*"गलती हो जाने पर, दूसरों को, एक सीमा तक क्षमा कर देना अच्छी बात है। यह धर्म का लक्षण है।"*
मनुष्य अल्पज्ञ अल्पशक्तिमान और स्वार्थी है। इसलिए उससे जाने अनजाने में गलतियां होती रहती हैं। *"सभी मनुष्य एक जैसे हैं, इसलिए सभी से गलतियां होती रहती हैं।"*
जब कोई दूसरा व्यक्ति आपके प्रति गलती कर देता है, तो आपको उस पर क्रोध आता है। आप उसे दंड देना चाहते हैं। *"परंतु इसी घटना को अब उलटकर देखिए, अर्थात जब आप दूसरे के प्रति कोई गलती कर देते हैं, तब आप नहीं चाहते, कि दूसरा व्यक्ति आपको दंडित करे। तब तो आप यह चाहते हैं, कि दूसरा व्यक्ति मुझे माफ कर दे, दंड न दे।"* यदि आप ऐसा चाहते हैं, कि *"आप द्वारा गलती होने पर दूसरा व्यक्ति आप को दंड न दे, और माफ कर दे। तो यही व्यवहार आपको भी दूसरों के साथ करना चाहिए। आप भी दूसरों को माफ करने का अभ्यास बनाएं। अनजाने में की गई, छोटी मोटी गलतियों को तो माफ करना ही चाहिए।"* यही धर्म का लक्षण है, जो वेदों में बताया गया है। *"महर्षि मनु जी ने भी धर्म के 10 लक्षणों में क्षमा का नाम लिखा है। इसलिए आप भी दूसरों को क्षमा करने का प्रयत्न किया करें।"*
*"जब कोई व्यक्ति बड़ी-बड़ी गलतियां करे, बार-बार करे, और जानबूझकर करे। तब माफ नहीं किया जाता और न ही करना चाहिए।"* ऐसी स्थिति में, न तो आप दूसरे व्यक्ति को माफ करना चाहेंगे, और न ही कोई दूसरा आपको माफ करेगा। क्योंकि सभी आत्माएं एक समान हैं। सभी एक जैसा व्यवहार चाहती हैं।
यदि किसी ने जानबूझकर आपको दुख दिया हो, जानबूझकर आपका विश्वास तोड़ा हो, तब चाहे वह कितनी भी माफी मांगे, कितना भी प्रायश्चित्त करे, तब भी आप उसे माफ नहीं करेंगे। और उस पर पहले जैसा विश्वास भी नहीं करेंगे। *"यही बात आप पर भी लागू होती है। अर्थात् यदि आपने किसी के साथ ऐसा किया, तो वह भी आपको कभी माफ नहीं करेगा। उसका वैसा विश्वास आप पर भी नहीं बनेगा, जैसा कि पहले था।"*
*"इसलिए सावधानी से व्यवहार करें। आपका व्यवहार और सम्मान आपके अपने हाथ में है। जैसा व्यवहार और सम्मान आप दूसरों से चाहते हैं, वैसा ही दूसरों के साथ आप भी करें। यही बुद्धिमत्ता है, और इसी में सुख है।"*