आज का युग डिजिटल का युग है। जिस तरह से आज घर से लेकर दफ्तर तक सब कार्योँ का डिजिटलीकरण का प्रसार हुआ है, उस तरह से डिजिटल साक्षरता का अभाव होने से आम नागरिकों को कई तरह की धोखाधड़ियोँ का शिकार होना पड़ रहा है। यही कारण है कि आज डिजिटल निरक्षरता के कई मामले आज बहुत बड़े पैमाने पर देखने को मिल रहे हैं। ऐसी ही घटना इसी वर्ष माह फरवरी को मुझे देखने को मिली जब एक एक सुबह-सवेरे जब मैं घर से बाहर निकलकर आँगन में टहल रही थी, तो एक लड़का और एक अधेड़ उम्र का आदमी मोटर सायकिल से उतरकर मुझे हमारे बिल्डिंग में रहने वाले यादव जी के घर का पता पूछने लगे। वे बहुत हैरान-परेशान दिख रहे थे। मैंने इशारा करते हुए कहा कि वे तीसरी मंजिल में रहते हैं तो बुझे कंठ से धन्यवाद कहते हुए सीढ़ियाँ चढ़ने लगे। उनके मुरझाये चेहरों को देखकर मुझे समझते देर नहीं लगी कि जरूर कोई गंभीर मामला है। लेकिन मेरे पास इतना समय नहीं था कि मैं उनके घर जाकर पता करूँ और यह उचित भी कहाँ लगता है कि हम किसी ऐसे व्यक्ति के पीछे-पीछे जो हमें और जिसे हम नहीं जानते हों, उसके बारे में जानने के लिए उसके पीछे-पीछे हो लें। खैर मैंने विचार किया कि जो भी बात होगी वह तो बाद में पता चल ही जाएगी और मैं किचन में घुसकर अपने काम में जुट गई। क्योंकि मैं अच्छे से जानती हूँ कि एक ही मोहल्ले में रहने वालों के बीच की बातें बहुत समय तक दबी नहीं पाती है।
उसके बाद लगभग एक घंटा बीता होगा कि दरवाजे की घंटी बजी तो मैंने मेरे बेटे से पूछा कि कौन है तो उसने बताया गौरव आया है और वह मीठी नीम की पत्ती मांग रहा है। मैंने कहा उसे मेरे पास भेज और तू बगीचे में जाकर उसके लिए मीठी नीम की पत्त्तियाँ तोड़ के ले आ। मेरी बात सुनकर बेटे ने उसे मेरे पास भेजा और वह बग़ीचे में चला गया। चूँकि गौरव यादव जी का बेटा था इसलिए मैंने उससे उनके घर आये उन हैरान-परेशान दिखते लोगों के बारे में जानना चाहा तो उसने फिर उनकी जो कहानी सुनाई तो मुझे उन पर बड़ी दया आई। उसने मुझे बताया कि वे दोनों बाप-बेटे हैं। कल रात लड़के के पापा को किसी ने फ़ोन लगाया कि वह गौरव के पापा बोल रहे हैं। वे बहुत मुसीबत में हैं उनके बेटे का एक्सीडेंट हो गया है और वह बहुत नाजुक हालत में हॉस्पिटल में भर्ती है। हॉस्पिटल वाले उसे मुंबई ले जाने के लिए कह रहे हैं, इसके लिए हमें अभी पैसों की सख्त जरुरत है। हमने अपने एटीएम से पैसे निकालने चाहे लेकिन एटीएम में हमारे सारे पैसे फंस गए हैं और हमारे खाते से पैसे नहीं बचे हैं। अब कल जब सुबह बैंक खुलेगा तभी वह क्लियर होगा और तब तक मेरी तो दुनिया उजड़ जायेगी। उसने आगे कहा कि चूंकि वह आदमी जो घर आया है उसकी स्कूल वैन है और वह मुझे बहुत पहले