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अनाधिकार प्रवेश

3 अगस्त 2022

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किसी एक सुबह सड़क के पास खड़े हो कर एक लड़का एक दूसरे लड़के के साथ एक अतिसाहसिक कार्य से सम्बंधित शर्त रख रहा था। ठाकुरबाड़ी के पुष्पवाटिका से फूल तोड़ सकेगा या नहीं, यही उनके तर्क का विषय था। एक लड़का बोला, ‘सकेगा’ और दूसरा लड़का बोला ‘कभी नहीं सकेगा’।

ये काम सुनने में तो बहुत आसान है लेकिन करना उतना सहज नहीं, ऐसा क्यों है ये समझाने के लिए थोड़ा और विस्तार से बताना आवशयक है।

स्वर्गवासी माधवचन्द्र तर्कवाचस्पति की विधवा पत्नी जयकाली देवी राधानाथ जी के मन्दिर की उत्तराधिकारिणी हैं। अध्यापक महाशय को तर्कवाचस्पति उपाधि मिली ज़रूर थी लेकिन वो कभी अपनी पत्नी के सामने ये सिद्ध नहीं कर पाये थे। कुछ पंडितों का कहना था कि उनकी उपाधि सार्थक हुई थी क्योंकि सारे तर्क और वाक्य सबकुछ उनकी पत्नी के हिस्से ही आये थे और वो पतिरूप मे इसका फलभोग कर रहे थे।

सत्य तो यह था कि जयकाली ज़्यादा बात नहीं करती थी लेकिन बहुधा सिर्फ दो बातों में, कभी-कभी तो नीरव रह कर भी बड़ी-बड़ी बात करनेवालों की बोलती बन्द कर देती थी।

जयकाली दीर्घाकार, बलिष्ठ देहयष्टि, तीक्ष्णनासिकायुक्त प्रखरबुद्धि महिला थी। उनके पति के जीवित रहते ही उन्हें प्राप्त देवोत्तर संपत्ति उनके हाथ से निकली जा रही थी। किन्तु विधवा जयकाली ने अपनी समस्त बक़ाया संपत्ति वसूल कर उसकी सीमा-सरहद भी तय कर दी, जो उसका प्राप्य है कोई भी उसमें से एक रत्ती भी उसे वंचित नहीं कर सकता था।

इस महिला में बहुमात्रा में पौरुष होने के कारण उसका कोई संगी-साथी नहीं था। दूसरी स्त्रियां उससे भय खाती थीं। परनिंदा, छोटी बात या फिर बात-बात पर रोना-धोना उसके लिए असहनीय था। इतना ही नहीं पुरुष भी उससे भय ही खाते थे; क्योंकि ग्रामवासी चण्डीमण्डप में बैठ कर आलस्य से भरे गपबाजी में जो दिन बिताते थे उसे वो नीरव घृणापूर्ण कटाक्ष द्वारा धिक्कारती थी जो उनके स्थूल जड़त्व को भी भेद कर उनके ह्रदय में छेद कर देती थी।

प्रबल रूप में घृणा करना और उसी रूप में उसे प्रकट करने की असाधारण क्षमता थी उस प्रौढ़ा विधवा में। उनके विचारदृष्टि में यदि कोई अपराधी ठहरता तो उसे बातों से बिना बातों के भी भाव-भंगिमा से ही दग्ध कर देती थी।

गाँव के सारे कार्यक्रमों, आपदा-विपदा में उपस्थिति रहती। हर जगह वो अपने लिए एक गौरवपूर्ण सर्वोच्च स्थान बिना चेष्टा के ही प्राप्त कर लेती थी। जहां भी उनकी उपस्थिति रहेगी सबके बीच उन्हें ही प्रधान-पद मिलेगा इस विषय में न उनको और न ही दूसरों को कोई संदेह रहता।

रोगी सेवा में सिद्धहस्त थी लेकिन रोगी उनसे यमराज की भांति डरता। रोगमुक्त होने के लिए नियमपालन में लेशमात्र भी उल्लंघन जयकाली देवी की क्रोधाग्नि रोगी के बुखार से भी अधिक तप्त कर देती थी। दीर्घाकार ये महिला गाँव के मस्तक पर विधाता के कठोर नियमदंड की तरह सदैव उपस्थित रहती; कोई उनकी अवहेलना नहीं कर सकता था और न ही उनसे प्रेम करता था। गाँव के प्रत्येक व्यक्ति से उनका योगसूत्र था लेकिन फिर भी उनके जैसी एकाकी महिला और कोई नहीं थी।

जयकाली देवी निसंतान थी। मातृ-पितृहीन अपने भाई की दो संतानों को लालन-पालन के लिए अपने घर ले आई। घर में कोई पुरुष अभिभावक न होने के कारण उन दोनों पर कड़ा अनुशासन नहीं था और स्नेहान्ध बुआ के प्रेम से दोनों बिगड़ते जा रहे हैं ऐसी बात कोई नहीं कह सकता था। उन दोनों में से बड़े की उम्र अठारह वर्ष थी। कभी-कभी उसके विवाह के प्रस्ताव भी आने लगे थे और परिणयसूत्र में बंधने के प्रति उस किशोर का मन भी कदाचित उदासीन नहीं था लेकिन उसकी बुआ ने इस सुखवासना को एक दिन के लिए भी प्रश्रय नहीं दिया। अन्य महिलाओं की भांति किशोर नवदम्पत्ति के नवप्रेमोदगम दृश्य उनकी कल्पना में बहुत उपभोग्य, मनोरम जैसा कुछ नहीं था। और उनका भतीजा विवाह कर दूसरे पुरुषों की तरह दिनभर घर में पड़े रह कर पत्नी के प्रेम आह्लाद में खा-पी कर मोटा होता रहे- ये सम्भावना उनके सम्मुख असंभव प्रतीत होती थी। वो बहुत कड़े शब्दों में कहतीं- पुलिन पहले उपार्जन करना शुरू करे, उसके बाद ही बहू घर आएगी। बुआ के इतने कठोर वाक्य सुन आगंतुकों का हृदय फट जाता।

ठाकुरबाड़ी (मन्दिर) जयकाली देवी के लिए सर्वप्रमुख और यत्नशील धन था। भगवान के शयन, स्नान-आहार में तिलमात्र की त्रुटि भी असहनीय थी। पुजारी ब्राह्मण भी अपने दो देवताओं की अपेक्षा इस मानवी से सबसे ज़्यादा भय खाते थे। पहले, एक समय था जब स्वंय देवता के नाम से निकला हिस्सा भी उन्हें पूरा नहीं मिलता था। कारण; पुजारी ब्राह्मण की एक और पूजक-मूर्ति गोपनीय मन्दिर में थी; उसका नाम निस्तारिणी था।छुपा कर घी-दूध, छेना, मैदा, नैवेद्य स्वर्ग और नर्क में बराबर बाँट दिया करता था।लेकिन आजकल जयकाली के सामने देवता को उनके हिस्से का सोलह आना पूरा ही भोग चढ़ा दिया जाता है, उपदेवता को जीविका के लिए अब अन्यत्र उपाय देखना पड़ रहा है।

जयकाली की सेवा और यत्न से मन्दिर प्रांगण साफ-सुथरा झकझक करता है– कहीं एक तिनका भी पड़ा नहीं रहता। प्रांगण के पार्श्व में माधवी लता उग आयी है। उसके यदि एक भी सूखा पत्ता गिरे तो जयकाली तुरन्त उसे उठा कर बाहर फेंक देती है। मन्दिर की परिपाटी, शुद्धता और पवित्रता में लेशमात्र भी व्यवधान होने पर जयकाली देवी उसे सहन नहीं कर पाती थी। पहले गाँव के लड़के छुपा-छुपी खेलते हुए इसी प्रांगण में आश्रय लेते थे लेकिन अब ये सुयोग सम्भव नहीं। पर्व-उत्सव के अतिरिक्त मन्दिर प्रांगण में ऊधम मचाने की अनुमति किसी को नहीं। कभी-कभी बकरी शावक भी घुस आते थे पौधे लता-पत्ता खा कर अपनी भूख मिटाने के लिए, लेकिन अब यहां पाँव धरने पर दंड प्रहार खा कर मीमियाते हुए भागना पड़ता है।

अनाचारी व्यक्ति चाहे वो परम आत्मीय सम्बन्धी ही क्यों न हो उसका मन्दिर प्रांगण में प्रवेश नहीं हो सकता था। जयकाली की एक भगिनी का पति, जो खान-पान में धर्मच्युत, मांस लोलुप था आत्मीयतापूर्वक भेंट करने आया, किंतु जयकाली के त्वरित प्रवेश-विरोध प्रदर्शन पर सगी बहन से सम्बन्ध विच्छेद हो गया। इस मन्दिर से सम्बंधित अनावश्यक अतिरिक्त सतर्कता सामान्य व्यक्तियों के बीच पागलपन ही माना जाता था।

जयकाली बाकि हर जगह कठोर, दृढ और स्वतन्त्र थी, मात्र इस मन्दिर में वो सम्पूर्ण आत्मसमर्पित थी। इस मूर्ति के सामने जयकाली जननी, पत्नी, दासी—इनके सामने वो सतर्क, सुकोमल, सुंदर और नम्र थी। एकमात्र इस मन्दिर प्रस्तर और अंदर विराजे देवता के सामने ही जयकाली का निगूढ़ नारीस्वभाव चरितार्थ होता था, यही उसका स्वामी, पुत्र और समस्त संसार बन गया था।

