता रहता- किसी-न-किसी मन्त्र से तो साधना की देवी अपनी कला दिखाएगी ही। इससे पूर्व किसी चित्र के लिऐ उसे विचार-प्राप्

56

भाग 5

3 अगस्त 2022
1
0
0

रोगी की रात जैसे आंखों में निकल जाती है उसकी वह रात वैसे ही समाप्त हुई। नरेन्द्र को इसका तनिक भी पता न हुआ। उधर वह कई दिनों से चित्रशाला ही में सोया था। नरेन्द्र के मुख पर जागरण के चिन्ह थे। उसकी पत्न

57

भाग 6

3 अगस्त 2022
1
0
0

नरेन्द्र चित्रशाला में प्रविष्ट होकर एक कुर्सी पर बैठ गया। दोनों हाथों से मुंह ढांपकर वह सोचने लगा। उसकी दशा देखकर ऐसा लगता था कि वह किसी तीव्र आत्मिक पीड़ा से पीड़ित है। चारों ओर गहरे सूनेपन का राज्

58

भाग 7

3 अगस्त 2022
1
0
0

दिन बीतते गये, प्रदर्शनी आरम्भ हो गई। प्रदर्शनी में देखने की कितनी ही वस्तुएं थीं, परन्तु दर्शक एक ही चित्र पर झुके पड़ते थे। चित्र छोटा-सा था और अधूरा भी, नाम था 'अन्तिम प्यार।' चित्र में चित्रित क

59

कवि और कविता

3 अगस्त 2022
1
0
0

राजमहल के सामने भीड़ लगी हुई थी। एक नवयुवक संन्यासी बीन पर प्रेम-राग अलाप रहा था। उसका मधुर स्वर गूंज रहा था। उसके मुख पर दया और सहृदता के भाव प्रकट हो रहे थे। स्वर के उतार-चढ़ाव और बीन की झंकार दोनों

60

कंचन

3 अगस्त 2022
1
0
0

मैं धन्यवाद करने ही जा रहा था, कि कंचन बोल उठी- "दादू! हरेक को न्यौता देकर मुझे मुश्किल में डाल देते हो। भला इस जंगल में फिरंगी की दुकान कहां मिलेगी? ये विलायत के 'डिनर' खाने वाली जाती से सम्बन्धित इ

61

खोया हुआ मोती भाग 1

3 अगस्त 2022
1
0
0

मेरी नौका ने स्नान-घाट की टूटी-फूटी सीढ़ियों के समीप लंगर डाला। सूर्यास्त हो चुका था। नाविक नौका के तख्ते पर ही मगरिब (सूर्यास्त) की नमाज अदा करने लगा। प्रत्येक सजदे के पश्चात् उसकी काली छाया सिंदूरी

62

भाग 2

3 अगस्त 2022
1
0
0

"पत्नी अपने पति को प्राय: जानती है, उसकी नस-नस से परिचित होती है, पर पति अपनी पत्नी के चारित्रय का इतना गम्भीर अध्ययन नहीं कर सकता। यदि पति कुछ गम्भीर व्यक्ति हो तो पत्नी के चरित्र के कुछ भाग उसकी तीक

63

भाग 3

3 अगस्त 2022
1
0
0

"झुटपुटे के समय जबकि सावन की घटाएं आकाश पर डेरा जमाए हुए थीं वर्षा मूसलाधर हो रही थी, एक नौका ने रेतीली सीढ़ियों पर लंगर डाला। दूसरे दिन प्रात: घटाटोप अंधेरे में मनीमलिका आई और एक मोटी चादर में सिर से

64

भाग 4

3 अगस्त 2022
1
0
0

"कृष्ण-जन्माष्टमी की संध्या थी। वर्षा हो रही थी। फणीभूषण शयनकक्ष में अकेला था। गांव में एक व्यक्ति भी बाकी न था। जन्माष्टमी के मेले ने गांव-का-गांव सूना कर दिया था। मेले की चहल-पहल और महाभारत के नाटक

