सदियों से चली आ रही लैंगिक असमानता एक परम्परा की तरह आज भी हमारे समाज में सहजता से देखने को मिल जाती है। आज भी सामान्य समाज में जब किसी बच्चे का जन्म होता है तो घर-परिवार वाले उसकी ख़ुशी में जो कार्यक्रम निर्धारित करते हैं, वह लड़का या लड़की को देखकर ही निर्धारित करते हैं, जहाँ नाते-रिश्तेदारों से लेकर जान-पहचान वाले भी बधाई व शुभकामनाएं भी इसी आधार पर देते नज़र आते हैं। लड़का और लड़की का यह भेद केवल एक घर-परिवार ही नहीं, अपितु जन समुदाय में एक बहुत बड़े स्तर तक दिखना आज भी गहन चिंता का विषय बना हुआ है। किसी भी सभ्य और सुसंकृत समाज में लड़का-लड़की में भेदभाव संकीर्ण मानसिकता की परिचायक है। आज भी शिक्षण संस्था यो या कोई सरकारी या गई सरकारी संस्थान या फिर कोई फिल्म, मीडिया इंडस्ट्रीज ही क्यों न हो, यह भेदभाव दिखना जैसे आम बात है। यद्यपि इस लैंगिक भेदभाव के कारण दोनों लिंगों पर प्रभाव पड़ता है, लेकिन यदि थोड़ी गहराई से देखेंगे तो यह प्रभाव लड़कियों पर सर्वाधिक पड़ता है।
आज भी हमारे बहुसंख्यक समाज में बचपन से ही लड़कों की तुलना में लड़कियों को कम आँका जाता हैं। उन्हें अपेक्षाकृत अधिक स्वतंत्रता नहीं मिलती हैं, जिसका असर उनकी शिक्षा के लेकर सामाजिक जीवन स्तर तक देखने को मिलता है। आज भले ही एक ओर जहाँ शिक्षित व उच्च तबके की कई लड़कियों का विश्व स्तर पर विभिन्न क्षेत्रों में प्रभावशाली पदों पर रहते हुए कुशल नेतृत्व देखने को मिलता है, वहीँ दूसरी ओर आज भी सामान्य समाज में विशेष रूप से गांवों और शहर की झोपड़-पट्टी में रहने वाली लड़कियों की दशा सोचनीय है, जहाँ वे शोषित और पीड़ित हैं। वे आज भी आर्थिक रूप से पुरुष की गुलाम समझी जाती हैं। उन्हें प्राचीन निरर्थक संस्कारों, आस्थाओं तथा व्यर्थ की परम्पराओं से भ्रमित किया जाता है। वे दहेज़ विरोधी क़ानून के होते हुए भी दहेज प्रताड़ना की शिकार होती हैं।
लैंगिक सशक्तिकरण की दिशा में आज केंद्र और राज्य सरकारें लड़कियों के लिए कई योजनाएं जैसे - बालिका समृद्धि योजना, सुकन्या समृद्धि योजना, बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ योजना, कस्तूरबा गाँधी बालिका विद्यालय योजना आदि चला रहे हैं, लेकिन इन योजनाओं का लाभ जब तक निम्न तबके तक नहीं पहुंचेगा तब तक यह असमानता दूर नहीं की सकेगी। इसके अलावा लड़कियों को शिक्षा के साथ ही कौशल विकास, खेलकूद में साझा मंच देकर उन्हें विकास की मुख्य धारा से जोड़ने के हर संभव प्रयास छोटे से लेकर बड़े स्तर तक एक साथ करने होंगे और साथ ही गरीबी जो सबसे बड़ी बाधक है, उससे पार करनी होगी।