इतना जानने के बाद पाठक अब समझ सकते हैं कि मन्दिरप्रांगण से फूल तोड़ कर दिखाने की प्रतिज्ञा करनेवाले लड़के के साहस की सचमुच कोई सीमा नहीं थी। वो जयकाली का छोटा भतीजा नलिन था। वो अपनी बुआ को बहुत अच्छी तरह जानता है फिर भी उसकी दुर्दांत प्रकृति, बुआ के अनुशासन के वश में नहीं आयी। जहाँ भी विपदा हो उसका आकर्षण भी वहीं होता, और जहाँ अनुशासन वहीं उसका मन उसे लंघित करने को चंचल हो उठता। जनश्रुति है, नलिन की बुआ भी अपने बाल्यकाल में उसी के स्वाभाव की अभिरूप थी।

जयकाली उस समय मातृ स्नेहमिश्रित भक्ति भाव सहित देवता की ओर दृष्टि टिकाये दालान में बैठ कर माला जाप कर रही थी।

लड़का दबे पाँव चुपचाप पीछे से आ कर माधवी लता के निचे खड़ा हो गया। देखा, निचली शाखाओं के फूल देवता को चढाने के लिए तोड़ लिए गए हैं, तब बहुत ही धीरे धीरे सावधानी से मंच पर चढ़ गया। ऊँची डाल पर छोटी-छोटी कलियाँ लगी हुई थीं, उन्हें ही तोड़ने के लिए उसने अपने शरीर और बाहों को ऊपर उठाना शुरू ही किया था की जीर्ण मंच मचमच की आवाज़ के साथ टूट कर टुकड़े हो गया। मंच से झूलती लताएँ और नलिन दोनो ही एक साथ भूमिसात हो गए।

जयकाली दौड़ कर आयी और अपने भतीजे के काण्ड की दर्शक बनी। ज़ोर से उसकी बाँह पकड़ उसे ज़मीन से उठाया। नलिन को काफी चोट आयी थी लेकिन उन चोटों को पर्याप्त सजा नहीं कहा जा सकता क्योंकि वो अज्ञात ही मिल जाता है ऐसा जयकाली देवी का विचार था, इसलिए उस चोटिल लड़के पर बुआ की कठोर मुष्टि का प्रहार भी पड़ने लगा। लड़के की आँख से एक बून्द आंसू नहीं टपका तब उसे खींचते हुए एक कमरे में ला कर बन्द कर दिया गया इतना ही नहीं आज शाम का नाश्ता भी न देने का आदेश हो गया।

खाना बन्द होने का आदेश सुन दासी लीलामति छलछलाती आँखों के साथ बच्चे को क्षमा कर देने का अनुरोध करने लगी किन्तु जयकाली का मन नहीं पसीजा। उस घर में ऐसा कोई दुःसाहसी नहीं था जो ब्राह्मणी के आदेश की अवमानना कर उस भूखे बच्चे को कुछ भी छुपा कर खिला सके।

जयकाली नया मंच बनाने का आदेश दे पुनः माला जाप करने दालान में आ कर बैठ गयी। कुछ देर बाद लीलामति पुनः उपस्थित हुई, बोली लड़का भूख से रो रहा है उसे कुछ खाने के लिए दे दूँ?

अविचलित एक शब्द में उत्तर मिला, नहीं! लीलामति चुपचाप लौट गयी। पास ही एक कमरे में बन्द नलिन के रोने का करुण स्वर धीरे-धीरे क्रोध गर्जना में परिवर्तित होने लगा—अंत में बहुत देर बाद उसका कातर रुद्ध कंठस्वर माला जपती हुई बुआ के कान तक पहुंचा।

नलिन का रुदन जब परिश्रांत और मौनप्राय हो आया ठीक तभी एक दूसरे प्राणी की डरी हुई कातर ध्वनि सुनाई पड़ने लगी और उसके साथ ही एकसाथ दौड़ते हुए चीत्कार करते कुछ लोगों की कलरव ध्वनि मन्दिर के सम्मुख उपस्थित हुई।

सहसा मन्दिर प्रांगण में पदध्वनि हुई। जयकाली पीछे मुड़ कर देखी, भूमि तक माधवी लता हिल रही है।

मृदु स्वर में जयकाली आवाज़ दी, ‘नलिन!’

कोई उत्तर नहीं मिला। समझी, किसी प्रकार बन्दीगृह से पलायन कर फिर से उन्हें तंग करने यहां पहुँच गया है।

अपनी मुस्कान होंठों को दबा कर छुपाते हुए प्रांगण में उत्तर आयी।

लताकुंज के पास जा कर पुनः आवाज़ लगायी, ‘नलिन!’

कोई उत्तर नहीं मिला। एक शाखा हटा कर जयकाली ने देखा, एक शूकर प्राणभय से आक्रांत हो घने लताकुंज में आश्रय ले कर छुपा है।

जो लताकुंज इष्टदेवता के वृन्दावन का प्रतिरूप, जिसकी खिली हुई कलियों की सुगन्ध गोपियों के श्वास सुरभि की याद दिलाती है और कालिंदी तट के सुखविहार, सौंदर्यस्वप्न को जागृत करती है--- जयकाली के प्राणों से भी अधिक यत्न से पवित्र बनाये रखे इस नंदनभूमि पर अकस्मात ऐसी वीभत्स घटना घट गयी!

पुजारी लाठी हाथ में ले दौड़ा आया।

जयकाली तुरंत ही अग्रसर हो उसे रोक दी और द्रुतगति से मंदिर का मुख्यद्वार अंदर से बन्द कर दी।

सुरापान से उन्मत डोम दल मन्दिर द्वार पर आकर चिल्लाने लगे उन्हें उनका बलि-पशु वापस चाहिए!

जयकाली बन्द द्वार के पीछे से ही चिल्ला कर बोली, ‘जाओ, यहाँ से भाग जाओ! मेरा मंदिर अपवित्र मत करो!

डोम दल वापस लौट गया। जयकाली ब्राह्मणी अपने राधानाथ जी के मन्दिर में एक अशुचि प्राणी को आश्रय देगी, ये प्रत्यक्ष देख कर भी किसी को अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हो रहा था।

इस सामान्य सी एक घटना ने अखिल जगत के महादेवता को भले ही परम प्रसन्न किया होगा किन्तु समाज नामधारी अतिक्षुद्र देवता बहुत क्षुब्ध हो गए।

अनुवाद भेद: अनधिकार प्रवेश रबीन्द्रनाथ टैगोर

एक दिन प्रात:काल की बात है कि दो बालक राह किनारे खड़े तर्क कर रहे थे। एक बालक ने दूसरे बालक से विषम-साहस के एक काम के बारे में बाज़ी बदी थी। विवाद का विषय यह था कि ठाकुरबाड़ी के माधवी-लता-कुंज से फूल तोड़ लाना संभव है कि नहीं। एक बालक ने कहा कि 'मैं तो ज़रूर ला सकता हूँ' और दूसरे बालक का कहना था कि 'तुम हरगिज़ नहीं ला सकते।'

सुनने में तो यह काम बड़ा ही सहज-सरल जान पड़ता है। फिर क्या बात थी कि करने में यह काम उतना सरल नहीं था ? इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए आवश्यक है कि इससे संबंधित वृत्तांत का विवरण कुछ और विस्तार के साथ प्रस्तुत किया जाए।

मंदिर राधानाथ जी का था और उसकी अधिकारिणी स्वर्गीय माधवचंद्र तर्कवाचस्पति की विधवा पत्नी जयकाली देवी थीं।

जयकाली का आकार दीर्घ, शरीर दृढ़, नासिका तीक्ष्ण और बुद्धि प्रखर थी। इनके पतिदेव के जीवनकाल में एक बार परिस्थिति ऐसी हो गई थी कि इस देवोत्तर संपत्ति के नष्ट हो जाने की आशंका उत्पन्न हो गई थी। उस समय जयकाली ने सारा ब़ाकी-ब़काया देना अदा करके, हद-चौहद्दी पक्की करके और लंबे अरसे से बेदख़ल जायदाद को दख़ल-क़ब्जे में ला करके सारा मामला साफ़-सूफ़ कर दिया था। किसी की यह मजाल नहीं थी कि जयकाली को उनके प्राप्य धन की एक कानी कौड़ी से भी वंचित कर सके।

स्त्री होने पर भी उनकी प्रकृति में पौरुष का अंश इतने प्रचुर परिमाण में था कि उनका यथार्थ संगी कोई भी नहीं हो सका था। स्त्रियाँ उनसे भय खाती थीं। परनिंदा, ओछी बात, रोना-धोना या नाक बजाना उन्हें तनिक भी सहन नहीं होता था। पुरुष भी उनसे डरे-डरे रहते थे। कारण यह था कि चंडी-मंडप की बैठक-बाजी में ग्रामवासी भद्र-पुरुषों का जो अगाध आलस्य व्यक्त होता था, उसे वह एक प्रकार के नीरव घृणापूर्ण तीक्ष्ण कटाक्ष से कुछ इतना धिक्कार सकती थीं कि उनकी धिक्कार आलसियों की स्थूल जड़ता को भेदकर सीधे अंतर में उतर पड़ता था।

