*"दो चीजें बहुत दुखदायक हैं, अभिमान और ढेर सारी इच्छाएं।"*
व्यक्ति सुख को प्राप्त करना तो चाहता है, परंतु वह जानता नहीं, कि सुख मिलेगा कैसे? लीजिए, समझ लीजिए, कि सुख कैसे मिलेगा? *"सुख प्राप्ति के लिए पहले यह सोचना है, कि दुख क्यों आ रहा है? उस दुख के कारण को समझना है। यदि दुख के कारण को समझकर उसे हटा देंगे, तो दुख हट जाएगा। उसके बाद सुख का कारण ढूंढेंगे, तो वह भी समझ में आ जाएगा। और यदि सुख का कारण समझकर जुटा लेंगे, तो सुख भी मिल जाएगा।"*
एक दृष्टि से देखा जाए, तो दुख के दो बड़े-बड़े कारण हैं। *"पहला है अभिमान। अभिमानी व्यक्ति की बुद्धि ठीक नहीं चलती। और बुद्धि ठीक न चलने से, वह व्यक्ति कार्य ठीक नहीं करता, बहुत सी गलतियां करता है। जिन गलतियों के करने से उसे सुख नहीं मिलता, बल्कि दुख मिलता है। इसलिए सबसे पहले अपने अभिमान को दूर करें।"*
हम देखते हैं, कि बहुत से लोग अपनी 'मैं' पर ही अड़े रहते हैं। जैसे कि, *"मैं यह हूं। मैं वह हूं। मेरी बात मानो। मेरी बात क्यों नहीं मानते? मेरी इच्छा पूरी क्यों नहीं करते? मुझे दुनिया में कुछ नहीं मिला। लोग मुझे समझते ही नहीं!"* इत्यादि, ये सब वाक्य आपने सुने होंगे। इन सारे वाक्यों के पीछे अभिमान छुपा है। *"व्यक्ति अपने अभिमान को समझ नहीं पा रहा। इसे वह बुरा नहीं मानता। इस कारण से वह अभिमान के कारण गलतियां करता है, और दुखी रहता है।"* ऐसे अभिमानी व्यक्ति से लोग भी थोड़ा दूर रहते हैं। वे उस को प्रोत्साहन समर्थन नहीं देते। वे भी कहते हैं, कि *"हम कोई इसके गुलाम थोड़े ही हैं, जो हम इसकी बात मानें? हम इसकी बात क्यों मानें, यह व्यक्ति हमारी बात क्यों न माने?" "बल्कि दूसरे लोग उसे मूर्ख भी समझते हैं। और उसे सम्मान नहीं देते। क्योंकि जैसे वह अभिमानी व्यक्ति दूसरों से समान चाहता है, ऐसे ही दूसरे भी सब लोग सम्मान चाहते हैं।"* इस कारण से वे उस अभिमानी व्यक्ति का सम्मान नहीं करते। और इसी कारण से वह अभिमानी व्यक्ति दुखी रहता है।
दूसरी बात-- *"लोगों ने अपने मन में बहुत बड़ी-बड़ी इच्छाएं पाल रखी हैं। वे सारी इच्छाएं कभी किसी की पूरी होती नहीं, हुई नहीं, और होंगी भी नहीं। जो इच्छाएं पूरी नहीं हो पाती, वे दुख देती हैं।"*
इसलिए इन दोनों कारणों को दूर करें। अपने अभिमान को दूर करें, और अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण करें। *"उतनी ही इच्छाएं रखें, जो पूरी हो सकती हों। जो पूरी नहीं हो सकती, उन्हें छोड़ दें। बस, फिर देखें। चारों ओर आनंद ही आनंद होगा। किसी से कोई शिकायत नहीं रहेगी।"*