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पारिवारिक जीवन

12 अक्टूबर 2022

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कहने को तो परिवार एक छोटा सा शब्द है, लेकिन यही वह जगह होती है, जिसके इर्द-गिर्द मनुष्य का सम्पूर्ण जीवन चक्र घूमता है। परिवार के बारे में जब हम  विचार करते हैं तो हमें ज्ञात होता है कि परिवार मर्यादा, परस्पर कर्त्तव्य, अनुशासन की एक ऐसी पारम्परिक इकाई है, जिसमें प्रत्येक सदस्य अपना-अपना सहयोग देता है और परस्पर लाभ का भागी बनता है। परिवार को एक व्यक्ति के अधीन संरक्षण में रहने वाले लोगों का समूह भी कह सकते हैं।  संक्षेप में परिवार को हम मनुष्य की दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए प्रकृति द्वारा स्थापित एक महत्वपूर्ण संस्था निरूपित कर सकते हैं।    

हमारी  भारतीय संस्कृति के अनुसार मनुष्य जन्म लेने के साथ ही तीन ऋण- देव, ऋषि और पितृ ऋण का ऋणी होता है। इन तीनो ऋणों में पितृ ऋण किसी भी परिवार की वह आधारशिला होती हैं, जहाँ माता-पिता सन्तानोत्पत्ति द्वारा वंश परंपरा को बनाये रखने तथा संसार की सृष्टि प्रक्रिया में महत्वपूर्ण योगदान देते है। इस संसार में आकर सुख भोगने का सामर्थ्य माता-पिता और हमारे पूर्वजों के पुण्य प्रताप से संभव हो पाता है। इसलिए इस ऋण से उऋण होना देव और ऋषि या गुरु ऋण जैसा नहीं है। पारिवारिक जीवन का मूल आधार नारी को माना गया है।  महाभारत के शांतिपर्व में "न गृहं गृहमित्याहुः, गृहिणी गृह मुच्यते"  अर्थात गृह-गृह नहीं है, अपितु गृहिणी गृह होता है।  इसके साथ ही मनुस्मृति में निर्देश भी दिए कि, "यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवताः" अर्थात पारिवारिक जीवन में जब तक नारी का सम्मान रहेगा, वहां देवता निवास करेंगे, जिससे सुख,शांति तथा समृद्धि की त्रिवेणी बहती रहेगी।

किसी भी समाज की आधार शिला परिवार ही होती है। किसी भी समाज में जितनी अधिक संख्या में परिवारों की सुदृढ़ पारिवारिक स्थिति देखने को मिलेगी, वह समाज उतना ही उन्नत, विकासशील और जिसमें बिखराव देखने को मिलेगा, वह उतना ही कमजोर होगा।  पारिवारिक एकजुटता का भाव ही स्वस्थ समाज की नींव बनती है। लेकिन आज दुर्भाग्य से पाश्चात्य सभ्यता के प्रभाव के कारण पारिवारिक सदस्यों ने निजी स्वार्थ को सर्वोपरि मानकर छोटी-छोटी बातों को लेकर लड़ाई-झगडे कर सयुंक्त परिवार में रहना छोड़ दिया है, जिसके कारण सयुंक्त परिवार टूटकर एकल परिवार बनकर रह गए हैं, जहाँ माता-पिता को दकियानूसी बताकर अलग करने का चलन जोरों पर है।  आज पारिवारिक जीवन एक पुरुष या स्त्री के परिवार तक सीमित होकर रह गया है। वे अपने बच्चों में अपना संसार देखने लगे हैं। । आज जिसे देखो वही पैसा बनाने की जुगत में दिन-रात खटता नज़र आता है, यह पैसे की भूख भी एकल परिवार के लिए बहुत हद तक जिम्मेदार है।    

संक्षेप में यदि आज के परिदृश्य में परिवार की बाते करें तो इस विषय में डॉ. गोपाल जी मिश्र ने बड़े ही सटीक शब्दों में अपने विचार व्यक्त किये हैं, जहाँ वे लिखते हैं कि, "समाज में ज्यों-ज्यों औद्योगीकरण एवं नगरीकरण बढ़ता जा रहा है, त्यों-त्यों पारिवारिक समबध भी प्रभावित होते जा रहे हैं।  समाज में कुछ ऐसे तथ्य जैसे कि बेरोजगारी, सुविधाओं की न्यूनता, विभिन्न संस्कृतियोँ का प्रभाव आदि पारिवारिक मूल्यों को प्रभावित करते जा रहे हैं। तेजी से बदलते हुए मूल्य पारिवारिक संगठन एवं वातावरण को प्रभावित करते जा रहे हैं।  इस प्रभाव का परिणाम पारिवारिक संबंधों में ह्रास के रूप में दृष्टिगोचर हो रहा है।  संबंधों में स्थिरता घट रही है. परिवर्तनशीलता बढ़ रही हैं।"  

12 अक्टूबर 2022

Dharmendra Kumar manjhi

Dharmendra Kumar manjhi

परिवार के बारे में बहुत अच्छी जानकारी। आज समाज में युवा वर्ग अपनी बढ़ती आवश्यकताओं और आकांक्षाओं के कारण सयुंक्त परिवार को छोड़ एकल परिवार की धारणा अपना रहा है जो हमारी भारतीय संस्कृति नहीं है यह तो पाश्चत्य सभ्यता के परिणाम है। इसी के कारण आज युवा वर्ग तरह-तरह की परेशानियों से अपना जीवन जीने को मजबूर है ......