65

भाग 5

3 अगस्त 2022
1
0
0

"सहसा फणीभूषण के कान में किसी के पैरों की-सी आहट सुनाई दी। ऐसा मालूम होता था कि नदी-तट से वह उस घर की ओर वापस आ रही है। नदी की काली लहरें रात की अंधेरी में मालूम न होती थीं। आशा की प्रसन्नता ने उसे जी

66

भाग 6

3 अगस्त 2022
1
0
0

"दूसरी रात को फिर नाटक होने वाला था, नौकर ने आज्ञा चाही तो चेतावनी दे दी कि बाहर का द्वार खुला रहे। "यह कैसे हो सकता है। विभिन्न स्वभाव के व्यक्ति बाहर से मेले में आये हुए हैं, दुर्घटना का सन्देह है।

67

भाग 7

3 अगस्त 2022
1
0
0

"दूसरे दिन मेला छंटने लगा, दुकानें आरम्भ हो गईं; दर्शक अपने-अपने घरों को वापस जाने लगे। मेले की शोभा समाप्त हो गई। "फणीभूषण ने दिन में व्रत रखा और सब नौकरों को आज्ञा दे दी कि आज रात को कोई भी व्यक्ति

68

जीवित और मृत

3 अगस्त 2022
1
0
0

जमींदार शारदाशंकर के परिवार के साथ उनके रानीघाट स्थित बड़े से घर में रह रही विधवा कादम्बिनी का अब कोई निकट सम्बन्धी नहीं बचा था। एक एक करके सब मर गये थे। उसके पति के परिवार में भी कोई ऐसा नहीं था जिसको

69

धन की भेंट भाग 1

3 अगस्त 2022
1
0
0

वृन्दावन कुण्डू क्रोधावेश में अपने पिता के पास आकर कहने लगा- "मैं इसी समय आपसे विदा होना चाहता हूं।" उसके पिता जगन्नाथ कुण्डू ने घृणा प्रकट करते हुए कहा- "अभागे! कृतघ्न! मैंने जो रुपया तेरे पालन-पोषण

70

भाग 2

3 अगस्त 2022
0
0
0

एक दिन मध्यान्ह-समय जब जगन्नाथ स्वभावानुसार गांव की गलियों में आम के छतनारे वृक्षों के नीचे अपना नारियल हाथ में लिये फिर रहा था। उसने देखा कि एक लड़का जो देखने में अपरिचित मालूम होता था, गांव के लड़को

71

पाषाणी भाग 1

3 अगस्त 2022
0
0
0

अपूर्वकुमार बी.ए. पास करके ग्रीष्मावकाश में विश्व की महान नगरी कलकत्ता से अपने गांव को लौट रहा था। मार्ग में छोटी-सी नदी पड़ती है। वह बहुधा बरसात के अन्त में सूख जाया करती है; परन्तु अभी तो सावन मास

72

भाग 2

3 अगस्त 2022
0
0
0

ईंटों के ढेर से बहती हुई हंसी की तरंग सुनते-सुनते वृक्षों की छाया के नीचे दलदल में सनी निम्न दुकुल सूटकेस लिये हुए श्रीयुत अपूर्वजी किसी तरह अपने घर पहुँचे? अकस्मात ही बेटे के पहुंच जाने से विधवा मां

73

भाग 3

3 अगस्त 2022
0
0
0

अपूर्व उस दिन अनेक प्रकार के बहाने बना-बनाकर न तो घर के अन्दर गया और न मां से भेंट की। किसी के यहां भोज का निमंत्रण था; वहीं खा आया। अपूर्व जैसा पढ़ा-लिखा और भावुक नवयुवक एक मामूली पढ़ी-लिखी लड़की के

74

भाग 4

3 अगस्त 2022
0
0
0

इस पर भी उसे ब्याह करना ही पड़ा। उसके बाद अध्ययन शुरू हुआ। अपूर्व की मां के घर जाकर एक ही रात में मृगमयी की अपनी सारी दुनिया ने बेड़ियां पहन लीं। सास ने वधू का सुधर करना आरम्भ कर दिया। बहुत ही कठोर

