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कसौटी

20 अप्रैल 2022

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तिरस्कार कालिमा कलित हैं,

अविश्वास-सी पिच्छल हैं।

कौन कसौटी पर ठहरेगा?

किसमें प्रचुर मनोबल है?

तपा चुके हो विरह वह्नि में,

काम जँचाने का न इसे।

शुद्ध सुवर्ण हृदय है प्रियतम!

तुमको शंका केवल है॥

बिका हुआ है जीवन धन यह

कब का तेरे हाथो मे।

बिना मूल्य का , हैं अमूल्य यह

ले लो इसे, नही छल हैं।

कृपा कटाक्ष अलम् हैं केवल,

कोरदार या कोमल हो।

कट जावे तो सुख पावेगा,

बार-बार यह विह्वल हैं॥

सौदा कर लो बात मान लो,

फिर पीछे पछता लेना।

खरी वस्तु हैं, कहीं न इसमें

बाल बराबर भी बल हैं ॥

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रचनाएँ
झरना
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झरना की कविताओं में कवि के आगामी विकास का आभास प्राप्त हो जाता है और इसी कारण समीक्षक इसे छायावाद युग का एक महत्त्वपूर्ण सोपान मानते हैं। झरना की अधिकांश कविताएँ १९१४-१९१७ ई० के बीच लिखी गईं है। झरना कवि के यौवनकाल की रचना है और इसकी कविताओं से उसकी मनोदशा का बोध होता है।
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परिचय

20 अप्रैल 2022
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उषा का प्राची में अभ्यास, सरोरुह का सर बीच विकास॥ कौन परिचय? था क्या सम्बन्ध? गगन मंडल में अरुण विलास॥ रहे रजनी मे कहाँ मिलिन्द? सरोवर बीच खिला अरविन्द। कौन परिचय? था क्या सम्बन्ध? मधुर मधुमय

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झरना

20 अप्रैल 2022
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मधुर हैं स्रोत मधुर हैं लहरी न हैं उत्पात, छटा हैं छहरी मनोहर झरना। कठिन गिरि कहाँ विदारित करना बात कुछ छिपी हुई हैं गहरी मधुर हैं स्रोत मधुर हैं लहरी कल्पनातीत काल की घटना हृदय को लगी अचान

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अव्यवस्थित

20 अप्रैल 2022
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विश्व के नीरव निर्जन में। जब करता हूँ बेकल, चंचल, मानस को कुछ शान्त, होती है कुछ ऐसी हलचल, हो जाता हैं भ्रान्त, भटकता हैं भ्रम के बन में, विश्व के कुसुमित कानन में। जब लेता हूँ आभारी हो,

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पावस-प्रभात

20 अप्रैल 2022
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नव तमाल श्यामल नीरद माला भली श्रावण की राका रजनी में घिर चुकी, अब उसके कुछ बचे अंश आकाश में भूले भटके पथिक सदृश हैं घूमते। अर्ध रात्री में खिली हुई थी मालती, उस पर से जो विछल पड़ा था, वह चपल मलय

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किरण

20 अप्रैल 2022
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किरण! तुम क्यों बिखरी हो आज, रँगी हो तुम किसके अनुराग, स्वर्ण सरजित किंजल्क समान, उड़ाती हो परमाणु पराग। धरा पर झुकी प्रार्थना सदृश, मधुर मुरली-सी फिर भी मौन, किसी अज्ञात विश्व की विकल वेदना-

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विषाद

20 अप्रैल 2022
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कौन, प्रकृति के करुण काव्य-सा, वृक्ष-पत्र की मधु छाया में। लिखा हुआ-सा अचल पड़ा हैं, अमृत सदृश नश्वर काया में। अखिल विश्व के कोलाहल से, दूर सुदूर निभृत निर्जन में। गोधूली के मलिनांचल में, कौन

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बालू की बेला

20 अप्रैल 2022
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आँख बचाकर न किरकिरा कर दो इस जीवन का मेला। कहाँ मिलोगे? किसी विजन में? - न हो भीड़ का जब रेला॥ दूर! कहाँ तक दूर? थका भरपूर चूर सब अंग हुआ। दुर्गम पथ मे विरथ दौड़कर खेल न था मैने खेला। कुछ कहते

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चिह्न

20 अप्रैल 2022
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इन अनन्त पथ के कितने ही, छोड़ छोड़ विश्राम-स्थान, आये थे हम विकल देखने, नव वसन्त का सुन्दर मान। मानवता के निर्जन बन मे जड़ थी प्रकृति शान्त था व्योम, तपती थी मध्याह्न-किरण-सी प्राणों की गति लोम व

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दीप

20 अप्रैल 2022
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धूसर सन्ध्या चली आ रही थी अधिकार जमाने को, अन्धकार अवसाद कालिमा लिये रहा बरसाने को। गिरि संकट के जीवन-सोता मन मारे चुप बहता था, कल कल नाद नही था उसमें मन की बात न कहता था। इसे जाह्नवी-सी आदर द

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कब?