प्रबल घृणा करने एवं उस घृणा को प्रबलतापूर्वक प्रगट करने की असाधारण क्षमता इस प्रौढ़ा विधवा में थी। विचार-निर्णय से जिसे अपराधी मान लेतीं, उसे वाणी और मौन से, भाव और भंगिमा से बिलकुल ही जलाकर भस्म कर डालना ही उनका स्वभाव था।

उनके हाथ गाँव के समस्त हर्ष-विषाद में, आपद्-संपद् में और क्रिया-कर्म में निरलस रूप से व्यस्त रहते थे। हर कहीं अतिसहज भाव से और अनायास ही अपने लिए गौरव का स्थान अधिकार कर लिया करती थीं। जहाँ कहीं भी वह उपस्थित होतीं वहाँ उनके अपने अथवा किसी अन्य उपस्थित व्यक्ति के मन में इस संबंध में रत्ती-भर भी संदेह नहीं रहता था कि सबके प्रधान के पद पर तो वही हैं।

रोगी की सेवा में वह सिद्धहस्त थीं, पर रोगी उनसे इतना भय खाता कि कोई यम से भी क्या डरेगा! पथ्य या नियम का लेशमात्र भी उल्लंघन होने पर उनका क्रोधानल रोगी को रोग के ताप की अपेक्षा कहीं अधिक उत्तप्त कर डालता था।

यह दीर्घाकृति कठिन-स्वभाव विधवा गाँव के मस्तक पर विधाता के कठोर नियम-दंड की भाँति सदा उद्यत रहती थीं। किसी को भी यह साहस नहीं हो सकता था कि वह उन्हें प्यार करे अथवा उनकी अवहेलना करे।

विधवा निस्संतान थीं। उनके घर में उनके दो मातृ-पितृहीन भतीजे पाले-पोसे जा रहे थे। यह तो कोई नहीं कह सकता था कि पुरुष अभिभावक के अभाव में इन बालकों पर किसी प्रकार का शासन नहीं था अथवा स्नेहांध फूफी-माँ के लाड़-दुलार के कारण वे बिगड़े जा रहे थे। बड़ा भतीजा अठारह वर्ष का हो गया था। अब तक उसके विवाह के प्रस्ताव भी आने लगे थे। परिणय बंधन के संबंध में उस बालक का अपना चित्त भी कोई उदासीन नहीं था। परंतु फूफी-माँ ने उसकी इस सुख-वासना को एक दिन के लिए भी कोई प्रश्रय नहीं दिया। वह कठिन हृदयतापूर्वक कहती कि नलिन पहले उपार्जन करना आरंभ कर ले तो पीछे घर में बहू लाएगा। फूफी-माँ के मुख से निकले इस कठोर वाक्य से पड़ोसिनों के हृदय विदीर्ण हो जाते।

ठाकुरबाड़ी जयकाली का सबसे अधिक प्यारा धन था। उसके लिए उनके यत्नों का कोई अंत न था। ठाकुरजी के सेवन, मज्जन, अशन-वसन-शयन आदि में तिल-भर त्रुटि भी कदापि नहीं हो सकती थी। पूजा-कार्य में नियुक्त दोनों ब्राह्मण देवता की अपेक्षा इस एक मानवी ठकुरानी से कहीं अधिक भयभीत रहते थे। पहले एक समय ऐसा भी था कि देवता के नाम पर उत्सर्ग किया हुआ पूरा नैवेद्य देवता को मिल नहीं पाता था। परंतु जयकाली के शासनकाल में पुजापे के शत-प्रतिशत अंश ठाकुरजी के भोग में ही लगते थे।

विधवा के यत्न से ठाकुरबाड़ी का प्रांगण स्वच्छता के मारे चमचमाता रहता था। कहीं एक तिनका तक भी पड़ा नहीं पाया जा सकता था। एक पार्श्व में मंच का अवलंबन करके माधवी-लता का वितान फैला था। उसके किसी शुष्क पत्र के झरते ही जयकाली उसे उठाकर बाहर डाल आती थीं। ठाकुरबाड़ी की परंपरागत परिपाटी से परखी जाने वाली परिच्छन्नता एवं पवित्रता में रंच मात्र का व्याघात भी विधवा के लिए नितांत असहनीय था। पहले तो टोले के लड़के लुका-छिपी खेलने के उपलक्ष्य में इस प्रांगण में प्रवेश करके इसके किसी प्रांतभाग में आश्रय ग्रहण किया करते थे और कभी-कभी टोले की बकरियों के पठरू भी पैठकर माधवी लता के वल्कलांश का थोड़ा-बहुत भक्षण कर जाया करते थे। परंतु जयकाली के काल में न तो लड़कों को वह सुयोग मिल पाता और न छागल-शिशुओं को ही। पर्व-दिवसों के अतिरिक्त कभी भी बालकों को मंदिर के प्रांगण में प्रवेश का अवसर नहीं मिल पाता था और छागल-शिशु भी दंड-प्रहार का आघात मात्र खाकर सिंहद्वार के पास से ही तीव्र स्वरों में अपनी अजा-जननी का आह्वान करते हुए लौट जाने को विवश हो जाते थे।

परम आत्मीय व्यक्ति भी यदि अनाचारी हो तो देवालय के प्रांगण में प्रवेश करने के अधिकार से सर्वथा वंचित रहना पड़ता था। जयकाली के एक बावरची-कर-पक्क-कुक्कुट-मांस-लोलुप-भगिनी-पति महोदय आत्मीय संदर्शन के उपलक्ष्य में ग्राम में उपस्थित होकर मंदिर के प्रांगण में प्रवेश का उपक्रम कर रहे थे कि जयकाली ने शीघ्रतापूर्वक तीव्र आपत्ति प्रकट की थी, जिसके कारण उनके लिए अपनी सहोदरा भगिनी तक से संबंध-विच्छेद की संभावना उपस्थित हो गई थी। इस देवालय के संबंध में विधवा को इतनी अतिरिक्त एवं अनावश्यक सतर्कता थी कि सर्वसाधारण के निकट तो वह बहुत-कुछ आडंबर सी प्रतीत होती थी।

अन्यत्र तो जयकाली सर्वत्र ही कठिन-कठोर थीं, उन्नत मस्तक थीं, स्वतंत्र निर्बंध थीं। परंतु केवल इस मंदिर के सम्मुख उन्होंने संपूर्ण रूप से आत्मसमर्पण कर दिया था। मंदिर में प्रतिष्ठित विग्रह के प्रति वह एकांत भाव से जननी, पत्नी, दासी आदि सब-कुछ थीं। उसके संबंध में वे सदैव सतर्क, सुकोमल, सुंदर एवं संपूर्णत: अवनम्र थीं। प्रस्तर-निर्मित यह मंदिर तथा इसमें प्रतिष्ठित प्रस्तर-प्रतिमा ये दो वस्तुएँ ही ऐसी थीं, जो उनके निगूढ़ नारी-स्वाभाव की एकमात्र चरितार्थक के विषय थीं। यही दो वस्तुएँ उनके स्वामी और पुत्र के स्थान पर थीं। यही दो उनका समस्त थीं।

इसी से पाठक समझ लेंगे कि जिस बालक ने मंदिर-प्रांगण से माधवी-मंजरी का आहरण करने की प्रतिज्ञा की थी, उसका साहस भी असीम रहा होगा। वह बालक और कोई नहीं, जयकाली का भ्रातुष्पुत्र नलिन था। वह अपनी फूफी-माँ को बड़ी भली तरह जानता था, तथापि उसकी दुर्दांत प्रकृति किसी प्रकार के भी शासन के वशवर्ती नहीं होती थी। जहाँ कहीं भी विपद की संभावना होती, वहाँ उसे एक विचित्र आकर्षण महसूस होता और जहाँ कहीं भी शासन या प्रतिबंध होता, वहाँ उल्लंघन करने के लिए उसका चित्त चंचल हो उठता। अनुश्रुति है कि अपने बाल्यकाल में उसकी फूफी-माँ का स्वभाव भी ठीक ऐसा ही था।

उस समय जयकाली मातृ-स्नेह मिश्रित भक्तिपूर्वक ठाकुरजी पर अपनी दृष्टि निबद्ध किए दालान में बैठी अनन्य-अभिनिविष्ट मन से माला जप रही थीं।

बालक पीछे से अशब्द-पदसंचारपूर्वक आकर माधवी-लता वितान तले खड़ा हो गया। उसने देखा कि निम्नतर शाखाओं के फूल तो पूजा के निमित्त तोड़े जाकर नि:शेष हो चुके थे। गत्यंतर न देख उसने अत्यंत धीरे-धीरे और बहुत ही सावधानीपूर्वक लता मंच पर आरोहण किया। उच्चतर प्रशाखाओं पर विकचोन्मुख कलिकाएँ देखकर उन्हें तोड़ने के लिए ज्यों ही उसने अपने शरीर एवं बाहु को प्रसारित किया, त्योंही उस प्रबल प्रयास के भार से माधवी-लता का जीर्ण मंच चरम शब्दपूर्वक टूट पड़ा। मंचाश्रित लता एवं बालक दोनों एकत्र ही भूमिसात् हुए।

