चांदनी रात में तारों को कौन पूछेगा?
थक गई निगाहें तो नजारों को कौन पूछेगा?
चांदनी रात में तारों को कौन पूछेगा?
नाम है शाहजहां- मुमताज का,
ताजमहल के अंदर
हाथ काटे गए मासूमों के,
जेल के अंदर
उन मासूम कारीगरों को कौन पूछेगा?
चांदनी रात में तारों को कौन पूछेगा?
उठती हैं लहरें, सागर के ऊपर,
जब आता है ज्वार- भाटा।
गिरती हैं लहरें सागर के ऊपर,
जब जाता है ज्वार- भाटा।
थम गईं लहरें तो, किनारों को कौन पूछेगा?
चांदनी रात में तारों को कौन पूछेगा?
हंसती है ये ख़ुदग़र्ज़ दुनिया,बदनसीब गरीबों पर।
मिलती नहीं जिनको, दो जून की रोटी भर।
इन गमगीन नीरस रातों में,
ग़म के मारों को कौन पूछेगा?
चांदनी रात में तारों को कौन पूछेगा?