20 अप्रैल 2022
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शून्य हृदय में प्रेम-जलद-माला कब फिर घिर आवेगी? वर्षा इन आँखों से होगी, कब हरियाली छावेगी? रिक्त हो रही मधु से सौरभ सूख रहा है आतप हैं; सुमन कली खिलकर कब अपनी पंखुड़ियाँ बिखरावेगी? लम्बी विश्व

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स्वभाव

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दूर हटे रहते थे हम तो आप ही क्यों परिचित हो गये ? न थे जब चाहते हम मिलना तुमसे। न हृदय में वेग था स्वयं दिखा कर सुन्दर हृदय मिला दिया दूध और पानी-सी; अब फिर क्या हुआ देकर जो कि खटाई फाड़ा चाहते

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असंतोष

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हरित वन कुसुमित हैं द्रुम-वृन्द; बरसता हैं मलयज मकरन्द। स्नेह मय सुधा दीप हैं चन्द, खेलता शिशु होकर आनन्द। क्षुद्र ग्रह किन्तु सुख मूल; उसी में मानव जाता भूल। नील नभ में शोभन विस्तार, प्रकृति

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प्रत्याशा

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मन्द पवन बह रहा अँधेरी रात हैं। आज अकेले निर्जन गृह में क्लान्त हो स्थित हूँ, प्रत्याशा में मैं तो प्राणहीन। शिथिल विपंची मिली विरह संगीत से बजने लगी उदास पहाड़ी रागिनी। कहते हो- "उत्कंठा तेरी कप

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दर्शन

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जीवन-नाव अँधेरे अन्धड़ मे चली। अद्भूत परिवर्तन यह कैसा हो चला। निर्मल जल पर सुधा भरी है चन्द्रिका, बिछल पड़ी, मेरी छोटी-सी नाव भी। वंशी की स्वर लहरी नीरव व्योम में गूँज रही हैं, परिमल पूरित पवन भ

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हृदय का सौंदर्य

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नदी की विस्तृत वेला शान्त, अरुण मंडल का स्वर्ण विलास; निशा का नीरव चन्द्र-विनोद, कुसुम का हँसते हुए विकास। एक से एक मनोहर दृश्य, प्रकृति की क्रीड़ा के सब छंद; सृष्टि में सब कुछ हैं अभिराम, सभ

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होली की रात

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बरसते हो तारों के फूल छिपे तुम नील पटी में कौन? उड़ रही है सौरभ की धूल कोकिला कैसे रहती मीन। चाँदनी धुली हुई हैं आज बिछलते है तितली के पंख। सम्हलकर, मिलकर बजते साज मधुर उठती हैं तान असंख।

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रत्न

20 अप्रैल 2022
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मिल गया था पथ में वह रत्न। किन्तु मैने फिर किया न यत्न॥ पहल न उसमे था बना, चढ़ा न रहा खराद। स्वाभाविकता मे छिपा, न था कलंक विषाद॥ चमक थी, न थी तड़प की झोंक। रहा केवल मधु स्निग्धालोक॥ मूल्य थ

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कुछ नहीं

20 अप्रैल 2022
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हँसी आती हैं मुझको तभी, जब कि यह कहता कोई कहीं अरे सच, वह तो हैं कंगाल, अमुक धन उसके पास नहीं। सकल निधियों का वह आधार, प्रमाता अखिल विश्व का सत्य, लिये सब उसके बैठा पास, उसे आवश्यकता ही नही।

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कुछ नहीं

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हँसी आती हैं मुझको तभी, जब कि यह कहता कोई कहीं अरे सच, वह तो हैं कंगाल, अमुक धन उसके पास नहीं। सकल निधियों का वह आधार, प्रमाता अखिल विश्व का सत्य, लिये सब उसके बैठा पास, उसे आवश्यकता ही नही।

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कसौटी

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तिरस्कार कालिमा कलित हैं, अविश्वास-सी पिच्छल हैं। कौन कसौटी पर ठहरेगा? किसमें प्रचुर मनोबल है? तपा चुके हो विरह वह्नि में, काम जँचाने का न इसे। शुद्ध सुवर्ण हृदय है प्रियतम! तुमको शंका केवल ह

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अतिथि

20 अप्रैल 2022
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दूर हटे रहते थे हम तो आप ही क्यों परिचित हो गये ? न थे जब चाहते हम मिलना तुमसे। न हृदय में वेग था स्वयं दिखा कर सुन्दर हृदय मिला दिया दूध और पानी-सी; अब फिर क्या हुआ  देकर जो कि खटाई फाड़ा चाहत

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