बहुत कीमती है ये आंसू इन्हें यू न जाया कीजिए.......
ये वो मोती है जो अपने प्यारे की याद में बिखेरे जाते हैं........
रोना और आंसू बहाना जो जीव तभी सीख लेता है जब मां के गर्भ से बाहर आता है। शास्त्रों में कहा भी गया है पैदा होते ही जीव इसलिए रोता है कि गर्भ में वो उलटा लटका था गंदगी में था तब भी ईश्वर की याद बनी हुई थी लेकिन इस संसार मे आकर वो चिंतन छूट गया। ईश्वर की स्मृति छूट जाने के कारण जीव का पहला रूदन शुरू हो जाता है और संसार रूपी माया के जंजाल में फसकर जीव का पूरा जीवन रोने में ही चला जाता है।
पहला रूदन ईश्वर से विछोह का था....... ।
फिर वो रोता है भूख से..... थोडा बड़ा होता है बोल नहीं सकता पता ही नही चलता क्यों रोए जा रहा है....... कभी रोता है इस संसार की मां के लिए...... कभी खिलौनों के लिए रोता है.......
कभी स्कूल ना जाने के लिये रोता है........ फिर जीव थोडा बड़ा होता है अपनी पढ़ाई, नौकरी, मकान, गाड़ी और शादी के लिए रोता है....... फिर बच्चे हो जाते है उनके पालन - पोषण और भविष्य को लेकर चिंतित हो दिन - रात बस रोता ही तो रहता है........
बात अभी यही खत्म नही हो जाती बच्चों की शादी होने के बाद जरुरी नहीं है सुख शांति रहे गृह कलेश और बच्चों की चिंता में रोता ही रहता है.........
अब जीव बहुत कमजोर हो जाता है हताश हो जाता है क्योंकि जीवन मे शुरू से आखिर तक सुख की चाहना में खुद का जीवन पूरी तरह झोंक चुका है। लेकिन अभी भी चैन कहाँ है अब दिन रात इस फिकर में आंसू बहाता है मेरे बाद मेरी मेहनत की जमा पूंजी का क्या होगा बच्चे बर्बाद कर देगे सब कुछ...........
इस कशमकश और रोने धोने में जीव का पूरा जीवन स्वाहा.....
रोना ही है उस परमपिता के लिए रोईये जिसके हम अंश है जिनसे बिछड़े हमें जाने कितने जनम बित गए...... रोना है तो ये सोचकर रोईये फिर कब हम अपने परमपिता से मिलेगे......
रोना है तो ये सोचकर रोईये हम अपने प्रभु को याद नही कर पा रहे है भजन नहीं हो रहा है......
रोना है तो इस डर से रोईये कही प्रभु हम से रूष्ट तो नही हो गए कही हम उन्हें या वो मुझे भूला ना दे.....
रोना है तो उनके दर्शन करके उनका नाम लेकर उनकी मंद मुस्कान को उनकी छवि निहार कर उनके उपकारो को याद कर रोईये और खूब रोईये.....
सिर्फ मेरे ठाकुर की याद में रोना ही सार्थक है वरना तो ये जीवन ही निरर्थक है..!!