करवटें बदलतें रहे रात भर हम.... आंखों की पलकों को बंद किए थे हम.... पलकें में बसी यादें जो अतीत पर भारी थी.... नींद की जुंबिश ठहर ठहर कर गुनगुनी रही थी.... सलवटें चादर की बयां कर रही थी कोई पहलू में बैठकर नजर भर देख रहा था ये मेरा अंतर्मन था या भ्रम पर दिल पर भारी लगता था स्वरचित ....
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