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वृद्धावस्था

11 दिसम्बर 2021

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सोच में है थकन थोड़ी,

अक्ल भी कुछ मन्द सी।

अनुभव पुराने जीर्ण से,

बुद्धि भी कुछ बन्द सी।



है कमर झुकी - झुकी ,

बुझे - बुझे से हैं नयन।

हस्त कम्पित कर रहे,

आज लाठी का चयन।



है जुबां खामोश अब,

मन कहीं छूटा सा है।

रुग्ण और क्षीण तन,

विश्वास भी टूटा सा है।



पूछने वाले भी अब,

सीख देने आ रहे।

जिंदगी ये गोप्य तेरे,

मन बहुत दुखा रहे।



जन्म से ले ज्ञान पर,

अंत सब बिसराव है।

शून्य से  हुआ शुरू,

शून्य ही ठहराव है।।

सुधा देवरानी (स्वरचित)




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