हमारी भारतीय संस्कृति में विभिन्न धर्म, जाति, रीति, पद्धति, बोली, पहनावा, रहन-सहन के लोगों द्वारा अपने-अपने उत्सव, पर्व, त्यौहार वर्ष भर बड़े धूमधाम से मनाये जाने की सुदीर्घ परम्परा है। ये उत्सव, त्यौहार, पर्वादि हमारी भारतीय संस्कृति की अनेकता में एकता की अनूठी पहचान कराते हैं, जो सर्वसाधारण को जिन्दगी की भागदौड़, दुःख-दर्द, भूख-प्यास भुलाकर उल्लास, उमंग-तरंग में डुबोकर तरोताजा होने का अवसर प्रदान करते हैं। इन्हीं पर्व, उत्सव, तीज-त्यौहार या फिर मेले आदि की परम्परा के कारण हमारी भारतीय संस्कृति पर "आठ वार और नौ त्यौहार" वाली उक्ति चरितार्थ होती है।
कोई भी पर्व, त्यौहार हो या फिर मेला आदि सभी में विशेष पकवानों का प्रचलन रहता हैं, जिनके बिना ये सभी अधूरे समझे जाते हैं। इन सभी बड़े हो या छोटे व्रत, त्यौहार सभी में पूजन से लेकर विविध पकवान बनाने तक का सारा जिम्मा महिलाओं का होता है। इन सभी जिम्मेदारियों के बावजूद महिलाओं के अपने भी कुछ अलग अपने व्रत, त्यौहार हैं, जिनमें प्रमुखत: उनके द्वारा बच्चे की दीर्धायु, संतान सुख और उसके अच्छे भविष्य के लिए रखा जाने व्रत अहोई अष्टमी या संतान सप्तमी और कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को पति के लम्बी आयु के लिए करवाचौथ व्रत करने की प्रथा है। करवाचौथ कहने को तो एक व्रत है लेकिन यह वास्तव में पति-पत्नी के पवित्र रिश्तों का आधार स्तम्भ है, जो नारी शक्ति और उसकी क्षमताओं का श्रेष्ठ उदाहरण है। इस व्रत में सुहागिन स्त्रियाँ अपने पति की दीर्ध आयु, उत्तम स्वास्थ्य व सौभाग्य की कामना कर बालू अथवा सफ़ेद मिट्टी की वेदी पर शिव-पार्वती, कार्तिकेय, गणेश एवं चन्द्रमा की स्थापना करते हैं। इन मूर्तियोँ के अभाव में सुपारी पर नाल बांधकर भगवान का सुमिरन कर स्थापित कर देवों को पूजा जाता है। तत्पश्चात करवों में लड्डू का नैवेद्य रखकर पूजन करने के साथ ही एक लोटा, एक वस्त्र और एक विशेष करवा दक्षिणा के रूप में अर्पित कर पूजन समापन किया जाता है। दिन में करवाचौथ की कथा पढ़ी और सुनी जाती है। इस व्रत को सबसे बड़ा सौभाग्यदायक माना जाता हैं इसलिए सुहागिन स्त्रियां अपने सुहाग की रक्षार्थ इस व्रत का कढ़ाई से पालन करती हैं। शास्त्रों के अनुसार पति की दीर्घायु और अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए इस दिन भालचंद्र गणेश जी की पूजा-अर्चना की जाती है। दिन भर उपवास रखकर रात में चन्द्रमा को अर्ध्य देने के उपरांत ही उपवास खोलने का विधान है। यह बहुत अच्छी बात है कि आज के समय में भी अधिकांश स्त्रियां करवाचौथ को परम्परागत ढंग से पूरी विधि-विधान से मनाती हैं।