*बाधाओं का स्वागत कीजिए*
कार्य करते समय यदि यह विचार उत्पन्न हो कि उसका फल उतना उत्तम नहीं होगा, जितना कि पहले सोचा था और इसी भय से उसे मार्ग में छोड़ दिया जाए, तो वह भी कोई बुद्धिमानी की बात नहीं होगी । किसी भी कार्य का फल उत्तम, मध्यम या निम्न हो सकता है, परन्तु उसकी चिंता नहीं करनी चाहिए । घोर परिश्रम के कारण कार्य का फल उत्तम भी हो सकता है और परिश्रम न करने की अवस्था में निम्नतर भी
हमें कार्य करना चाहिए, उसके फल की कामना नहीं करनी चाहिए । ईश्वर ने हमें कर्म करने का ही अधिकार दिया है, फल तो स्वयं उसी के हाथ में है । यदि मनुष्य की इच्छानुसार ही फल मिलने लगता तो "दुःख," "संताप," "पश्चाताप" और "असफलता" जैसे शब्द ही संसार में सुनाई नहीं पड़ते । तब न किसी को धन की चिंता रहती और न मान सम्मान की । सभी कुछ मानवी इच्छा के बल पर प्राप्त हो जाता ।
मनुष्य वह है जो बाधा रूपी चट्टानों को तोड़ कर गिरा देता है । संकटों से डरकर हट जाने से कभी कोई काम नहीं बनता । जिस कार्य के पूर्ण होने में बाधाएँ नहीं आती, वह कार्य भी क्या कुछ उल्लेखनीय हो सकता है ? कार्य तो वह है, जिसमें बाधाएँ आएँ और *कर्मवीर वह है, जो ऐसे ही कामों को करें, जिनमें बाधाएँ आ-आकर उसे सफलता के द्वार की ओर दृढ़ता से धकेल दे ।*
*इसलिए बाधाओं का स्वागत करिए, वे आपको सफलता का रहस्य समझाएँगी ।*