जयकाली हड़बड़ाकर दौड़ी आईं। उन्होंने अपने भ्रातुष्पुत्र की कीर्ति का अवलोकन किया। बलपूर्वक उसकी भुजा पकड़ के उसे मिट्टी से उठाया। आघात तो उसे यथेष्ठ लगा था, किंतु उस आघात को दंड नहीं माना जा सकता था, क्योंकि वह तो ज्ञान-संज्ञाहीन जड़ का आघात था। अतएव मंचपतित बालक की व्यथित देह पर जयकाली का ज्ञान संज्ञायुक्त शासन-दंड मुहुर्मुह: बलपूर्वक वर्षित होने लगा। बालक ने बिंदु-मात्र भी अश्रुपात किए बिना ही उनके दंड को नीरवतापूर्वक सहन किया। इस पर उसकी फूफी माँ ने उसे घसीटकर घर में अवरुद्ध कर दिया। उसके उस दिन के सांयकालिक आहार का निषेध कर दिया गया।

आहार-निषेध का समाचार सुनकर दासी मोक्षदा ने कातर कंठ एवं जल-छलछल नेत्र से बालक को क्षमादान करने का अनुरोध किया। परंतु जयकाली का हृदय विगलित नहीं हुआ। उस घर में ऐसा दु:साहसी व्यक्ति कोई नहीं था, जो ठकुरानी को सूचना-वंचित रखकर गुप्त रूप से उस क्षुधित बालक के लिए खाद्य की व्यवस्था कर देता।

विधवा माधवी-मंच के पुन: संस्कार के लिए श्रमिक बुलाने का आदेश देकर पुनर्वार माला लेकर दालान में आ बैठीं। कुछ समय व्यतीत होने के पश्चात् मोक्षदा अत्यंत भयभीत भाव से उनके निकट गई और बोली, ''ठकुरानी माँ, छोटे बाबू भूख के मारे बिलख रहे हैं, उन्हें थोड़ा-सा दूध ला दूँ ?''

जयकाली ने अविचलित मुख-मुद्रा से कहा, ''नहीं !''

मोक्षदा लौट गई। अदूरवर्ती कुटीर-गृह से नलिन का करुण क्रंदन क्रम-क्रम से बढ़ता हुआ क्रोध के गर्जन के रूप में परिणत हो उठा-पर गर्जन-पर्व भी समाप्त हुआ और अंत में, बहुत देर के पश्चात् उसकी कातरता का परिश्रांत उच्छवास रह-रहकर जप-निरता फूफी माँ के कर्ण-कुहरों में पहुँच-पहुँचकर ध्वनित होने लगा।

नलिन का आर्त्त कंठ परिश्रांत एवं मौनप्राय हो चला था कि किसी और निकटवर्ती जीव की भीत एवं कातर ध्वनि कर्ण-गोचर होने लगी तथा उसके संग-संग ही धावमान मनुष्यों का दूरवर्ती चीत्कार शब्द उसके साथ मिश्रित होकर मंदिर के सम्मुखवर्ती मार्ग पर एक कोलाहल के रूप में उत्थित हो उठा।

सहसा मंदिर-प्रांगण में कोई पद-शब्द सुनाई पड़ा। पीछे मुड़कर जयकाली ने देखा कि भूपर्यस्त माधवी-लता आंदोलित हो रही है।

रोषपूर्ण कंठ से पुकारा, ''नलिन !''

कोई उत्तर नहीं मिला। जयकाली ने समझा कि दुर्दम नलिन किसी उपाय से बंदीशाला से पलायन करके मुझे चिढ़ाने आया है।

यही सोचकर वह अत्यंत कठिन मुद्रा बनाकर एवं अधर के ऊपर ओष्ठ को अत्यंत कठिन रूप से दाबकर प्रांगण में उतर आई।

लता-कुंज के निकट आकर पुनर्वार पुकारा, ''नलिन !''

उत्तर प्राप्त नहीं हुआ। उन्होंने माधवी की शाखा को उठाकर देखा कि एक अत्यंत ही मलिन-शूकर ने प्राण-भय से भीत होकर घन-पल्लव के अंतराल में आश्रय लिया है।

जो लता वितान इष्टक-निर्मित प्राचीर से परिवेष्ठित उस प्रांगण में वृदा-विपिन का संक्षिप्त प्रतिरूप हो, जिसकी विकसित कुसुम-मंजरी का सौरभ गोपिता-वंद के सुरभित नि:श्वास का स्मरण कराता रहता हो एवं कालिंदी-तीरवर्ती सुख-विहार के सौंदर्य-स्वप्न को जाग्रत करता रहता हो, विधवा जयकाली की उस प्राणाधिक यत्नों से लालित सुपवित्र नंदन-भूमि में अकस्मात् यह कैसा वीभत्स कांड घटित हो गया।

पुजारी ब्राह्मण लाठी लेकर उस मल-मलिन पशु को भगाने दौड़ा। जयकाली तत्क्षण नीचे उतर आई, पुजारी के शूकर-ताड़न कर्म का निषेध किया एवं भीतर से मंदिर प्रांगण का द्वार अवरुद्ध कर दिया।

अनति-काल अतिवाहित होन के पश्चात् सुरा-पान-मत्त डोम-दल मंदिर के द्वार पर उपस्थित होकर बलि-पशु के लिए चीत्कार करने लगा।

रुद्ध द्वार के पीछे खड़ी होकर जयकाली ने कहा, "लौट जाओ बेटो, लौट जाओ। मेरे मंदिर को अपवित्र मत कर बैठना।"

डोमों का दल लौट गया। वे प्राय: प्रत्यक्ष देखकर भी इस बात पर विश्वास नहीं कर सके कि जयकाली ठकुरानी अपने राधानाथ जी के मंदिर में उस अशुचि जंतु को आश्रय दे सकती हैं!

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रवीन्द्रनाथ टैगोर की प्रसिद्ध कहानियाँ
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रबीन्द्रनाथ टैगोर एक महान भारतीय कवि थे। उनका जन्म 7 मई 1861 में कोलकाता के जोर-साँको में हुआ था। इनके माता-पिता का नाम शारदा देवी (माता) और महर्षि देवेन्द्रनाथ टैगोर (पिता) था। टैगोर ने अपनी शिक्षा घर में ही विभिन्न विषयों के निजी शिक्षकों के संरक्षण में ली। कविता लिखने की शुरुआत इन्होंने बहुत कम उम्र में ही कर दी थी। वो अभी-भी एक प्रसिद्ध कवि बने हुए हैं क्योंकि उन्होंने हजारों कविताएँ, लघु कहानियाँ, गानें, निबंध, नाटक आदि लिखें हैं। टैगोर और उनका कार्य पूरे विश्वभर में प्रसिद्ध है। वो पहले ऐसे भारतीय बने जिन्हें “गीतांजलि” नामक अपने महान लेखन के लिये 1913 में नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वो एक दर्शनशास्त्री, एक चित्रकार और एक महान देशभक्त भी थे जिन्होंने हमारे देश के राष्ट्रगान “जन गण मन” की रचना की।
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अनमोल भेंट

3 अगस्त 2022
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1 रायचरण बारह वर्ष की आयु से अपने मालिक का बच्‍चा खिलाने पर नौकर हुआ था। उसके पश्चात् काफी समय बीत गया। नन्हा बच्‍चा रायचरण की गोद से निकलकर स्कूल में प्रविष्ट हुआ, स्कूल से कॉलिज में पहुँचा, फिर एक

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अनाधिकार प्रवेश

3 अगस्त 2022
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किसी एक सुबह सड़क के पास खड़े हो कर एक लड़का एक दूसरे लड़के के साथ एक अतिसाहसिक कार्य से सम्बंधित शर्त रख रहा था। ठाकुरबाड़ी के पुष्पवाटिका से फूल तोड़ सकेगा या नहीं, यही उनके तर्क का विषय था। एक लड़का बोला,

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अवगुंठन

3 अगस्त 2022
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महामाया और राजीव लोचन दोनों सरिता के तट पर एक प्राचीन शिवालय के खंडहरों में मिले। महामाया ने मुख से कुछ न कहकर अपनी स्वाभाविक गम्भीर दृष्टि से तनिक कुछ तिरस्कृत अवस्था में राजीव की ओर देखा, जिसका अर्थ

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इच्छापूर्ण

3 अगस्त 2022
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सुबलचन्द्र के बेटे का नाम सुशीलचन्द्र है. लेकिन हमेशा नाम के अनुरूप व्यक्ति भी हो ऐसा कतई ज़रूरी नहीं. तभी तो सुबलचन्द्र दुर्बल थे और उनका बेटा सुशीलचन्द्र बिलकुल भी शांत नही बल्कि बहुत चंचल था. उनका

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कवि का हृदय

3 अगस्त 2022
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चांदनी रात में भगवान विष्णु बैठे मन-ही-मन गुनगुना रहे थे- "मैं विचार किया करता था कि मनुष्य सृष्टि का सबसे सुन्दर निर्माण है, किन्तु मेरा विचार भ्रामक सिध्द हुआ। कमल के उस फूल को, जो वायु के झोंकों स

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काबुलीवाला

3 अगस्त 2022
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मेरी पाँच वर्ष की छोटी लड़की मिनी से पल भर भी बात किए बिना नहीं रहा जाता। दुनिया में आने के बाद भाषा सीखने में उसने सिर्फ एक ही वर्ष लगाया होगा। उसके बाद से जितनी देर तक सो नहीं पाती है, उस समय का एक