75

भाग 5

3 अगस्त 2022
0
0
0

उस रोज सारे दिन घर के बाहर बूंदा-बांदी और अन्दर अश्रु की वर्षा होती रही। अगले रोज अर्धरात्रि को अपूर्व ने मृगमयी को धीरे-से जाकर पूछा- मृगमयी, क्या तुम अपने पिताजी के पास जाना चाहती हो? मृगमयी ने चौ

76

भाग 6

3 अगस्त 2022
0
0
0

दोनों अपराधियों की युगल जोड़ी अब घर पहुंची तो मां गम्भीर बनी रही, किसी से कुछ बात नहीं की? मां की ओर से किसी के व्यवहार में कोई दोष ही प्रदर्शित नहीं किया गया कि जिसकी सफाई के लिए दोनों में से कोई कुछ

77

भाग 7

3 अगस्त 2022
0
0
0

मां के घर पहुंचकर मृगमयी को पता लगा कि अब यहां उसका किसी प्रकार मन ही नहीं लगता है? उस घर में जाने कौन-सा परिवर्तन आ गया है कि समय काटे नहीं कटता। क्या करे, कहां जाये, किससे मिले, उसकी कुछ भी समझ में

78

भाग 8

3 अगस्त 2022
0
0
0

मां ने देखा कि कॉलेज बन्द हो गया, फिर भी अपूर्व घर नहीं आया। सोचा, अब भी वह उनसे गुस्से है। मृगमयी ने भी समझ लिया कि अपूर्व उससे गुस्सा कर रहा है और तब वह अपने पत्र की याद करके, मारे लज्जा के गड़ जाने

79

भिखारिन भाग 1

3 अगस्त 2022
0
0
0

अन्धी प्रतिदिन मन्दिर के दरवाजे पर जाकर खड़ी होती, दर्शन करने वाले बाहर निकलते तो वह अपना हाथ फैला देती और नम्रता से कहती- बाबूजी, अन्धी पर दया हो जाए। वह जानती थी कि मन्दिर में आने वाले सहृदय और श्र

80

भाग 2

3 अगस्त 2022
0
0
0

काशी में सेठ बनारसीदास बहुत प्रसिध्द व्यक्ति हैं। बच्चा-बच्चा उनकी कोठी से परिचित है। बहुत बड़े देशभक्त और धर्मात्मा हैं। धर्म में उनकी बड़ी रुचि है। दिन के बारह बजे तक सेठ स्नान-ध्यान में संलग्न रहते

81

भाग 3

3 अगस्त 2022
0
0
0

दो वर्ष बहुत सुख के साथ बीते। इसके पश्चात् एक दिन लड़के को ज्वर ने आ दबाया। अंधी ने दवा-दारू की, झाड़-फूंक से भी काम लिया, टोने-टोटके की परीक्षा की, परन्तु सम्पूर्ण प्रयत्न व्यर्थ सिध्द हुए। लड़के की

82

विद्रोही भाग 1

3 अगस्त 2022
0
0
0

लोग कहते हैं अंग्रेजी पढ़ना और भाड़ झोंकना बराबर है। अंग्रेजी पढ़ने वालों की मिट्टी खराब है। अच्छे-अच्छे एम.ए. और बी.ए. मारे-मारे फिरते हैं, कोई उन्हें पूछता तक नहीं। मैं इन बातों के विरुध्द हूं। अंग्रेज

83

भाग 2

3 अगस्त 2022
0
0
0

कलकत्ता जैसे बड़े नगर में यों तो प्रत्येक त्यौहार पर बड़ी रौनक होती है किन्तु दुर्गा-पूजा के अवसर पर असाधारण धूमधाम और चहल-पहल दिखाई देती है। दशहरा के दिन प्राय: सारे रास्तों पर जन-समूह होता है। बड़े-बूढ़

84

भाग 3

3 अगस्त 2022
0
0
0

ललित के सहयोग से उमाशंकर में आश्चर्यजनक परिवर्तन हो गये। कहां तो वह बिना मोटर के घर से बाहर न निकलता था पर अब यह दशा थी कि ललित के साथ वायु-सेवन के लिए प्रतिदिन कोसों पैदल निकल जाता, सिनेमा देखने का च

