shabd-logo
Shabd Book - Shabd.in

गोरा

रवींद्रनाथ टैगौर

20 अध्याय
0 व्यक्ति ने लाइब्रेरी में जोड़ा
4 पाठक
3 अगस्त 2022 को पूर्ण की गई
निःशुल्क

जब कॉलेज की पढ़ाई समाप्त हो गई, तब से इसी छत पर महीने में एक बार, हिंदू-हितैषी-सभा के अधिवेशन होते आ रहे हैं, इन दोनों मित्रों में एक उसका सभापति है और दूसरा उसका मंत्री है। सभापति का नाम गौरमोहन है। मित्र लोग उसे गोरा कहकर बुलाते हैं। अपने इर्द-गिर्द के लोगों से वह बिल्कुल भी मेल नहीं खाता। इस उपन्यास, 'गोरा' में एक आकर्षक प्रेम कथा के माध्यम से नई-पुरानी विचारधाराओं के संघर्ष को रवीन्द्रनाथ टैगोर ने इस तरह प्रस्तुत किया है कि समीक्षकों को इसे भारतीय साहित्य का गौरव ग्रंथ कहना पड़ा। "गोरा" उपन्यास में एक और पात्र हैं पानू बाबू – जो ब्राह्म समाज की सांप्रदायिकता को अपने कपटपूर्ण कार्य-व्यवहार से ही नहीं, धूर्तता से भी संकीर्ण और अनुदार बनाते हैं। यही कारण है कि ब्राह्म होते हुए भी सुचरिता इनसे दूर चली जाती है। अपनी कुटिल चालों से इन्होंने गोरा, विनय और सुचरिता – सबको खिन्न कर दिया था। उसका व्यक्तित्व एवं चरित्र अपने ढंग का अनूठा है। वह एक गोरा-चिट्टा, ऊंचा-लम्बा, हट्टा-कट्टा एवं निधड़क युवक है। स्वाभिमान और अड़ियलपन उसमें मानों कूट-कूट कर भरे हुए हैं। वह बाहर से यद्यपि कट्टर हिन्दू प्रतीत होता है, परन्तु भीतर से वह जीव मात्र से प्यार एवं सहानुभूति रखने वाला युवक है। 

gora

0.0(0)

पुस्तक के भाग

1

गोरा भाग 1

2 अगस्त 2022
5
0
0

वर्षाराज श्रावण मास की सुबह है, बादल बरसकर छँट चुके थे, निखरी चटक धूप से कलकत्ता का आकाश चमक उठा है। सड़कों पर घोड़ा-गाड़ियाँ लगातार दौड़ रही हैं, फेरी वाले रुक-रुककर पुकार रहे हैं। जिन्हें दफ्तर, कॉल

2

भाग 2

2 अगस्त 2022
1
0
0

अंग्रेज़ी नावल विनय ने बहुत पढ़ रखे थे, किंतु उसका भद्र बंगाली परिवार का संस्कार कहाँ जाता? इस तरह उत्सुक मन लेकर किसी स्त्री को देखने की कोशिश करना उस स्त्री के लिए अपमानजनक है और अपने लिए निंदनीय, इ

3

भाग 3

2 अगस्त 2022
1
0
0

पोर्च की छत जो कि ऊपर की मंजिल का बरामदा था, उस पर सफेद कपड़े से ढँकी मेज़ के आस-पास कुर्सियाँ लगी हुई थीं। मुँडरे के बाहर कार्निस पर छोटे-छोटे गमलों में सदाचार और दूसरे किस्म के फूलों के पौधे लगे हुए

4

भाग 4

2 अगस्त 2022
1
0
0

परेशबाबू के घर से निकलकर विनय और गोरा सड़क पर आ गए तो विनय ने कहा, ''गोरा, ज़रा धीरे-धीरे चलो भई.... तुम्हारी टाँगे बहुत लंबी हैं,इन पर कुछ अंकुश नहीं रखोगे तो तुम्हारे साथ चलने में मेरा दम फूल जाएगा।

5

भाग 5

2 अगस्त 2022
0
0
0

रात को घर लौटकर गोरा अंधेरी छत पर व्यर्थ चक्कर काटने लगा। उसे अपने ऊपर क्रोध आया। रविवार उसने क्यों ऐसे बेकार बीत जाने दिया! एक व्यक्ति के स्नेह के लिए दुनिया के और सब काम बिगाड़ने तो गोरा इस दुनिया म

6

भाग 6

2 अगस्त 2022
1
0
0

गोरा ने दो-तीन घंटे की नींद के बाद जागकर देखा कि विनय पास ही सोया हुआ है, देखकर उसका हृदय आनंद से भर उठा। कोई प्रिय वस्तु सपने में खोकर, जागकर यह देखे कि वह वस्तु खोई नहीं है, तब मन को जैसा संतोष होता

7

भाग 7

2 अगस्त 2022
0
0
0

सुबह गोरा कुछ काम कर रहा था। अचानक विनय ने आकर छूटते ही कहा, ''उस दिन परेशबाबू की लड़कियों को मैं सर्कस दिखाने ले गया था।''  लिखते-लिखते गोरा ने कहा, ''मैंने सुना?''  गोरा, ''अविनाश से। उस दिन व