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गूंगी भाग 1

3 अगस्त 2022
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कन्या का नाम जब सुभाषिणी रखा गया था तब कौन जानता था कि वह गूंगी होगी। इसके पहले, उसकी दो बड़ी बहनों के सुकेशिनी और सुहासिनी नाम रखे जा चुके थे, इसी से तुकबन्दी मिलाने के हेतु उसके पिता ने छोटी कन्या क

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भाग 2

3 अगस्त 2022
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गांव का नाम है चंडीपुर। उसके पार्श्व में बहने वाली सरिता बंगाल की एक छोटी-सी सरिता है, गृहस्थ के घर की छोटी लड़की के समान। बहुत दूर तक उसका फैलाव नहीं है, उसको तनिक भी आलस्य नहीं, वह अपनी इकहरी देह लि

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भाग 3

3 अगस्त 2022
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सुभाषिणी की कोई सहेली हो ही नहीं, सो बात नहीं। गौ-घर में दो गायें हैं, एक का नाम है सरस्वती और दूसरी का नाम है पार्वती। ये नाम सुभाषिणी के मुंह से उन गायों ने कभी भी नहीं सुने, परन्तु वे उसके पैरों की

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भाग 4

3 अगस्त 2022
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ऊंची श्रेणी के प्राणियों में सुभाषिणी को और भी एक मित्र मिल गया था, किन्तु उसके साथ उसका ठीक कैसा सम्बन्ध था, इसकी पक्की खबर बताना मुश्किल है। क्योंकि उसके बोलने की जिह्ना है और वह गूंगी है, अत: दोनों

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भाग 5

3 अगस्त 2022
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सुभाषिणी की अवस्था दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है। धीरे-धीरे मानो वह अपने आपको अनुभव कर रही है। मानो किसी एक पूर्णिमा को किसी सागर से एक ज्वार-सा आकर उसके अन्तराल को किसी एक नवीन अनिर्वचनीय चेतना-शक्

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भाग 6

3 अगस्त 2022
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कलकत्ते के एक किराये के मकान में एक दिन सुभा की माता ने उसे वस्त्रों से खूब सजा दिया। कसकर उसका जूड़ा बांध दिया, उसमें जरी का फीता लपेट दिया, आभूषणों से लादकर उसके स्वाभाविक सौंदर्य को भरसक मिटा दिया।

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तोता

3 अगस्त 2022
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1 एक था तोता । वह बड़ा मूर्ख था। गाता तो था, पर शास्त्र नही पढ़ता था । उछलता था, फुदकता था, उडता था, पर यह नहीं जानता था कि क़ायदा-क़ानून किसे कहते हैं । राजा बोले, ''ऐसा तोता किस काम का? इससे लाभ त

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नई रोशनी भाग 1

3 अगस्त 2022
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बाबू अनाथ बन्धु बी.ए. में पढ़ते थे। परन्तु कई वर्षों से निरन्तर फेल हो रहे थे। उनके सम्बन्धियों का विचार था कि वह इस वर्ष अवश्य उत्तीर्ण हो जाएंगे, पर इस वर्ष उन्होंने परीक्षा देना ही उचित न समझा। इस

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भाग 2

3 अगस्त 2022
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विन्ध्यवासिनी ने जो बातें कमला से कही थीं वे सब उसने अपने पति से सुनी थीं, नहीं तो उस बेचारी को विलायत का हाल क्या मालूम था। कमला आई तो थी हर्ष का समाचार सुनाने, किन्तु अपनी प्रिय सहेली के मुख से ऐसे

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भाग 3

3 अगस्त 2022
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चलते समय माता-पिता ने विन्ध्य से कुछ दिनों और रहने के लिए कहा किन्तु विन्ध्य ने कुछ उत्तर न दिया। यह देखकर माता-पिता के हृदय में शंका हुई। उन्होंने कहा-"बेटी विन्ध्य! यदि हमसे कोई ऐसी वैसी बात हुई हो

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भाग 4

3 अगस्त 2022
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दुर्गा-पूजा के दिन समीप आये तो विन्ध्य के पिता ने बेटी और दामाद को बुलाने के लिए आदमी भेजा। विन्ध्य खुशी-खुशी मैके आई। मां ने बेटी और दामाद को रहने के लिए अपना कमरा दे दिया। दुर्गा-पूजा की रात को यह स

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भाग 5

3 अगस्त 2022
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इसके बाद समय बीतता गया, किन्तु अनाथ बंधु ने विन्ध्य को कोई पत्र न लिखा और न अपनी मां की ही कोई सुधबुध ली। पर जब आखिरकार सब रुपये, जो उनके पास थे खर्च हो गये तो बहुत ही घबराये और विन्ध्य के पास एक तार

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भाग 6

3 अगस्त 2022
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अनाथ बन्धु ने प्रायश्चित करना स्वीकार कर लिया। पंडितों से सलाह ली गई तो उन्होंने कहा- "यदि इन्होंने विलायत में रहकर मांस नहीं खाया है तो इनकी शुध्दि वेद-मन्त्रों द्वारा की जा सकती है।" यह समाचार सुनक

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प्रेम का मूल्य

3 अगस्त 2022
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बृहस्पति छोटे देवतओं का गुरु था। उसने अपने बेटे कच को संसार में भेजा कि शंकराचार्य से अमर-जीवन का रहस्य मालूम करे। कच शिक्षा प्राप्त करके स्वर्ग-लोक को जाने के लिए तैयार था। उस समय वह अपने गुरु की पुत

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पिंजर भाग 1

3 अगस्त 2022
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जब मैं पढ़ाई की पुस्तकें समाप्त कर चुका तो मेरे पिता ने मुझे वैद्यक सिखानी चाही और इस काम के लिए एक जगत के अनुभवी गुरु को नियुक्त कर दिया। मेरा नवीन गुरु केवल देशी वैद्यक में ही चतुर न था, बल्कि डॉक्ट

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भाग 2

3 अगस्त 2022
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कुछ दिनों पहले की घटना है कि एक रात को गार्हस्थ आवश्यकताओं के कारण मुझे उस कमरे में सोना पड़ा। मेरे लिए यह नई बात थी। अत: नींद न आई और मैं काफी समय तक करवटें बदलता रहा। यहां तक कि समीप के गिरजाघर ने ब

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भाग 3

3 अगस्त 2022
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वह बोली-"महाशय, जब मैं मनुष्य के रूप में थी तो केवल एक व्यक्ति से डरती थी और वह व्यक्ति मेरे लिए मानो मृत्यु का देवता था। वह था मेरा पति। जिस प्रकार कोई व्यक्ति मछली को कांटा लगाकर पानी से बाहर ले आया

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भाग 4

3 अगस्त 2022
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"लगन का मुहूर्त बहुत रात गए निश्चित हुआ था और बारात देर से जानी थी। अत: डॉक्टर और मेरा भाई प्रतिदिन की भांति शराब पीने बैठ गये। इस मनोविनोद में उनको बहुत देर हो गई। "ग्यारह बजने को थे कि मैं उनके पास

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यह स्वतन्त्रता/घर वापसी भाग 1

3 अगस्त 2022
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पाठक चक्रवर्ती अपने मुहल्ले के लड़कों का नेता था। सब उसकी आज्ञा मानते थे। यदि कोई उसके विरुध्द जाता तो उस पर आफत आ जाती, सब मुहल्ले के लड़के उसको मारते थे। आखिरकार बेचारे को विवश होकर पाठक से क्षमा मा

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भाग 2

3 अगस्त 2022
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बम्बई पहुंचकर पाठक अपनी मामी से पहली बार मिला। वह उसके आने से कुछ प्रसन्न न हुई; क्योंकि उसके तीन बच्चे ही काफी थे एक और चंचल लड़के का आ जाना उसके लिए आपत्ति थी। ऐसे लड़के के लिए उसका अपना घर ही स्वर

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भाग 3

3 अगस्त 2022
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मध्यान्ह पुलिस का सिपाही विशम्भर के द्वार पर आया। वर्षा अब भी हो रही थी और सड़कों पर पानी खड़ा था। दो सिपाही पाठक को हाथों पर उठाए हुए लाए और विशम्भर के सामने रख दिया। पाठक के सिर से पांव तक कीचड़ लगी

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विदा

3 अगस्त 2022
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कन्या के पिता के लिए धैर्य धरना थोड़ा-बहुत संभव भी था; परन्तु वर के पिता पल भर के लिए भी सब्र करने को तैयार न थे। उन्होंने समझ लिया था कि कन्या के विवाह की आयु पार हो चुकी है; परन्तु किसी प्रकार कुछ द

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सीमान्त भाग 1

3 अगस्त 2022
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उस दिन सवेरे कुछ ठण्ड थी; परन्तु दोपहर के समय हवा गर्मी पाकर दक्षिण दिशा की ओर से बहने लगी थी। यतीन जिस बरामदे में बैठा हुआ था, वहां से उद्यान के एक कोने में खड़े हुए कटहल और दूसरी ओर के शिरीष वृक्ष क

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भाग 2

3 अगस्त 2022
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यतीन सारी रात अपने कमरे की खिड़कियां खोलकर जाने क्या-क्या सोचता रहा? जिस लड़की ने अपने मां-बाप को मरते देखा है। उसके जीवन पर कैसी भयंकर छाया आकर पड़ी होगी? ऐसी विदारक घटना के भीतर से आज वह इतनी बड़ी ह

