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काला धन

17 फरवरी 2022

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समाज सेवी अन्ना हजारे से लेकर बाबा रामदेव तक एक ही रट लगाये जा रहे हैं कि सरकार काले धन के लिये कारगर उपाय करें । काला धन एक रा‌ष्टीॖय समस्या बन चुका है जिसका यदि समय रहते उन्मूलन नहीं किया गया तो सरकार के लिये सरदर्द बन जायेगा । वैसे तो सरकार काले धन को लेकर बहुत चिंतित हैं। उसे रातों को नींद भी नहीं आती और रोजाना सुबह उठकर वह उबासी लेने लगती है। सारे दिन उसका शरीर टूटता रहता है पर चिंता किसे है ? तुम तो उसकी टांग खिंचाई करो । तुम्हारे अंदर तो मानवता बची ही नहीं है। अब सरकार के नाक तले गेंग रैंप होता है तो सरकार दोषी ! आतंकवादी संसद पर हमला करे तो सरकार दोषी! किसी की बीवी -बेटी भाग गयी तो सरकार दोषी! अब सरकार, सरकार ना हुई  वाचमैन हो गयी! हद हो गयी यार! अब सरकार के पास बहुत सारे काम होते हैं । कोई एक काम तो है नहीं जो उसे कर दिया। हो गयी छुट्टी! 

                            सरकार का काम है कानून बनाना । और बने हुये काम को अमल में लाना । अब यदि जनता को न्याय में देरी होती है तो भी कलेश ! कई सारे न्यायालय खुली ग्रे। न्यायाधीश है, वकील हैं , कोर्ट है, पर केसेज है कि खतम होने का नाम ही नहीं लेते। एक केस सलटाओ तो दूसरे दिन दस केस तैयार ! भई ! अब सबकुछ क्या सरकार ही करेगी ? जनता का भी कोई दायित्व बनता है कि नहीं? बीवी ने मुंह फुला लिया तो आ गये कोर्ट! बेटे-बेटियों से कहा सुनी हो गयी तो चलो कोर्ट!! जैसे वो कोई कोर्ट-कचहरी ना हो कर कोई सब्जी मंडी में सब्जी की दुकान हो गयी ! कि चलो सुबह भी ताजा और फिर शाम को भी ताजा ! अदालतों में आधे से ज्यादा केसेज तो वो है जिन्हें सिर्फ हाथ मिला कर खत्म किया जा सकता है जो दस साल बाद भी किया जाता है। पर नहीं! हमें तो सरकार की खिंचाई करनी है ना ! अब काले धन के ऊपर कानून बनाया जायेगा तो बताओ - काले धन की डेफिनेशन क्या है? अब छोड़ो भी! आप क्यों दिमाग खपाने लगे ! इस काम के लिए अपुन है ना! जैसा कि आप सब जानते हैं कि अंग्रेजों के जमाने से लेकर आज के समय संसार में हिंदुस्तानियों को काला ही समझा जाता था। जब काले लोग भूखे -नंगे रहते थे तो श्री दुनिया को अच्छा लगता था। अब उन्हीं काले लोगों के पास धन आ गया तो लोग उसे काला - धन बोलने लगे । कालो का धन = काला धन ! अब सदा ही हिंदूस्तान की वो छवि तो नहीं रहेगी कि अजी! आप हमें गेहूं देदो । आप हमें विश्व बैंक से पैसा दे दो !! आप ये दे दो, वो दे दो ! और अब रही बात कमाये हुए धन को रखने की तो आप ही बताओ ! जो धन आप कमाते हो उसे रखते कहां हो ? घर में तो नहीं रखते ना ! कहीं बाहर ही रखते हो ! जब आप अपने कमाये धन को बाहर रखते हो तो आपत्ति नहीं और हम जरा सा हमारे धन को बाहर रख दें तो कोहराम मच जाता है। भई! ये तो सरासर ना इंसाफी है! हम अपना धन बाहर क्यों रखते हैं? इसलिये ना ताकि सनद रहे। वक्त जरूरत काम आते । इतनी सपाट डेफिनेशन के बाद तो शक सुबहा होना ही नहीं चाहिये । 

