*.बीज से कुछ सीखो, क्योंकि तुम भी बीज हो।*
और तुम इस पृथ्वी पर सर्वाधिक बहुमूल्य बीज हो, क्योंकि तुमसे ही परमात्मा का फूल खिल सकता है।
वह स्वर्ण-कमल तुम्हारी झील में ही खिलेगा।
तुम पर एक बड़ा दायित्व है।
तुम अगर बिना परमात्मा को जाने मर गये तो तुमने अपना दायित्व पूरा न किया।
तुम बीज की तरह ही मर गये; टूटे नहीं, अंकुरित न हुए; फूले नहीं, फले नहीं।
और परितोष, संतोष उसी को मिलता है, जो फूला, जो फला।
देखा है, फूल और फलों से जब वृक्ष लद जाता है, तो उसके आसपास कैसी परितोष की छाया होती है, कैसे आनंद का भाव होता है, परितृप्ति!
आदमी बांझ ही मर जायेगा?
अधिक आदमी बांझ ही मर जाते हैं, जो होने को हुए थे बिना हुए मर जाते हैं।
बीज से कुछ सीखो।
बीज वृक्ष हो सकता है, लेकिन अगर ठीक भूमि न खोजे तो नहीं हो पायेगा। कंकड़-पत्थर जैसा ही रह जायेगा, मुर्दा।
और फिर भूमि खोजनी पड़ती है और भूमि में अपने को गला देना पड़ता है, मिटा देना पड़ता है।
बीज जब मरता है तब वृक्ष होता है।
खोजो कोई स्थल, जहां तुम मर सको, मिट सको।
खोजो कोई भूमि, जहां तुम अपने को समर्पित कर सको।
जहां तुम झुक जाओ और अहंकार गल जाये, वहीं तुम्हारे भीतर से अंकुरण होगा और वह अंकुरण सच्चा जीवन है!
उस अंकुरण से तुम द्विज बनोगे, तुम्हारा दुबारा जन्म होगा।
उसके पहले तुम द्विज नहीं हो, कोई भी द्विज नहीं पैदा होता।
पहला जन्म मां-बाप से होता है, दूसरा जन्म स्वयं को स्वयं से ही देना होता है..