85

समाज का शिकार

3 अगस्त 2022
0
0
0

मैं जिस युग का वर्णन कर रहा हूं उसका न आदि है न अंत! वह एक बादशाह का बेटा था और उसका महलों में लालन-पालन हुआ था, किन्तु उसे किसी के शासन में रहना स्वीकार न था। इसलिए उसने राजमहलों को तिलांजलि देकर जं

86

भाग 2

3 अगस्त 2022
0
0
0

भयानक तूफानी सागर के सम्मुख शाहजादे ने अपने थके हुए घोड़े को रोका; किन्तु पृथ्वी पर उतरना था कि सहसा दृश्य बदल गया और शाहजादे ने आश्चर्यचकित दृष्टि से देखा कि समाने एक बहुत बड़ा नगर बसा हुआ है। ट्राम

87

भाग 3

3 अगस्त 2022
0
0
0

शाहजादा अपनी सजा काटकर कारावास से वापिस आ गया किन्तु उसका लम्बा-चौड़ा पर्यटन अभी समाप्त न हुआ था। वह संसार में अकेला था, कोई भी उसका संगी-साथी नहीं। संसार वाले उसे दंडी (सजायाफ्ता) कहकर उसकी छाया से भ

88

पड़ोसिन

3 अगस्त 2022
0
0
0

मेरी पड़ोसिन बाल—विधवा है। मानो वह जाड़ों की ओस—भीगी पतझड़ी हरसिंगार हो। सुहागरात की फूलों की सेज के लिए नहीं, वह केवल देवपूजा के लिए समर्पित थी। मैं उसकी पूजा मन—ही—मन किया करता था। उसके प्रति मेरा म

89

आधी रात में

3 अगस्त 2022
0
0
0

‘‘डॉक्टर! डॉक्टर!!’’ ‘‘परेशान कर डाला! इतनी रात गए–’’ आँखें खोलकर देखा, अपने दक्षिणाचरण बाबू थे। हड़बड़ाकर उठकर टूटी पीठ की चौकी घसीटकर उन्हें बैठने को दी और उद्विग्न भाव से मुँह की ओर देखा। घड़ी

90

एक रात

3 अगस्त 2022
0
0
0

एक ही पाठशाला में सुरबाला के साथ पढ़ा हूं, और बउ-बउ खेला हूं। उसके घर जाने पर सुरबाला की मां मुझे बड़ा प्यार करतीं और हम दोनों को साथ बिठाकर कहतीं, ‘वाह, कितनी सुन्दर जोड़ी है।’ छोटा था, किन्तु बात क

91

एक रात भाग 1

3 अगस्त 2022
0
0
0

एक ही पाठशाला में सुरबाला के साथ पढ़ा हूं, और बउ-बउ खेला हूं। उसके घर जाने पर सुरबाला की मां मुझे बड़ा प्यार करतीं और हम दोनों को साथ बिठाकर कहतीं, ‘वाह, कितनी सुन्दर जोड़ी है।’ छोटा था, किन्तु बात क

92

भाग 2

3 अगस्त 2022
0
0
0

हमारे जैसे प्रतिभाहीन लोग घर में बैठकर तो अनेक प्रकार की कल्पनाएं करते रहते हैं, पर अन्त में कर्म-क्षेत्र में उतरते ही कन्धे पर हल का बोझ ढोते हुए पीछे से पूंछ मरोड़ी जाने पर भी सिर झुकाए सहिष्णु भाव

93

मुसलमानी की कहानी

3 अगस्त 2022
0
0
0

उन दिनों अराजकता के दूतों ने देश के शासन को काँटों से भर दिया था। अप्रत्याशित अत्याचारों से दिन-रात काँप रहे थे। दुःस्वप्नों के जाल ने जीवन के समस्त कार्यकलाप को जकड़ रखा था। गृहस्थ लोग सिर्फ देवताओं

94

गिन्‍नी

3 अगस्त 2022
0
0
0

हमारे पंडित शिवनाथ छात्रवृत्ति कक्षा से दो-तीन क्लास नीचे के अध्यापक थे। उनके दाढ़ी-मूँछ नहीं थी, बाल छँटे हुए थे और चोटी छोटी-सी थी। उन्हें देखते ही बच्चों की अन्तरात्मा सूख जाती थी। प्राणियों में द