                                 अब आदरणीय हर्षद मेहता, अब्दुल करीम तैलगी और केतन पारेख जैसे इज्जत दार आदमियों को सरकार ने आपके कहने पर पकड़ कर जेल में ठूंस दिया । लेकिन उनके द्वारा किये गये घोटालों की रकम का आप हिसाब मांगेंगे तो सरकार के लिये दिक्कत तो होगी ही ना ! आप ने उस समय तो ये नहीं बताया कि इनको जेल में मत ठूसो पहले इनसे रकम वसूल कर लो! अब सरकार तो उस सिद्धांत पर काम कर रही है ना  कि कोई पागल कुत्ता किसी को काट ले तो पहले तो 15दिन उस कुत्ते की रूखाली करो कि मर- खप‌ ना जाये । यह तो नहीं करते कि डायरी लेकर मुहल्ले में चक्कर काटे कि फलॉ घर से वो कुत्ता कितना खाकर आया है या उसके रिश्तेदार कहां कहां , कौन कौन सी जगह मुंह मार रहे हैं। हमने तो वहीं किया जो सिद्धांत है। अब हमारे घर के पास में रहने वाला कालू नाई बाल काटता है। अब ये तो कोई बात नहीं हुई कि हम उससे रोजाना पूछते फिरें कि भाई और क्या क्या काट रहे हैं तो हम कर भी क्या सकते हैं ‌पूछेगे तो कह देगा -50 लाख में कटरीना कैफ के सिर के बाल काटे थे। और एक-एक बाल ठेले पर रख कर  2-2 हजार में बेच कर 60 लाख और कमाये । बन गया करोड़ पति ! बिगाड़ ले मेरा !! अब काले -काले बालों को कतर कर करोड़ पति बन गया तो हो गयी ना तुम्हारे लिये काली कमाई ! ठूंस दो जेल मे ! बिठा दो कमेटी । आम आदमी तो भिखारी ही रहे तुम्हारे हिसाब से!  लेकिन "अब पछताये होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत" का सहारा लेते हुए इस ज्वलंत समस्या का समाधान भी हम "गीता" में ही ढूंढने लगे। 

                  आम आदमी के नाम पर याद आया कि सरकार की निगाहों में सबसे बड़ा चोर तो यही है । ये तन का भी काला है तो मन का भी काला है । अतः इसकी जेब में जो भी पैसा है वो सफ़ेद कैसे हो सकता है? लिहाजा जब भी मर्जी होती है। सरकार के नुमाइंदे इसे जबरदस्ती पकड़ कर इससे काले धन की वसूली करते रहते हैं।  चाहे वो ट्रेफिक  का हवलदार  हो, चाहे मुन्सिपाटी का कारिदां । चाहे अदालत का वकील होता अस्पताल का चपरासी!! हर कोई उसके कालेधन के पीछे पड़ा रहता है और गाहे -ब-गाहे उगाही करता रहता है। उस प्राणी के ऊपर तो सरकार का विश्वास बिल्कुल भी नहीं है। और हो भी कैसे? ये ट्रेन के टॉयलेट से लौटा तक चुरा लेता है। इसलिऐउसे बांध कर रखते हैं ये बैंक में जायेगा तो पेन चुरा लेता है। तिहाजा उसे भी बांध कर रखते हैं।जब ये दो कौड़ी की चींजे भी नहीं छोड़ता तो इसके पास पैसा आता कहां से है? यह पता लगाने के लिये सरकार मरीजा रही है। पर ये पट्ठा हैं कि बताता ही नहीं कि इसके पास काला धन आया तो आया कहां से? बस इसी उधेड़ बुन में सरकार और आम आदमी के बीच आंख मिचौली, चूहे - बिल्ली का खेल चल रहा है। सरकार सोचती है कि चलो दो पैसे ही सही , वसूल तो किये । और आम आदमी सोचता है कि चलो दो पैसे राह चलते भिखारियों को दान कर दिये , और क्या? 

                                  सरकार के लिये काला धन बाहर निकालना इसलिये भी जरूरी है कि पता नहीं कब यह कालेधन वाले लोग सरकार को इस धन से खरीद कर और किसी दूसरे मुल्क को बेच दे । आखिर सरकार को गिराने , उठाने में इस कालेधन का ही तो महत्त्वपूर्ण योगदान होता है तो सरकार को हमेशा चौकान्ना रहना पड़ता है। अब यह तो हो ही नहीं सकता कि सरकार अपने हाथ पैर तुडा़ती रहे । हर दो चार साल में (प्लास्टर)(इलेक्शन) करवाती रहे फिर भी ढंग से नहीं चल पाये और लंगड़ाती रहे । इसलिये हम सब का दायित्व बनता है कि हम हमारी नामी बेनामी संपत्तियों , जमा पूंजियो , बीवीयां चाहे  गोरी या काली ,सबके बारे में सरकार को पहले से बताऐ । सरकार को उससे मदद मिलेगी और वह तुम्हारी तरफ से  तो कम से कम निश्चित हो जायेगी कि ये मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकता। अब सरकारी आदमी हो भाई ! तो सरकार के लिये इतना तो कर ही सकते हो ना / या इसमें भी तुम्हारी नानी मर जाती है। जब तब लगे बस टेक्स बचाने । वेबकूफ कहीं के !! अमां -जब तुम्हारी तनख्वाह सरकार से आशा करते हो वो तुम्हारी तनख्वाह बढा़ती रहे और एक तुम हो कि टेक्स चोरी करते हो । ये तो नहीं ना चलेगा । अब तुम्हें कैसे समझाये कि सरकार का हुशन तुम्हारे द्वारा अदा किये गये टेक्स से ही निखरता हैं। जितना ज्यादा टैक्स तुम जमा कराओगे सरकार की ख़ूबसूरती उतनी ही बढ़ती जायेगी। तुम्हें काली कलूटी सरकार चाहिये  या खूबसूरत ! डिसाइड योर सेल्फ!

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