मौकों को पहचानने वाले लोग ही ज़िंदगी में आगे बढ़ते हैं
ईश्वर अपनी ज़िंदगी में आगे बढ़ने तथा अपने आप को साबित करने के लिए हर किसी को हुनर देता है, योग्यता देता है, सभी को बराबर समय, बराबर मौके देता है। लेकिन ये हम पर निर्भर करता है कि हम अपनी योग्यता अपने हुनर का उपयोग किस तरह से करते हैं। हम अपनी ज़िंदगी में मिले मौकों, अवसरों में छिपी संभावनाओं की पहचान कर पाते हैं या नहीं।
जो लोग उन मौकों में छिपी संभानाओं को पहचान जाते हैं। वे अपनी सोच और अपनी काबिलियत से दूसरों से हटकर काम करते हैं और ऐसा काम कर जाते हैं जिससे वे अपनी ज़िंदगी में बहुत आगे बढ़ जाते हैं। और वे हर सम्मान और हर बुलंदी को हासिल करते हैं। और जो लोग मिले हुए मौकों को ऐसे ही जाने देते हैं और कुछ नहीं करते हैं वो अपनी ज़िंदगी में भी कुछ नहीं कर पाते हैं और वहीँ के वहीँ रह जाते हैं
बहुत पुरानी बात है। किसी गाँव में जमींदार रहता था। उसने अपनी मेहनत और ईमानदारी से अपने कारोबार को काफी बढ़ा लिया और काफी संपत्ति इकठ्ठा की। वह हमेशा जरूरतमंदों और गरीबों की हरसंभव मदद करता था तथा अपने धन को अच्छे कार्यों में लगाता था। जब जमींदार बूढ़ा होने लगा तो उसने अपनी संपत्ति तथा कारोबार को अपने बेटों में बांटने का फैसला किया। लेकिन उसे डर था कि कहीं उसके बेटे उसकी वर्षों की मेहनत की कमाई को ऐसे ही ना गँवा दें। उसने फैसला किया कि तीनों में से जो भी बेटा उसकी संपत्ति तथा कारोबार को आगे बढ़ाने लायक होगा तथा अपनी संपत्ति को अच्छे कार्यों में लगाएगा वो ही उसकी संपत्ति का वारिस होगा। लेकिन वह अपनी संपत्ति किसे दे ये उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। तो उसने एक फकीर से सलाह ली। फकीर ने उसे एक तरीका बताया ।
जमींदार ने अपने तीनों बेटों से कहा “कि मैं तीर्थ यात्रा पर जा रहा हूँ और उसने तीनों बेटों को कुछ बीज दिए और कहा कि जब तक मैं वापस आऊं इन बीजों को संभाल कर रखना।” उसके बाद जमींदार तीर्थ यात्रा पर चला गया और काफी समय बाद वापस लौटा।
वापस आकर जमींदार एक-एक कर तीनों बेटों के पास गया। पहले बेटे से उसने पूछा “बेटा! मैंने तुम्हे जो बीज दिए थे, उनका तुमने क्या किया? ”
पहले बेटे ने कहा “ पिताजी कौन से बीज? मुझे तो याद ही नही कि आपने मुझे बीज कब दिए थे?”। जमींदार को थोड़ी निराशा हुई। लेकिन उसने उससे कुछ भी नहीं कहा।
उसके बाद जमींदार ने अपने दूसरे बेटे के पास जाकर भी यही प्रश्र किया। दूसरे बेटे ने अपनी तिजोरी की चाबी जमींदार को दे दी और कहा “पिताजी! मैंने आपकी अमानत को तिजोरी में संभाल कर रखा है।”
जमींदार को फिर निराशा हुई लेकिन उसने उससे भी कुछ नहीं कहा और तीसरे बेटे के पास गया और उससे भी वो ही सवाल किया। तीसरे बेटे ने कहा “पिताजी! आप को मेरे साथ कहीं चलना होगा।” दोनों थोड़ी दूर चले तो सामने एक बगीचा था। तीसरे पुत्र ने कहा “पिताजी! ये रहे आपके बीज।” मैंने आपके दिए हुए बीजों से एक सुन्दर बगीचा तैयार कर दिया।
ये देखकर जमींदार का दिल खुशी से झूम उठा और उसने खुश होकर अपनी सारी संपत्ति अपने तीसरे बेटे के नाम कर दी।
जमींदार के तीनो बेटों को बराबर बीज मिले, बराबर का मौका मिला तथा अपनी सोच और काबिलियत को दिखाने के लिए समय भी बराबर मिला। लेकिन तीन में से दो बेटों ने उस मौके को पहचाना नहीं और उसे ऐसे ही गँवा दिया। जबकि तीसरे बेटे ने अपनी सोच और काबिलियत से उन बीजों से एक सुन्दर बगीचा तैयार कर दिया ।
जिंदगी के हर एक मोड़ पर हमें मौके मिलते रहते हैं। चाहे सुख हो या दुःख हर एक परिस्थिति हमें ज़िंदगी में एक नयी सम्भावना तलाश करने के लिए कहती है। बस अगर हमने वो सम्भावना तलाश ली या उन मौकों को पहचान लिया तो फिर हमें ज़िंदगी में आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता है। हमें हमारी मंज़िल तक पहुँचने के लिए नए नए रास्ते अपने आप मिलने लगेंगे।
अपनी ज़िंदगी के हर एक पल पर नज़र रखें और हर परिस्थिति में चाहे सुख हो या दुःख ज़िंदगी के मिले हर एक मौके को पहचानने की कोशिश करें और उसमें छिपी संभावनाओं को तलाश करने की कोशिश करें। एक दिन आप अपनी ज़िंदगी को बदलने वाले मौके को पहचान जायेंगे और आपको ऐसा आईडिया मिल जायेगा जो आपको सफलता की बुलंदी पर पहुंचा देगा।