8

भाग 8

2 अगस्त 2022
0
0
0

गुलाब के फूलों का यहाँ थोड़ा-सा इतिहास बता दें।  गोरा तो रात को परेशबाबू के घर चला आया, पर मजिस्ट्रेट के घर अभिनय में भाग लेने की बात के लिए विनय को कष्ट भोगना पड़ा।  ललिता के मन में उस अभिनय के

9

भाग 9

2 अगस्त 2022
0
0
0

 गोरा जिस समय यात्रा पर निकला उसके साथ अविनाश, मोतीलाल, वसंत और रमापति, ये चार साथी थे। लेकिन गोरा के निर्दय उत्साह के साथ ये लोग लयबध्दता नहीं रख सके। बीमार हो जाने का बहाना करके अविनाश और वसंत तो चा

10

भाग 10

2 अगस्त 2022
0
0
0

ललिता को साथ लेकर विनय परेशबाबू के घर पहुँचा। विनय के मन का भाव ललिता के बारे में क्‍या है, यह स्टीमर पर सवार होने तक ठीक-ठीक नहीं जानता था। ललिता के साथ झगड़ा ही मानो उसके मन पर सवार रहता था। कैसे इ

11

भाग 11

2 अगस्त 2022
0
0
0

ललिता को साथ लेकर विनय परेशबाबू के घर पहुँचा। विनय के मन का भाव ललिता के बारे में क्‍या है, यह स्टीमर पर सवार होने तक ठीक-ठीक नहीं जानता था। ललिता के साथ झगड़ा ही मानो उसके मन पर सवार रहता था। कैसे इ

12

भाग 12

2 अगस्त 2022
0
0
0

वरदासुंदरी जब-तब अपनी ब्रह्म सहेलियों को निमंत्रण देने लगीं। बीच-बीच में उनकी सभा छत पर ही जुटती। हरिमोहिनी अपनी स्वाभाविक देहाती सरलता से स्त्रियों की आव-भगत करतीं, लेकिन यह भी उनसे छिपा न रहता कि वे

13

भाग 13

2 अगस्त 2022
0
0
0

हरिमोहिनी दूसरे दिन सबेरे भी भूमि पर बैठकर परेशबाबू को प्रणाम करने लगीं। हड़बड़ाकर हटते हुए बोले, ''यह आप क्या कर रही हैं?'' ऑंखों में ऑंसू भरते हुए हरिमोहिनी ने कहा, ''मैं आपका ऋण कई जन्मों में भी न

14

भाग 14

2 अगस्त 2022
0
0
0

परेशबाबू के पास जाकर ललिता बोली, ''हम लोग ब्रह्म हैं इसीलिए कोई हिंदू लड़की हम दोनों से पढ़ने नहीं आती- अत: मैं सोचती हूँ, हिंदू-समाज से किसी को भी शामिल करने से सुविधा रहेगी। क्या राय है, बाबा?'' पर

15

भाग 15

2 अगस्त 2022
0
0
0

परेशबाबू ने कहा, ''विनय, ललिता को एक मुसीबत से उबारने के लिए तुम कोई दुस्साहस पूर्ण काम कर बैठो, ऐसा मैं नहीं चाहता। समाज की आलोचना का अधिक मूल्य नहीं है, जिसे लेकर आज इतनी हलचल है, दो दिन बाद वह किसी

16

भाग 16

2 अगस्त 2022
0
0
0

विनय यह समझ गया था कि ललिता के साथ उसके विवाह की बातचीत करने के लिए ही सुचरिता ने उसे बुलाया है। उसने यह प्रस्ताव अपनी ओर से समाप्त कर दिया है, इतने से ही तो मामला समाप्त नहीं हो जाएगा। जब तक वह जिंदा

17

भाग 17

2 अगस्त 2022
0
0
0

आनंदमई से विनय ने कहा, ''देखो माँ, मैं तुम्हें सत्य कहता हूँ, जब-जब भी मैं मूर्ति को प्रणाम करता रहा हूँ मन-ही-मन मुझे न जाने कैसी शर्म आती रही है। उस शर्म को मैंने छिपाए रखा है- बल्कि उल्टे मूर्ति-पू

18

भाग 18

2 अगस्त 2022
0
0
0

हरिमोहिनी ने पूछा, ''राधारानी, तुमने कल रात को कुछ खाया क्यों नहीं?'' विस्मित होकर सुचरिता ने कहा, ''क्यों, खाया तो था।'' हरिमोहिनी ने रात से ज्यों का त्यों ढँका रखा खाना दिखाते हुए कहा, ''कहाँ खाया

19

भाग 19

2 अगस्त 2022
0
0
0

गोरा आजकल अलस्सुबह ही घर से निकल जाता है, विनय यह जानता था। इसीलिए सोमवार को सबेरे वह भोर होने से पहले ही गोरा के घर जा पहुँचा और सीधे ऊपर की मंजिल में उसके सोने के कमरे में चला गया। वहाँ गोरा को न पा

20

भाग 20

2 अगस्त 2022
0
0
0

अपने यहाँ बहुत दिन उत्पीड़न सहकर आनंदमई के पास बिताए हुए इन कुछ दिनों में जैसी सांत्‍वना सुचरिता को मिली वैसी उसने कभी नहीं पाई थी। आनंदमई ने ऐसे सरल भाव से उसे अपने इतना समीप खींच लिया कि सुचरिता यह

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए