*परख*
"जो भी ज्वेलरी लेनी है किसी और दुकान से लेंगे वो राजू ज्वेलरी की दुकान से 4 में कहा..
"हां तो रोज रोज गहने कौन लेता है? मैंने थोड़ी भड़ास निकाली तो वो मुस्कुरा दिया..
"सही कहा आपने भैया, और भाभी जी! क्या दिखाऊँ..."
इनके अलावा कुछ और औरतें गहने देख रही थी कि तभी एक और औरत थोड़े सकुचाते हुए आई जो हाथों में कुछ लिए किनारे खड़ी थी। राजू की नजर उस पर गई....
"जी कहिए"
"जी..कुछ पैसों की जरूरत थी..ये कुछ गहने और मंगलसूत्र रखने आयी थी" उसने बिना किसी के तरफ देखे अपनी बात कह दी। दो छोटे कान के गहने और एक पुराना मंगलसूत्र था। राजू ने उसके हाथों से उसे लेकर वजन किया....
"कितने रुपये में रखना है..."
"जी पच्चीस हजार की जरूरत थी।"
मैं मन ही मन सोच रहा था कि कैसी औरत है आज के दिन मंगलसूत्र गिरवी रख रही है की तभी..
"भाभी जी गहने बहुत हल्के हैं मैं मुश्किल से दस हजार दे पाऊंगा।"
"जी मेरे पति का एक्सीडेंट हो गया है, हालत बहुत नाजुक है, थोड़े और ज्यादा मिल जाते तो.." उस औरत की आँखों से दो बूंद लुढ़क गए
राजू ने उस औरत का पता और फोन नम्बर के साथ एक पर्ची बना ली
"ये लीजिए भाभी जी पच्चीस हजार , बाकी के गहने मैं रख लेता हूँ पर ये मंगलसूत्र आप पहन लीजिए, आपके पति जल्दी ठीक हो जाएंगे।"
मैं अवाक रह देखता रहा, आज दिवाली है आज तो कोई दुकानदार उधार नहीं देता, बरबस ही निकल पड़ा.. "भैया तुम आज के दिन भी उधार देते हो।"
"नहीं भैया, बात सिर्फ गहनों और पैसों की हो तो बिलकुल नहीं पर आज बात किसी के ज़िंदगी की है।"
मेरी पत्नी ने ठीक कहा था। मैंने भी आज पहली बार एक जौहरी को देखा जिसे सिर्फ गहनों की नहीं भावनाओं की भी परख है..।