12 अक्टूबर 2022

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रचनाएँ
विविध विषय लेखन (दैनन्दिनी, अक्टूबर 2022)
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इस पुस्तक में शब्द.इन द्वारा दिए गए विविध विषयोँ में किया गया लेखन संगृहीत है।
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कला चिकित्सा और इसके लाभ

3 अक्टूबर 2022
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मानव शरीर को यदि मैं अनेक रोगों का पिटारा कहूं तो यह अतिश्योक्ति नहीं होगी। क्योंकि मानव शरीर जीवन भर स्वस्थ नहीं रह पाता, उसे समय-समय पर कई शारीरिक रोग घेर ही लेते हैं।  इसके अलावा वह अपनी जीवन की आप

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दैनिक जीवन की सामान्य गलतियाँ

4 अक्टूबर 2022
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यूँ ही इंसान को गलतियों का पुतला नहीं कहा गया है। जीवन संघर्ष के दौरान व्यक्ति जब कोई कार्य करता है तो उसमें गलती न हो, ऐसा संभव नहीं है। अज्ञानता बस जाने-अनजाने  में वह कई गलतियां करता रहता है। लेकिन

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कर्म और भाग्य

6 अक्टूबर 2022
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जीवन गति बड़ी निराली है, इसे मापने का कोई निश्चित पैमाना नहीं है। संसार में कर्म और भाग्य के बारे में कोई एक धारणा नहीं है। भाग्य और कर्म दोनों के लिए अलग-अलग धारणाएँ पुरातन काल से ही प्रचलित हैं, जिसम

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जीवन में सबसे ज्यादा पछतावे वाली घटना

7 अक्टूबर 2022
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कभी स्कूल में जब पहली बार भूगोल की किताब पढ़कर ये बात पता चली कि पृथ्वी गोल है, तो कई दिन तक अपने आस-पास और चारों ओर घूम-घूम कर पता लगाने की कोशिश करती कि आखिर यह पृथ्वी कैसे गोल होगी, क्योँकि मुझे तो

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आधुनिक जीवन शैली

9 अक्टूबर 2022
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आज के दैनिक लेखन 'आधुनिक जीवन शैली' के विषय पर अपने विचार व्यक्त करने से पहले हमें हमारी भारतीय पुरातन जीवन शैली के बारे में कुछ बातें समझनी आवश्यक होंगी। तुलसीदास जी 'रामचरित मानस' के एक प्रसंग में क

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लैंगिक सशक्तिकरण

11 अक्टूबर 2022
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सदियों से चली आ रही लैंगिक असमानता एक परम्परा की तरह आज भी हमारे समाज में सहजता से देखने को मिल जाती है।  आज भी सामान्य समाज में जब किसी बच्चे का जन्म होता है तो घर-परिवार वाले उसकी ख़ुशी में जो कार्यक

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पारिवारिक जीवन

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करवाचौथ का व्रत

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डिजिटल निरक्षरता

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आज का युग डिजिटल का युग है। जिस तरह से आज घर से लेकर दफ्तर तक सब कार्योँ का डिजिटलीकरण का प्रसार हुआ है, उस तरह से डिजिटल साक्षरता का अभाव होने से आम नागरिकों को कई तरह की धोखाधड़ियोँ का शिकार होना पड़

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मेरा पहला कार्य दिवस

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मध्यप्रदेश के शिक्षा विभाग के अधीन हाई स्कूल स्तर तक की शिक्षा व्यवस्था संचालित करने वाले विभाग राज्य शिक्षा केंद्र में ७ फरवरी १९९५ को मेरा पहला कार्य दिवस था। मुझे पहले दिन कार्यालय में मेरे बड़े भैय

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सकारात्मक और नकारात्मक सोच

20 अक्टूबर 2022
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किसी भी व्यक्ति की जीवन में घटित होने वाले घटनाक्रम या कार्य विशेष के प्रति उसकी सोच और विचार करने का दृटिकोण हमें उसके सकारात्मक या नकारात्मक होने का परिचय कराते हैं। हमारा सोच-विचार यदि सकारात्मक हो

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हम और हमारे त्यौहार

21 अक्टूबर 2022
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हमारी भारतीय संस्कृति उत्सवधर्मी है, जहाँ वर्ष भर तन-मन की थकान दूर करने के उद्देश्य से हमारे धार्मिक ग्रंथों में तीज-त्योहारों का उल्लेख कर उन्हें समय-समय पर मनाये जाने का वर्णन किया गया है। इन त्योह

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दूरस्थ शिक्षा

22 अक्टूबर 2022
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दूरस्थ शिक्षा से आशय शिक्षा ग्रहण करने की ऐसी प्रणाली से है जिसमें शिक्षक और विद्यार्थी को स्थान.विशेष अथवा समय.विशेष पर उपलब्ध होने की आवश्यकता नहीं होती है। यह प्रणाली परम्परागत शिक्षण  प्रणाली से भ

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आरोग्य का पर्व है दीपावली

24 अक्टूबर 2022
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दीपावली जन-मन की प्रसन्नता, हर्षोल्लास एवं श्री-सम्पन्नता की कामना के महापर्व के रूप में मनाया जाता है। कार्तिक की अमावस्या की काली रात्रि को जब घर-घर दीपकों की पंक्ति जल उठती है तो वह पूर्णिमा से

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सोशल मीडिया और समाज का धुर्वीकरण

27 अक्टूबर 2022
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सूचना क्रांति के आधुनिक युग में सोशल मीडिया के सन्दर्भ में कई सवाल उठते हैं। आज सोशल मीडिया ने आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक क्षेत्र ही नहीं बल्कि हमारे घर-घर तक अपनी पैठ बना ली है। इंटरनेट

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