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कहाँ गये तुम सूरज दादा ?
क्यों ली अबकी छुट्टी ज्यादा ?
ठिठुर रहे हैं हम सर्दी से,
कितना पहनें और लबादा ?
दाँत हमारे किटकिट बजते ।
रोज नहाने से हम डरते ।
खेलकूद सब छोड़-छाड़ हम,
ओढ़ रजाई ठंड से लड़ते ।
क्यों देरी से आते हो तुम ?
साँझ भी जल्दी जाते क्यों तुम ?
अपनी धूप भी आप सेंकते,
दिनभर यूँ सुस्ताते क्यों तुम ?
धूप भी देखो कैसी पीली ।
मरियल सी कुछ ढ़ीली-ढ़ीली ।
उमस कहाँ गुम कर दी तुमने
जलते ज्यों माचिस की तीली ।
शेर बने फिरते गर्मी में ।
सिट्टी-पिट्टी गुम सर्दी में ।
घने कुहासे से डरते क्यों ?
आ जाओ ऊनी वर्दी में !
निकल भी जाओ सूरज दादा ।
जिद्द न करो तुम इतना ज्यादा।
साथ तुम्हारे खेलेंगे हम,
लो करते हैं तुमसे वादा ।
कोहरे को अब दूर भगा दो !
गर्म-गर्म किरणें बिखरा दो !
राहत दो ठिठुरे जीवों को,
आ जाओ सबको गरमा दो !