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भाग 3

3 अगस्त 2022
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उस दिन संध्या को घर में रोगिनी और डॉक्टर के सिवा कोई नहीं था। सिरहाने के पास रंगीन कागज के आवरण से घिरा हुआ मिट्टी के तेल का लैम्प धीमी रोशनी फैला रहा था। कॉर्नस पर रखीं हुई टाइमपीस निस्तब्ध कमरे में

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संकट तृण का

3 अगस्त 2022
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जमींदार के नायब गिरीश बसु के घर में प्यारी नाम की एक नौकरानी काम पर नई-नई लगी। कमसिन प्यारी अपने नाम के अनुरूप रुप और स्वभाव में भी थी। वह दूर पराए गांव से काम करने आई थी। कुछ ही दिन हुए थे उसे इस स्थ

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अतिथि

3 अगस्त 2022
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काँठलिया के जमींदार मतिलाल बाबू नौका से सपरिवार अपने घर जा रहे थे। रास्ते में दोपहर के समय नदी के किनारे की एक मंडी के पास नौका बाँधकर भोजन बनाने का आयोजन कर ही रहे थे कि इसी बीच एक ब्राह्मण-बालक ने आ

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भाग 2

3 अगस्त 2022
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भोजन समाप्त होने पर नौका चल पड़ी। अन्नपूर्णा बड़े स्नेह से ब्राह्मण-बालक से उसके घर की बातें, उसके स्वजन-कुटुंबियों का समाचार पूछने लगीं। तारापद ने अत्यंत संक्षेप में उनका उत्तर देकर बाहर आकर परित्राण

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भाग 3

3 अगस्त 2022
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चारुशशि अपने माता-पिता की इकलौती संतान और उनके स्नेह की एकमात्र अधिकारिणी थी। उसकी धुन और हठ की कोई सीमा न थी। खाने, पहनने, बाल बनाने के संबंध में उसका स्वतंत्र मत था; किंतु उसके मन में तनिक भी स्थिरत

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भाग 4

3 अगस्त 2022
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नंदीग्राम कब छूट गया, तारापद को पता न चला। विशाल नौका अत्यंत मृदु-मंद गति से कभी पाल तानकर, कभी रस्सी खींचकर अनेक नदियों की शाखा-प्रशाखाओं में होकर चलने लगी; नौकारोहियों के दिन भी इन सब नदी-उपनदियों क

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भाग 5

3 अगस्त 2022
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तारापद अपनी प्रखर स्मरण-शक्ति एवं अखंड मनोयोग के साथ अंग्रेजी शिक्षा में प्रवृत्त हुआ। मानो वह किसी नवीन दुर्गम राज्य में भ्रमण करने निकला हो, उसने पुराने जगत् के साथ कोई संपर्क न रखा; मुहल्ले के लोग

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भाग 6

3 अगस्त 2022
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इस तरह लगभग दो वर्ष बीत गए। इतने लंबे समय तक तारापद कभी किसी के पास बँधकर नहीं रहा। शायद पढ़ने-लिखने में उसका मन एक अपूर्व आकर्षण में बँध गया था; लगता है, वयोवृद्धि के साथ उसकी प्रकृति में भी परिवर्तन

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पोस्टमास्टर

3 अगस्त 2022
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काम शुरू करते ही पहले पहल पोस्टमास्टर को उलापुर गांव आना पड़ा। गांव बहुत साधारण था। गांव के पास ही एक नील-कोठी थी। इसीलिए कोठी के स्वामी ने बहुत कोशिश करके यह नया पोस्टऑफिस खुलवाया था। हमारे पोस्टमास

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एक छोटी पुरानी कहानी

3 अगस्त 2022
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कहानी सुनानी पड़ेगी ? पर और नहीं सुना सकता। अब इस थके असमर्थ व्यक्ति को छुट्टी देनी पड़ेगी। यह पद मुझे किसने दिया बताना मुश्किल है। धीरे-धीरे एक-एक करके तुम पाँच लोग आकर मेरे चारों तरफ कब इकट्टे हो ग

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संपादक

3 अगस्त 2022
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अपनी पत्नी के जीवनकाल में मुझे प्रभा की कोई चिन्ता नहीं थी। तब प्रभा की अपेक्षा उसकी माँ को लेकर ज्यादा व्यस्त रहता था। उन दिनों सिर्फ प्रभा का खेल, उसकी हँसी देखकर, उसकी टूटी-फूटी बातें सुनकर और प्य

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उद्धार

3 अगस्त 2022
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गौरी पुराने धनाढ्य घराने की बड़े लाड़-प्यार में पली सुन्दर लड़की है। उसके पति पारस की हालात पहले बहुत ही गिरी हुई थी, पर अब अपनी कमाई के बूते पर उसने कुछ उन्नति की है। जब तक वह गरीब था तब तक उसके सास-ससु

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अनाथ भाग 1

3 अगस्त 2022
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गांव की किसी एक अभागिनी के अत्याचारी पति के तिरस्कृत कर्मों की पूरी व्याख्या करने के बाद पड़ोसिन तारामती ने अपनी राय संक्षेप में प्रकट करते हुए कहा- "आग लगे ऐसे पति के मुंह में।" सुनकर जयगोपाल बाबू क

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भाग 2

3 अगस्त 2022
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शिशु का नाम हुआ नीलमणि। जब वह दो वर्ष का हुआ तब उसके पिता असाध्यम रोगी हो गये। बहुत ही शीघ्र चले आने के लिए जयगोपाल बाबू को लिखा गया। जयगोपाल बाबू जब मुश्किल से उस सूचना को पाकर ससुराल पहुँचे, तब श्वस

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भाग 3

3 अगस्त 2022
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नीलमणि की सारी देह में केवल सिर ही सबसे बड़ा था। देखने में ऐसा प्रतीत होता जैसे विधाता ने एक खोखले पतले बांस में फूंक मारकर ऊपर के हिस्से पर एक हंडिया बना दी है। डॉक्टर भी अक्सर भय प्रगट करते हुए कहा

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भाग 4

3 अगस्त 2022
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शरद ऋतु आई। मजिस्ट्रेट साहब गांवों में छानबीन करने दौरे पर निकले और शिकार करने के लिए, जंगल से सटे हुए एक गांव में तम्बू तन गये। गांव के मार्ग में साहब के साथ नीलमणि की भेंट हुई। उसके सभी साथी साहब को

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अपरिचिता भाग 1

3 अगस्त 2022
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आज मेरी आयु केवल सत्ताईस साल की है। यह जीवन न दीर्घता के हिसाब से बड़ा है, न गुण के हिसाब से। तो भी इसका एक विशेष मूल्य है। यह उस फूल के समान है जिसके वक्ष पर भ्रमर आ बैठा हो और उसी पदक्षेप के इतिहास

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भाग 2

3 अगस्त 2022
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कहना व्यर्थ है, विवाह के उपलक्ष्य में कन्या पक्ष को ही कलकत्ता आना पड़ा। कन्या के पिता शंभूनाथ बाबू हरीश पर कितना विश्वास करते थे, इसका प्रमाण यह था कि विवाह के तीन दिन पहले उन्होंने मुझे पहली बार देख

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भाग 3

3 अगस्त 2022
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घर के सब लोग क्रोध से आग-बबूला हो गए। कन्या के पिता को इतना घमंड कलियुग पूर्ण रूप से आ गया है! सब बोले, देखें, लड़की का विवाह कैसे करते हैं। किंतु, लड़की का विवाह नहीं होगा, यह भय जिसके मन में न हो उ

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भाग 4

3 अगस्त 2022
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लेकिन कहानी ऐसे खत्म नहीं हुई। जहां पहुंचकर वह अनंत हो गई है वहां का थोड़ा-सा विवरण बताकर अपना यह लेख समाप्त करूंगा। मां को लेकर तीर्थ करने जा रहा था। भार मेरे ही ऊपर था, क्योंकि मामा इस बार भी हावड़

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अन्तिम प्यार भाग 1

3 अगस्त 2022
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आर्ट स्कूल के प्रोफेसर मनमोहन बाबू घर पर बैठे मित्रों के साथ मनोरंजन कर रहे थे, ठीक उसी समय योगेश बाबू ने कमरे में प्रवेश किया। योगेश बाबू अच्छे चित्रकार थे, उन्होंने अभी थोड़े समय पूर्व ही स्कूल छोड

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भाग 2

3 अगस्त 2022
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नरेन्द्र सोचते-सोचते मकान की ओर चला-मार्ग में भीड़-भाड़ थी। कितनी ही गाड़ियां चली जा रही थीं; किन्तु इन बातों की ओर उसका ध्यान नहीं था। उसे क्या चिन्ता थी? सम्भवत: इसका भी उसे पता न था। वह थोड़े समय

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भाग 3

3 अगस्त 2022
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एक दिन नरेन्द्र को ध्यान आया कि इस बार की प्रदर्शनी में जैसे भी हो अपना एक चित्र भेजना चाहिए। कमरे की दीवार पर उसके हाथ के कितने ही चित्र लगे हुए थे। कहीं प्राकृतिक दृश्य, कहीं मनुष्य के शरीर की रूप-र

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भाग 4

3 अगस्त 2022
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एक सप्ताह बीत गया। इस सप्ताह में नरेन्द्र ने घर से बाहर कदम न निकाला। घर में बैठा सोचता रहता- किसी-न-किसी मन्त्र से तो साधना की देवी अपनी कला दिखाएगी ही। इससे पूर्व किसी चित्र के लिऐ उसे विचार-प्राप्

