हाँ, मेरी नज़र ब्रा के स्ट्रैप पर जा के अटक जाती है, जब ब्रा और पैंटी को टंगा हुआ देखता हूँ तो मेरे आँखों में भी नशा सा छा जाता हैं. जो बची-खुची फीलिंग्स रहती हैं उनको मेरे दोस्त बोल- बोल कर के जगा देते हैं. और कौन नहीं देखता है, जब सामने कोई भी चीज आ जाये तो हम देखते हैं.
जानवरों के प्रति जागरूक हैं, तो फिर इंसानों से इतनी बेरुखी क्यों है, साहेब?-किसी के दुख में शामिल होने से उसका दर्द दूर नहीं होता है. किसी केअर्थी को कंधा देने से उसके परिवार की कमी दूर नहीं होता है पर हां, विकट घड़ी मेंकिसी को भी सहारा देन