एक जंगल में एक बुढ़ा व्यक्ति रहता था। वह जगंल में पेड़ों की लकडियों को काट कर उन्हें जलाता और उनका कोयला बना कर बाजार में बेचकर अपना जीवन निर्वाह करता था। एक बार एक राजा जंगल में रास्ता भटक गया तो उस बुढ़े व्यक्ति ने राजा की सही मार्ग बताने में मदद की। राजा ने बुढ़े व्यक्ति द्वारा किये उपकार से प्रसन्न होकर व उसकी द्ररिदता को देखकर अपना चंदन के पेड़ों वाला एक बाग उपहार में दे दिया। जिससे वह बुढ़ा व्यक्ति चंदन की लकडियों को बाजार में बेचकर ओर अधिक धन कमा सकें। बुढ़ा व्यक्ति राजा द्वारा दिये उपहार को पाकर बहुत प्रसन्न हुआ और राजा को धन्यवाद दिया। राजा वहां से विदा लेकर अपने राजमहल की ओर रवाना हो गया। कुछ समय पश्चात राजा अपने सैनिको के साथ जंगल में शिकार करने जा रहा था तो राजा ने सोचा क्यों ना उस बुढ़े व्यक्ति से भी मुलाकात की जाए अब तो वह बहुत धनी व्यक्ति हो गया होगा। ये सोचकर राजा अपने सैनिको के साथ उस बुढ़े व्यक्ति की ओर हो लिया। जब राजा ने उस बुढ़े व्यक्ति को देखा तो हैरान परेशान हो गया, क्योंकि अभी भी वह बुढ़ा व्यक्ति उसी हालत में था जैसा राजा कुछ समय पहले उसे छोड़ गया था।
राजा ने उस बुढ़े व्यक्ति से पूछा कि क्या आप इन चंदन की लकडियों को बाजार में नहीं बेचकर आते हो? तो वह बुढ़ा व्यक्ति बोला की मैं तो अभी भी इन लकडियों को जलाकर इनका कोयला बनाकर बाजार में बेचकर आता हूँ। फिर राजा ने पूछा कि कुछ लकडियाँ बाकी बची हैं तो बुढ़े व्यक्ति ने जवाब दिया कि हाँ राजन् दो लकडियों के टुकड़े अभी शेष हैं। राजा ने कहा कि आप इन दो टुकड़ों को बाजार ले जाए एवं इसे बेच आए। जब वह बुढ़ा व्यक्ति बाजार में उन दो लकड़ी के टुकड़ों गया तो वहां चंदन के बहुत बडे़-बडे़ व्यापारी बैठे हुए थे और जब चंदन की लकड़ी की सुगंध उनकी नाक में पड़ी तो एक व्यापारी ने उसे बुला कर उन टुकड़ों के बहुत अच्छे दाम दियें। जब वह बुढ़ा व्यक्ति वापिस जंगल में राजा के पास पहुँचा तो अपनी नासमझी का बहुत पश्चाताप हुआ और राजा से एक ओर बाग देने की गुज़ारिश की, मगर राजा ने साफ मना कर दिया और कहा कि जीवन में उचित उपहार का एक ही बार मौका दिया जाता हैं, फिर चाहे आप उसकी कद्र करों या न करों।
यहीं हाल हम सभी जीवों का भी हैं, हमें भी मालिक ने यह चंदन रुपी कीमती मानुष चोला बक़्शा हैं। मगर हम जीव भी इसकी कद्र न करके इस शरीर से अनगिनत बुरे व खोटे कर्म करते रहते हैं। जबकि मालिक ने यह चोला हमें नाम सिमरन जपने व परमात्मा से मिलाप के लिए बक़्शा हैं, और हम मूर्ख जीव इस अनमोल चोले की कद्र नहीं करते हैं। अत: जब कोई पूरन गुरु हमें आकर चेताते हैं और इस कीमती चोले का फायदा बताते हैं तो हम फिर भी हर बार यहीं कहकर टाल देते हैं कि अभी तो बहुत समय बाकी हैं भजन बंदगी के लिए, मगर हमें यह ज्ञात नहीं हैं कि हमारा कौनसा समय अाखिरी हैं। हमें सतगुरु ने कितनी सांसे बक्शी हैं हम इसका अंदाजा नहीं लगा सकते हैं, और जब हमारा अंत समय आता हैं तो हम सतगुरु के आगे रोना पीटना शुरु कर देते हैं, अपने जीवन भर के किये बुरे कर्मों का पश्चाताप करते हैं एवं मालिक से एक ओर बार इस मानुष चोले को प्राप्त करने की गुहार करते हैं।
तो आईये हम सब भी आज की इस साखी से प्रेरणा लेकर परमात्मा द्वारा बक़्शे गये इस अमोलक मनुष्य चोले का फायदा सतगुरु द्वारा दिये गये भजन सिमरन करके उठाये एवं सतगुरु में ही समा जाए..!