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भाग 4

3 अगस्त 2022
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एक सप्ताह बीत गया। इस सप्ताह में नरेन्द्र ने घर से बाहर कदम न निकाला। घर में बैठा सोचता रहता- किसी-न-किसी मन्त्र से तो साधना की देवी अपनी कला दिखाएगी ही। इससे पूर्व किसी चित्र के लिऐ उसे विचार-प्राप्

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भाग 5

3 अगस्त 2022
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रोगी की रात जैसे आंखों में निकल जाती है उसकी वह रात वैसे ही समाप्त हुई। नरेन्द्र को इसका तनिक भी पता न हुआ। उधर वह कई दिनों से चित्रशाला ही में सोया था। नरेन्द्र के मुख पर जागरण के चिन्ह थे। उसकी पत्न

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भाग 6

3 अगस्त 2022
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नरेन्द्र चित्रशाला में प्रविष्ट होकर एक कुर्सी पर बैठ गया। दोनों हाथों से मुंह ढांपकर वह सोचने लगा। उसकी दशा देखकर ऐसा लगता था कि वह किसी तीव्र आत्मिक पीड़ा से पीड़ित है। चारों ओर गहरे सूनेपन का राज्

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भाग 7

3 अगस्त 2022
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दिन बीतते गये, प्रदर्शनी आरम्भ हो गई। प्रदर्शनी में देखने की कितनी ही वस्तुएं थीं, परन्तु दर्शक एक ही चित्र पर झुके पड़ते थे। चित्र छोटा-सा था और अधूरा भी, नाम था 'अन्तिम प्यार।' चित्र में चित्रित क

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कवि और कविता

3 अगस्त 2022
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राजमहल के सामने भीड़ लगी हुई थी। एक नवयुवक संन्यासी बीन पर प्रेम-राग अलाप रहा था। उसका मधुर स्वर गूंज रहा था। उसके मुख पर दया और सहृदता के भाव प्रकट हो रहे थे। स्वर के उतार-चढ़ाव और बीन की झंकार दोनों

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कंचन

3 अगस्त 2022
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मैं धन्यवाद करने ही जा रहा था, कि कंचन बोल उठी- "दादू! हरेक को न्यौता देकर मुझे मुश्किल में डाल देते हो। भला इस जंगल में फिरंगी की दुकान कहां मिलेगी? ये विलायत के 'डिनर' खाने वाली जाती से सम्बन्धित इ

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खोया हुआ मोती भाग 1

3 अगस्त 2022
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मेरी नौका ने स्नान-घाट की टूटी-फूटी सीढ़ियों के समीप लंगर डाला। सूर्यास्त हो चुका था। नाविक नौका के तख्ते पर ही मगरिब (सूर्यास्त) की नमाज अदा करने लगा। प्रत्येक सजदे के पश्चात् उसकी काली छाया सिंदूरी

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भाग 2

3 अगस्त 2022
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"पत्नी अपने पति को प्राय: जानती है, उसकी नस-नस से परिचित होती है, पर पति अपनी पत्नी के चारित्रय का इतना गम्भीर अध्ययन नहीं कर सकता। यदि पति कुछ गम्भीर व्यक्ति हो तो पत्नी के चरित्र के कुछ भाग उसकी तीक

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भाग 3

3 अगस्त 2022
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"झुटपुटे के समय जबकि सावन की घटाएं आकाश पर डेरा जमाए हुए थीं वर्षा मूसलाधर हो रही थी, एक नौका ने रेतीली सीढ़ियों पर लंगर डाला। दूसरे दिन प्रात: घटाटोप अंधेरे में मनीमलिका आई और एक मोटी चादर में सिर से

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भाग 4

3 अगस्त 2022
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"कृष्ण-जन्माष्टमी की संध्या थी। वर्षा हो रही थी। फणीभूषण शयनकक्ष में अकेला था। गांव में एक व्यक्ति भी बाकी न था। जन्माष्टमी के मेले ने गांव-का-गांव सूना कर दिया था। मेले की चहल-पहल और महाभारत के नाटक

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भाग 5

3 अगस्त 2022
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"सहसा फणीभूषण के कान में किसी के पैरों की-सी आहट सुनाई दी। ऐसा मालूम होता था कि नदी-तट से वह उस घर की ओर वापस आ रही है। नदी की काली लहरें रात की अंधेरी में मालूम न होती थीं। आशा की प्रसन्नता ने उसे जी

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भाग 6

3 अगस्त 2022
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"दूसरी रात को फिर नाटक होने वाला था, नौकर ने आज्ञा चाही तो चेतावनी दे दी कि बाहर का द्वार खुला रहे। "यह कैसे हो सकता है। विभिन्न स्वभाव के व्यक्ति बाहर से मेले में आये हुए हैं, दुर्घटना का सन्देह है।

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भाग 7

3 अगस्त 2022
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"दूसरे दिन मेला छंटने लगा, दुकानें आरम्भ हो गईं; दर्शक अपने-अपने घरों को वापस जाने लगे। मेले की शोभा समाप्त हो गई। "फणीभूषण ने दिन में व्रत रखा और सब नौकरों को आज्ञा दे दी कि आज रात को कोई भी व्यक्ति

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जीवित और मृत

3 अगस्त 2022
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जमींदार शारदाशंकर के परिवार के साथ उनके रानीघाट स्थित बड़े से घर में रह रही विधवा कादम्बिनी का अब कोई निकट सम्बन्धी नहीं बचा था। एक एक करके सब मर गये थे। उसके पति के परिवार में भी कोई ऐसा नहीं था जिसको

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धन की भेंट भाग 1

3 अगस्त 2022
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वृन्दावन कुण्डू क्रोधावेश में अपने पिता के पास आकर कहने लगा- "मैं इसी समय आपसे विदा होना चाहता हूं।" उसके पिता जगन्नाथ कुण्डू ने घृणा प्रकट करते हुए कहा- "अभागे! कृतघ्न! मैंने जो रुपया तेरे पालन-पोषण

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भाग 2

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एक दिन मध्यान्ह-समय जब जगन्नाथ स्वभावानुसार गांव की गलियों में आम के छतनारे वृक्षों के नीचे अपना नारियल हाथ में लिये फिर रहा था। उसने देखा कि एक लड़का जो देखने में अपरिचित मालूम होता था, गांव के लड़को

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पाषाणी भाग 1

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अपूर्वकुमार बी.ए. पास करके ग्रीष्मावकाश में विश्व की महान नगरी कलकत्ता से अपने गांव को लौट रहा था। मार्ग में छोटी-सी नदी पड़ती है। वह बहुधा बरसात के अन्त में सूख जाया करती है; परन्तु अभी तो सावन मास

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भाग 2

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ईंटों के ढेर से बहती हुई हंसी की तरंग सुनते-सुनते वृक्षों की छाया के नीचे दलदल में सनी निम्न दुकुल सूटकेस लिये हुए श्रीयुत अपूर्वजी किसी तरह अपने घर पहुँचे? अकस्मात ही बेटे के पहुंच जाने से विधवा मां

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भाग 3

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अपूर्व उस दिन अनेक प्रकार के बहाने बना-बनाकर न तो घर के अन्दर गया और न मां से भेंट की। किसी के यहां भोज का निमंत्रण था; वहीं खा आया। अपूर्व जैसा पढ़ा-लिखा और भावुक नवयुवक एक मामूली पढ़ी-लिखी लड़की के

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भाग 4

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इस पर भी उसे ब्याह करना ही पड़ा। उसके बाद अध्ययन शुरू हुआ। अपूर्व की मां के घर जाकर एक ही रात में मृगमयी की अपनी सारी दुनिया ने बेड़ियां पहन लीं। सास ने वधू का सुधर करना आरम्भ कर दिया। बहुत ही कठोर

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भाग 5

3 अगस्त 2022
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उस रोज सारे दिन घर के बाहर बूंदा-बांदी और अन्दर अश्रु की वर्षा होती रही। अगले रोज अर्धरात्रि को अपूर्व ने मृगमयी को धीरे-से जाकर पूछा- मृगमयी, क्या तुम अपने पिताजी के पास जाना चाहती हो? मृगमयी ने चौ

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भाग 6

3 अगस्त 2022
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दोनों अपराधियों की युगल जोड़ी अब घर पहुंची तो मां गम्भीर बनी रही, किसी से कुछ बात नहीं की? मां की ओर से किसी के व्यवहार में कोई दोष ही प्रदर्शित नहीं किया गया कि जिसकी सफाई के लिए दोनों में से कोई कुछ

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भाग 7

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मां के घर पहुंचकर मृगमयी को पता लगा कि अब यहां उसका किसी प्रकार मन ही नहीं लगता है? उस घर में जाने कौन-सा परिवर्तन आ गया है कि समय काटे नहीं कटता। क्या करे, कहां जाये, किससे मिले, उसकी कुछ भी समझ में

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भाग 8

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मां ने देखा कि कॉलेज बन्द हो गया, फिर भी अपूर्व घर नहीं आया। सोचा, अब भी वह उनसे गुस्से है। मृगमयी ने भी समझ लिया कि अपूर्व उससे गुस्सा कर रहा है और तब वह अपने पत्र की याद करके, मारे लज्जा के गड़ जाने

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भिखारिन भाग 1

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अन्धी प्रतिदिन मन्दिर के दरवाजे पर जाकर खड़ी होती, दर्शन करने वाले बाहर निकलते तो वह अपना हाथ फैला देती और नम्रता से कहती- बाबूजी, अन्धी पर दया हो जाए। वह जानती थी कि मन्दिर में आने वाले सहृदय और श्र

