*एक गधे ने सिंह को चुनौती दी - 'अगर हिम्मत है, तो आओ मैदान में, हो जाए दो-दो हाथ।' लेकिन सिंह चुपचाप चला गया। एक सियार यह देख- सुन रहा था। उसने कुछ आगे बढ़कर सिंह से पूछा 'महाराज, बात क्या है? एक गधे की चुनौती भी आपने स्वीकार नहीं की ?' सिंह ने कहा- 'अगर उसकी चुनौती स्वीकार करता, तो अफवाह यह उड़ती कि सिंह गधे से लड़ा मेरी भयंकर बदनामी होती। हमारे कुल, परंपरा में ऐसा नहीं हुआ कि गधे से लड़ें। हम सिंह गधे को समाप्त कर सकते हैं, लड़ना क्या है? अगर गधा हारता, तो उसका कोई अपमान नहीं होता; हम जीतते भी, तो कोई सम्मान नहीं होता। लोग कहते, गधे से जीते तो क्या जीते ! और कहीं भूल से गधा जीत जाता, अब गधे ही हैं, इनका भरोसा क्या, तो हम सदा के लिए मारे जाते । इसलिए मैं चुपचाप चला आया।'*
*इसलिए दुश्मन जरा बड़ा चुनें, क्योंकि बड़े शत्रु से लड़ने के लिए आपको पूरी ताकत लगानी पड़ेगी। यह चुनौती, संघर्ष आपको अवसर देगा आत्म-विकास का।*