shabd-logo

जिंदगी

27 जनवरी 2015

365 बार देखा गया 365
कतरा कतरा जिंदगी... कतरा कतरा आंसू कतरा कतरा मुस्कान .... कतरा कतरा सुख कतरा कतरा गम गुंथे हों जैसे कई धागे रंग बेरंग एक झीनी झीनी चादर सी .... आती हो हवा भी थोड़ी-थोड़ी थोड़ी-थोड़ी धुप झलमल झलमल.... मिलजुलकर घुलमिलकर स्वादों का मेल कुछ मीठे कडवे कसैले समय की आंच काठ की हांड़ी में तन के चूल्हे पर पककर धीरे-धीरे बना अनोखा व्यंजन कतरा कतरा मिलकर बन जाती जिंदगी.... कतरा कतरा जिंदगी.... "पवन"

पवन कुमार उपाध्याय की अन्य किताबें

शब्दनगरी संगठन

शब्दनगरी संगठन

आपका ये उत्तम लेख शब्दनगरी के ट्विटर एवं फेसबुक पेज पर प्रकाशित किया गया है . दिए गए लिंक्स पर जा कर आप अपना लेख देख सकते है .https://www.facebook.com/shabdanagari https://twitter.com/shabdanagari

27 फरवरी 2015

महेंद्र सिंह

महेंद्र सिंह

बहुत अच्छा

27 जनवरी 2015

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए