कभी स्कूल में जब पहली बार भूगोल की किताब पढ़कर ये बात पता चली कि पृथ्वी गोल है, तो कई दिन तक अपने आस-पास और चारों ओर घूम-घूम कर पता लगाने की कोशिश करती कि आखिर यह पृथ्वी कैसे गोल होगी, क्योँकि मुझे तो कहीं से भी यह गोल नज़र नहीं आती थी। माँ-बाप तो इतने पढ़े-लिखे नहीं थे कि जो मुझे समझा लेते। फिर भी जब कभी पिताजी से पूछती तो वे कहते कि किताब में लिखा है तो शायद ठीक ही होगा क्योँकि हम कहीं भी जाते हैं, लेकिन आखिर घूम-फिरकर अपने घर वापस यहीं आते ही हैं, इसलिए शायद पृथ्वी गोल है, सही होगा। पिताजी की दुनिया बाहर कमा-धमा कर लाने की थी, इसलिए उनका यह उत्तर अपनी जगह सही था। लेकिन माँ की दुनिया घर की चार-दीवारी के भीतर चूल्हा चौका तक सीमित थी, इसलिए जब उनसे पूछती तो वह रोटी बेलते-बेलते उसे दिखाकर कहती,'देख, पृथ्वी गोल है कि नहीं यह मैं नहीं जानती, लेकिन यह रोटी जरूर गोल बनती है, इसलिए शायद किताब में इसी को देखकर लिखा होगा कि पृथ्वी गोल है। अब आप सोच रहे होंगे कि ये गोल-गोल क्या चक्कर लगा रखा है। हाँ, तो बताती चलूँ कि आज का दैनिक लेखन का विषय ही ऐसा है जो गोल-गोल घुमाकर हमें उस घटना की याद कराने के लिए उकसा रहा है, जो मन को अच्छा नहीं लग रहा है। सभी जानते हैं कि जीवन में कोई अच्छी बात होती हैं तो उसे बार-बार याद करना हमारे मन को अच्छा लगता है, लेकिन जहाँ बात पछतावे वाली हो, भला उसे याद करना किसके मन को अच्छा लगेगा? फिर भी जीवन में घटित होने वाली ऐसी घटनाएं भी कभी-कभी हमें अच्छे-बुरे की पहचान कराने के लिए शायद जरूर होती है, क्योँकि इसी से हम जीवन का सबक सीखते हैं।
अब गोल-गोल बातें न आज के विषय जीवन में सबसे ज्यादा पछतावे वाली घटना पर आती हूँ। बात उन दिनों की है, जब हमें इंटरनेट का बड़ा चस्का लगा था और नाम कमाने का भूत सवार हो रहा था, तो हमने बड़े जोश-खरोश से ब्लॉगस्पॉट पर अपना ब्लॉग बना लिया, जहाँ हम अपने लिखने-पढ़ने का थोड़ा-बहुत शौक पूरा कर लिया करते थे। तब हम सीधे-साधे शब्दों में कवितायेँ लिखकर वहां पोस्ट करते थे, जिन्हें जब बहुत से ब्लॉगर पसंद कर टिपण्णी कर उत्साहवर्धन करते तो बड़ी ख़ुशी मिलती। इसी ख़ुशी के चक्कर में हमने जब कुछ ज्यादा ही जोश में आकर फेसबुक अकाउंट खोला और वहां अपनी इन कविताओं का लिंक दिया तो वहां और भी ज्यादा लोगों की टिपण्णियां देखकर मन बाग़-बाग़ हो उठता। इसी चक्कर में हमने वहां अपना मोबाइल नंबर भी अपनी प्रोफाइल में फीड कर दिया। लेकिन यह क्या, यह हमारी ऐसी भूल साबित हुई जो हमारे लिए सरदर्द का सबब बन गयी। मोबाइल नंबर फीड होते ही फेसबुक से जाने कहाँ-कहाँ और कैसे-कैसे लोगों के फ़ोन मोबाइल नंबर पर आकर इस तरह से घनघना उठे कि हमारा जीना हराम होने लगा। आखिर में इसी परेशानी से बचने के लिए मुझे वह नंबर ही बंद करना पड़ा। इसे मैं जीवन में सबसे ज्यादा पछतावे वाली घटना मानती हूँ और तब से मैं सोशल मीडिया में फ़ोन के चक्कर से बचकर चलने में ही अपनी भलाई समझती हूँ।