95

फूल का मूल्य

3 अगस्त 2022
0
0
0

शीतकाल के दिन थे। शीतकाल की प्रचंडता के कारण पौधे पृष्पविहीन थे। वन-उपवन में उदासी छाई हुई थी। फूलों के अभाव में पौधे श्रीहीन दिखाई दे रहे थे। ऐसे उदास वातावरण में एक सरोवर के मध्य कमल का फूल खिला हु

96

चोरी का धन भाग 1

3 अगस्त 2022
0
0
0

दांपत्य का अधिकार प्रतिदिन ही नए रूप में निर्धारित करना होता है। अधिकांश पुरुष यह बात भूले रहते हैं। उन्होंने शुरू से ही समाज का अनुमति-पत्र दिखाकर कस्टम-हाउस से माल छुड़ा लिया है, उसके बाद से वे बिलकु

97

भाग 2

3 अगस्त 2022
0
0
0

टेलीफ़ोन में आवाज़ आई, “हैलो, क्या यह बारह सौ फलाना नंबर है।” मैंने कहा, “नहीं, यहाँ का नंबर सात सौ फलाना है।” दूसरे ही क्षण नीचे के कमरे में जाकर एक पुराना अख़बार उठाकर पढ़ना शुरू किया, अँधेरा हो आया,

98

भाग 3

3 अगस्त 2022
0
0
0

वर्षा की धारा के बीच रास्ते की बत्ती का अस्पष्ट प्रकाश अँधेरे कमरे में पहुँचा। सोफ़े पर सुनेत्रा को अपनी बग़ल में बिठाया। बोला, “सुनी, तुम मुझे अपना सच्चा साथी मानती हो न?” “तुम्हारा यह कैसा प्रश्न है

99

पत्नी का पत्र भाग 1

3 अगस्त 2022
0
0
0

श्रीचरणकमलेषु, आज हमारे विवाह को पंद्रह वर्ष हो गए, लेकिन अभी तक मैंने कभी तुमको चिट्ठी न लिखी। सदा तुम्हारे पास ही बनी रही - न जाने कितनी बातें कहती सुनती रही, पर चिट्ठी लिखने लायक दूरी कभी नहीं मिल

100

भाग 2

3 अगस्त 2022
0
0
0

मेरी बेटी जनमते ही मर गई। जाते समय उसने साथ चलने के लिए मुझे भी पुकारा था। अगर वह बची रहती तो मेरे जीवन में जो-कुछ महान है, जो कुछ सत्य है, वह सब मुझे ला देती; तब मैं मझली बहू से एकदम माँ बन जाती। गृह

101

भाग 3

3 अगस्त 2022
0
0
0

इधर मैं बिंदु-जैसी लड़की को जो इतना लाड़-प्यार करती थी यह बात तुम लोगों को बड़ी ज्यादती लगी। इसे लेकर बराबर खटपट होने लगी। जिस दिन मेरे कमरे से बाजूबंद चोरी हुआ उस दिन इस बात का आभास देते हुए तुम लोगो

102

भाग 4

3 अगस्त 2022
0
0
0

उधर बिंदु की ससुराल से उसके जेठ ने आकर बाहर बड़ा हंगामा खड़ा कर दिया। कहने लगा, थाने में रिपोर्ट कर दूँगा। मैं नहीं जानती मुझमें क्या शक्ति थी -लेकिन जिस गाय ने अपने प्राणों के डर से कसाई के हाथों से

103

भाग 5

3 अगस्त 2022
0
0
0

तुमने पूछा, बिंदु को लाकर फिर कहीं छिपा रखा है क्या? मैंने कहा, बिंदु अगर आती तो मैं जरूर ही छिपाकर रख लेती, लेकिन वह अब नहीं आएगी। तुम्हें डरने की कोई जरूरत नहीं है। शरद को मेरे पास देखकर तुम्हारा स

---

किताब पढ़िए