स्कूल छोड़ने आता-जाता था और पापा ने उसकी कई बार मदद की थी, इसलिए पापा को मुसीबत में समझकर उन्हें अपना एटीएम चलाना नहीं आता है उनका बेटा जो अभी घर पर नहीं है, वही यह काम करता है अपना खाता नंबर और पिन बता दिया और फिर जब थोड़ी देर बाद उनके मोबाइल पर ओटीपी आया और उन्होंने उन्हें बताया तो तुरंत उनके खाते से पैंतीस हज़ार रुपए कटने का मैसेज आ गया। उसके थोड़ी देर बाद उन्होंने सोचा मोबाइल पर बता दूँ कि पैसे मिल गए हैं कि नहीं तो जब वह फ़ोन मिलाया तो वह स्विच ऑफ बता रहा था। रात काफी है और उनका घर दूर है इसलिए उन्होंने सोचा सुबह जाकर देख लेंगे इसलिए वे यहाँ नहीं आये और फिर उनका लड़का भी तो घर पर नहीं था, जिसके साथ वे यहाँ पता करने आते। अभी जब उनका बेटा आया तो वे उसे लेकर मेरे पापा को इस बारे में पूछने आये थे कि क्या उन्होंने ने ही रात को उस मोबाइल नंबर से फ़ोन किया था जो अभी नहीं लग रहा। है। जब पापा ने उन्हें बताया कि न तो उन्होंने फ़ोन लगाया और नहीं वह मोबाइल नंबर उनका है तो वे समझ गए कि किसी ने उन्हें बड़ी चालाकी से ठगकर उनके बैंक खाते से पैंतीस हज़ार रुपये निकाल लिए हैं।
आजकल ऐसी ठगी के किस्से बहुत सुनने और देखने को मिलते हैं। समाचार पत्रों और टीवी पर कई बार ऐसी घटनाओं के बारे में लोगों को सचेत किया जाता है और बैंकों द्वारा भी इस बारे में जागरूकता अभियान चलाये जाते हैं लेकिन डिजिटल निरक्षरता के कारण बहुत लोग भावनाओं में बहकर बिना कुछ सोचे-समझे साइबर ठगी के शिकार बन जाते हैं। ये साइबर ठग पहले ज़माने वाले ठगों से कई कदम आगे होते हैं। पहले के ठगों को कई महीनों के संघर्ष के बाद लोगों को ठगने में सफलता मिलती थी, लेकिन आज के ठग पहले जैसे थोड़े हैं जो महीनों तक इंतज़ार करें वे तमाम जागरूकता के बाद भी कम पढ़े-लिखें ही नहीं, बल्कि अच्छे खासे बड़ी-बड़ी डिग्री वालों को भी अपने जाल में ऐसे फांसते हैं कि वे जब तक कुछ समझे तब तक उनका खाता साफ़।
आप लोगों ने भी ऐसे कई घटनाएं सुनी और देखी होंगी, जो किसी के लिए भी एक किस्सा भर बनकर रह गया होगा। लेकिन जब कोई इस तरह अपनी मेहनत की कमाई पर डाका डाले देखता है तो उसके दिल पर क्या गुजरती होगी, इसका दर्द हर कोई नहीं समझ सकता। मैं सोचती हूँ कि आज भले ही इन ठगों से निबटने के लिए पुलिस ने छोटे-बड़े हर शहर में साइबर सेल बनाये हैं, लेकिन इनसे निपटने का जो तंत्र हैं उसमें कुछ न कुछ खामियां हैं, तभी तो वे उन खामियों का पता लगाकर अपना खेल कर जाते हैं। शासन-प्रशासन को इस दिशा में हर दिन सैकड़ों-हज़ारों की संख्या में ठगी के शिकार होने वालों को बचाने के लिए एक ऐसी सुदृढ़ डिजिटल व्यवस्था करनी चाहिए जो साइबर ठगों से कई कदम आगे हो।