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जिद्द

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बहुत देख ली आडंबरी दुनिया के झरोखों से बहुत उकेर लिए मुझे कहानी क़िस्सागोई में लद गए वो दिन, कैद थी परम्पराओं के पिंजरे में भटकती थी अपने आपको तलाशने में उलझती थी, अपने सवालों के जबाव ढूँढने में तमन्ना थी बंद मुट्ठी के सपनों को पूरा करने की उतावली,आतुर हकीकत की दुनिया जीने की दासता की जंजीरों को तो

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