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भाग 2

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काशी में सेठ बनारसीदास बहुत प्रसिध्द व्यक्ति हैं। बच्चा-बच्चा उनकी कोठी से परिचित है। बहुत बड़े देशभक्त और धर्मात्मा हैं। धर्म में उनकी बड़ी रुचि है। दिन के बारह बजे तक सेठ स्नान-ध्यान में संलग्न रहते

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भाग 3

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दो वर्ष बहुत सुख के साथ बीते। इसके पश्चात् एक दिन लड़के को ज्वर ने आ दबाया। अंधी ने दवा-दारू की, झाड़-फूंक से भी काम लिया, टोने-टोटके की परीक्षा की, परन्तु सम्पूर्ण प्रयत्न व्यर्थ सिध्द हुए। लड़के की

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विद्रोही भाग 1

3 अगस्त 2022
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लोग कहते हैं अंग्रेजी पढ़ना और भाड़ झोंकना बराबर है। अंग्रेजी पढ़ने वालों की मिट्टी खराब है। अच्छे-अच्छे एम.ए. और बी.ए. मारे-मारे फिरते हैं, कोई उन्हें पूछता तक नहीं। मैं इन बातों के विरुध्द हूं। अंग्रेज

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भाग 2

3 अगस्त 2022
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कलकत्ता जैसे बड़े नगर में यों तो प्रत्येक त्यौहार पर बड़ी रौनक होती है किन्तु दुर्गा-पूजा के अवसर पर असाधारण धूमधाम और चहल-पहल दिखाई देती है। दशहरा के दिन प्राय: सारे रास्तों पर जन-समूह होता है। बड़े-बूढ़

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भाग 3

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ललित के सहयोग से उमाशंकर में आश्चर्यजनक परिवर्तन हो गये। कहां तो वह बिना मोटर के घर से बाहर न निकलता था पर अब यह दशा थी कि ललित के साथ वायु-सेवन के लिए प्रतिदिन कोसों पैदल निकल जाता, सिनेमा देखने का च

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समाज का शिकार

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मैं जिस युग का वर्णन कर रहा हूं उसका न आदि है न अंत! वह एक बादशाह का बेटा था और उसका महलों में लालन-पालन हुआ था, किन्तु उसे किसी के शासन में रहना स्वीकार न था। इसलिए उसने राजमहलों को तिलांजलि देकर जं

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भाग 2

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भयानक तूफानी सागर के सम्मुख शाहजादे ने अपने थके हुए घोड़े को रोका; किन्तु पृथ्वी पर उतरना था कि सहसा दृश्य बदल गया और शाहजादे ने आश्चर्यचकित दृष्टि से देखा कि समाने एक बहुत बड़ा नगर बसा हुआ है। ट्राम

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भाग 3

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शाहजादा अपनी सजा काटकर कारावास से वापिस आ गया किन्तु उसका लम्बा-चौड़ा पर्यटन अभी समाप्त न हुआ था। वह संसार में अकेला था, कोई भी उसका संगी-साथी नहीं। संसार वाले उसे दंडी (सजायाफ्ता) कहकर उसकी छाया से भ

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पड़ोसिन

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मेरी पड़ोसिन बाल—विधवा है। मानो वह जाड़ों की ओस—भीगी पतझड़ी हरसिंगार हो। सुहागरात की फूलों की सेज के लिए नहीं, वह केवल देवपूजा के लिए समर्पित थी। मैं उसकी पूजा मन—ही—मन किया करता था। उसके प्रति मेरा म

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आधी रात में

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‘‘डॉक्टर! डॉक्टर!!’’ ‘‘परेशान कर डाला! इतनी रात गए–’’ आँखें खोलकर देखा, अपने दक्षिणाचरण बाबू थे। हड़बड़ाकर उठकर टूटी पीठ की चौकी घसीटकर उन्हें बैठने को दी और उद्विग्न भाव से मुँह की ओर देखा। घड़ी

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एक रात

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एक ही पाठशाला में सुरबाला के साथ पढ़ा हूं, और बउ-बउ खेला हूं। उसके घर जाने पर सुरबाला की मां मुझे बड़ा प्यार करतीं और हम दोनों को साथ बिठाकर कहतीं, ‘वाह, कितनी सुन्दर जोड़ी है।’ छोटा था, किन्तु बात क

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एक रात भाग 1

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एक ही पाठशाला में सुरबाला के साथ पढ़ा हूं, और बउ-बउ खेला हूं। उसके घर जाने पर सुरबाला की मां मुझे बड़ा प्यार करतीं और हम दोनों को साथ बिठाकर कहतीं, ‘वाह, कितनी सुन्दर जोड़ी है।’ छोटा था, किन्तु बात क

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भाग 2

3 अगस्त 2022
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हमारे जैसे प्रतिभाहीन लोग घर में बैठकर तो अनेक प्रकार की कल्पनाएं करते रहते हैं, पर अन्त में कर्म-क्षेत्र में उतरते ही कन्धे पर हल का बोझ ढोते हुए पीछे से पूंछ मरोड़ी जाने पर भी सिर झुकाए सहिष्णु भाव

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मुसलमानी की कहानी

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उन दिनों अराजकता के दूतों ने देश के शासन को काँटों से भर दिया था। अप्रत्याशित अत्याचारों से दिन-रात काँप रहे थे। दुःस्वप्नों के जाल ने जीवन के समस्त कार्यकलाप को जकड़ रखा था। गृहस्थ लोग सिर्फ देवताओं

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गिन्‍नी

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हमारे पंडित शिवनाथ छात्रवृत्ति कक्षा से दो-तीन क्लास नीचे के अध्यापक थे। उनके दाढ़ी-मूँछ नहीं थी, बाल छँटे हुए थे और चोटी छोटी-सी थी। उन्हें देखते ही बच्चों की अन्तरात्मा सूख जाती थी। प्राणियों में द

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फूल का मूल्य

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शीतकाल के दिन थे। शीतकाल की प्रचंडता के कारण पौधे पृष्पविहीन थे। वन-उपवन में उदासी छाई हुई थी। फूलों के अभाव में पौधे श्रीहीन दिखाई दे रहे थे। ऐसे उदास वातावरण में एक सरोवर के मध्य कमल का फूल खिला हु

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चोरी का धन भाग 1

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दांपत्य का अधिकार प्रतिदिन ही नए रूप में निर्धारित करना होता है। अधिकांश पुरुष यह बात भूले रहते हैं। उन्होंने शुरू से ही समाज का अनुमति-पत्र दिखाकर कस्टम-हाउस से माल छुड़ा लिया है, उसके बाद से वे बिलकु

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भाग 2

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टेलीफ़ोन में आवाज़ आई, “हैलो, क्या यह बारह सौ फलाना नंबर है।” मैंने कहा, “नहीं, यहाँ का नंबर सात सौ फलाना है।” दूसरे ही क्षण नीचे के कमरे में जाकर एक पुराना अख़बार उठाकर पढ़ना शुरू किया, अँधेरा हो आया,

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भाग 3

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वर्षा की धारा के बीच रास्ते की बत्ती का अस्पष्ट प्रकाश अँधेरे कमरे में पहुँचा। सोफ़े पर सुनेत्रा को अपनी बग़ल में बिठाया। बोला, “सुनी, तुम मुझे अपना सच्चा साथी मानती हो न?” “तुम्हारा यह कैसा प्रश्न है

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पत्नी का पत्र भाग 1

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श्रीचरणकमलेषु, आज हमारे विवाह को पंद्रह वर्ष हो गए, लेकिन अभी तक मैंने कभी तुमको चिट्ठी न लिखी। सदा तुम्हारे पास ही बनी रही - न जाने कितनी बातें कहती सुनती रही, पर चिट्ठी लिखने लायक दूरी कभी नहीं मिल

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भाग 2

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मेरी बेटी जनमते ही मर गई। जाते समय उसने साथ चलने के लिए मुझे भी पुकारा था। अगर वह बची रहती तो मेरे जीवन में जो-कुछ महान है, जो कुछ सत्य है, वह सब मुझे ला देती; तब मैं मझली बहू से एकदम माँ बन जाती। गृह

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भाग 3

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इधर मैं बिंदु-जैसी लड़की को जो इतना लाड़-प्यार करती थी यह बात तुम लोगों को बड़ी ज्यादती लगी। इसे लेकर बराबर खटपट होने लगी। जिस दिन मेरे कमरे से बाजूबंद चोरी हुआ उस दिन इस बात का आभास देते हुए तुम लोगो

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भाग 4

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उधर बिंदु की ससुराल से उसके जेठ ने आकर बाहर बड़ा हंगामा खड़ा कर दिया। कहने लगा, थाने में रिपोर्ट कर दूँगा। मैं नहीं जानती मुझमें क्या शक्ति थी -लेकिन जिस गाय ने अपने प्राणों के डर से कसाई के हाथों से

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भाग 5

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तुमने पूछा, बिंदु को लाकर फिर कहीं छिपा रखा है क्या? मैंने कहा, बिंदु अगर आती तो मैं जरूर ही छिपाकर रख लेती, लेकिन वह अब नहीं आएगी। तुम्हें डरने की कोई जरूरत नहीं है। शरद को मेरे पास देखकर तुम्हारा स

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