*कुछ लोग सारा जीवन दुखी ही रहते हैं, क्योंकि उन्हें सोचना नहीं आता,*
*कुछ लोग प्रत्येक परिस्थिति में दुखी रहते हैं, क्योंकि उनके जीवन में संतोष नाम की कोई चीज नहीं होती, उन्हें कोई भी सुविधा दे दीजिए, वे उससे कभी भी संतुष्ट नहीं होते,? जो जो सुविधा मिलती है, जो जो उनकी इच्छा पूरी हो जाती है, वे उस पर ध्यान कम देते हैं, और तुरंत उससे अगली इच्छा अपने मन में उत्पन्न कर लेते हैं, ऐसे लोग कभी भी जीवन में सुखी या संतुष्ट नहीं हो पाते, क्योंकि सोचने का यह तरीक़ा ग़लत है,*
*मनुष्य का बहुत सारा "सुख-दुख" उसके सोचने के ढंग पर निर्भर करता है, यदि किसी मनुष्य को ठीक ढंग से सोचना आता है, तो वह सुखी होकर जीवन जी सकता है, और यदि सोचने का ढंग ठीक नहीं आता, तो वह सदा दुखी ही रहेगा....*
*अपने मन में ईश्वर का धन्यवाद करना चाहिए, कि "हे ईश्वर" ! आपका बहुत-बहुत धन्यवाद है, कि आपने अपनी कृपा से मुझे आपने इतना सब दिया है, मैं इससे बहुत प्रसन्न और "संतुष्ट" हूं.......*
*इस प्रकार से व्यक्ति को सोचना चाहिए, यदि कोई व्यक्ति ऐसा सोचेगा, तो उसे जितनी सुविधाएं मिली हैं, उसकी जितनी इच्छाएं पूरी हुई हैं, वह उनका लाभ उठाएगा और सुखी रहेगा..*
*जिस मनुष्य के हृदय में सच्ची मानवता हो,*
*उसकी सोच हमेशा यही होगी कि...?*
*मुझे मिला हुआ दुःख किसी को नही मिले*
*और मुझे मिला हुआ सुख सबको मिले...*