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काशीनाथ सिंह के बारे में

काशीनाथ सिंह का जन्म वाराणसी (अब चंदौली) के जीयनपुर गाँव में 1 जनवरी, सन् 1937 को हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा उनके पैत्रिक गाँव जीयनपुर के पास के विद्यालयों में ही हुई। सन् 1953 में हाईस्कूल की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुए। उच्च शिक्षा के लिए काशीनाथ सिंह बनारस चले आये जहाँ काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से उन्होंने स्नातक, परास्नातक (1959) और पी-एच०डी० (1963) की उपाधियाँ प्राप्त कीं। हिन्दी साहित्य की साठोत्तरी पीढ़ी के प्रमुख कहानीकार, उपन्यासकार एवं संस्मरण-लेखक हैं। काशीनाथ सिंह ने लंबे समय तक काशी हिंदू विश्वविद्यालय में हिन्दी साहित्य के प्रोफेसर के रूप में अध्यापन कार्य किया। सन् 2011 में उन्हें रेहन पर रग्घू (उपन्यास) के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार प्रदान किया गया। उन्हें उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा राज्य में साहित्य के सर्वोच्च सम्मान भारत भारती से भी सम्मानित किया जा चुका है।काशीनाथ सिंह साहित्यिक व्यक्तित्वों के जीवन से सम्बद्ध संस्मरण-लेखन की अपनी अनूठी शैली के लिए भी जाने जाते हैं। उनके संस्मरणों को शरद जोशी पुरस्कार-प्रप्त 'याद हो कि न याद हो' तथा 'आछे दिन पाछे गये' में संकलित किया गया है। नामवर सिंह के जीवन पर केंद्रित संस्मरण-पुस्तक है 'घर का जोगी जोगड़ा'। 'काशी का अस्सी' के अंशों को प्रसिद्ध निर्देशक उषा गांगुली द्वारा रंगमंच पर प्रस्तुत किया गया है और इसी उपन्यास पर चंद्रप्रकाश द्विवेदी द्वारा फीचर फिल्म मोहल्ला अस्सी का भी निर्माण किया जा चुका है। काशीनाथ सिंह के व्यक्तित्व के गठन में अनेक गाँव की भी विशेष भूमिका रही है। वे स्वयं कहते हैं कि ‘‘जिसे हम प्रकृति कहते हैं उस प्राकृतिक सौन्दर्य से भरापूरा गाँव था। इसके सिवा शादी-ब्याह के मौकों पर, तीज-त्यौहार पर कभी-कभी आते थे- नाई-कहार जो किस्से कहानियाँ सुनाया करते थे- रात-रात भर। उन्हें सुनने में मेरी

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काशीनाथ सिंह की पुस्तकें

काशीनाथ सिंह की प्रसिद्ध कहानियाँ

काशीनाथ सिंह की प्रसिद्ध कहानियाँ

ध्वस्त होते पुराने समाज, व्यक्ति-मूल्यों तथा नई आकांक्षाओं के बीच जिस अर्थद्वन्द को जन-सामान्य झेल रहा है, उसकी टकराहटों से उपजी, भयावह अन्तःसंघर्ष को रेखांकित करती हुई ये कहानियों पाठक को सहज ही अपनी-सी लगने लगती हैं। घर का जोगी जोगड़ा आन गाँव का स

4 पाठक
6 रचनाएँ

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काशीनाथ सिंह की प्रसिद्ध कहानियाँ

काशीनाथ सिंह की प्रसिद्ध कहानियाँ

ध्वस्त होते पुराने समाज, व्यक्ति-मूल्यों तथा नई आकांक्षाओं के बीच जिस अर्थद्वन्द को जन-सामान्य झेल रहा है, उसकी टकराहटों से उपजी, भयावह अन्तःसंघर्ष को रेखांकित करती हुई ये कहानियों पाठक को सहज ही अपनी-सी लगने लगती हैं। घर का जोगी जोगड़ा आन गाँव का स

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रेहन पर रग्घू

रेहन पर रग्घू

रेहन पर रग्घू प्रख्यात कथाकार काशीनाथ सिंह की रचना-यात्रा का नव्य शिखर है। भूमंडलीकरण के परिणामस्वरूप संवेदना, सम्बन्ध और सामूहिकता की दुनिया मे जो निर्मम ध्वंस हुआ है- तब्दीलियों का जो तूफान निर्मित हुआ है- उसका प्रामाणिक और गहन अंकन है रेहन पर रग्घ

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रेहन पर रग्घू

रेहन पर रग्घू

रेहन पर रग्घू प्रख्यात कथाकार काशीनाथ सिंह की रचना-यात्रा का नव्य शिखर है। भूमंडलीकरण के परिणामस्वरूप संवेदना, सम्बन्ध और सामूहिकता की दुनिया मे जो निर्मम ध्वंस हुआ है- तब्दीलियों का जो तूफान निर्मित हुआ है- उसका प्रामाणिक और गहन अंकन है रेहन पर रग्घ

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काशीनाथ सिंह के लेख

रवींद्र कालिया को भूलना मुश्किल

22 जुलाई 2022
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एक पीढ़ी के चार यार थे ज्ञानरंजन, दूधनाथ सिंह, मैं और रवींद्र कालिया। चार यार के नाम से ये कुख्यात थे। 50 वर्ष की इस दोस्ती में कालिया सबसे छोटा था। खुशमिजाज, जीवंत और भावुक लेखक। कालिया से मेरी पहली

घर का जोगी जोगड़ा

22 जुलाई 2022
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शायद ही मेरी कोई ऐसी कहानी हो जो भैया को पसन्द हो लेकिन ऐसा संस्मरण और कथा-रिपोर्ताज भी शायद ही हो जो उन्हें नापसन्द हो।  यह कहते हुए मुझे गर्व हो रहा है कि वे मेरे बड़े भाई ही नहीं, कथागुरु भी हैं।

जंगल जातकम

22 जुलाई 2022
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जंगल ! सब जानते हैं कि आदमी का जंगल से आदिम और जन्म का रिश्ता है और वह उसे बेहद प्यार करता है। लेकिन जब मैं जंगल कहूँ तो उसका मतलब है - सिर्फ जंगल। यह अपने आप में समुद्र और पहाड़ की तरह काफी डरावना,

सुख

22 जुलाई 2022
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भोला बाबू को नौकरी से वापस आए एक हफ्ता भी नहीं हुआ था कि एक घटना हो गई।  वे कमरे में पड़े अखबार पढ़ रहे थे। एक शाम खिड़की से कोई किरण आई और उनके गंजे सिर पर पड़ रही। जैसे वह किसी नन्हे बच्चे की हथेली

अपना रास्ता लो बाबा

22 जुलाई 2022
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जिस समय देवनाथ मेवालाल की पान की दुकान पर ‘विल्स फ़िल्टर्ड’ का पैकेट ख़रीद रहे थे उसी समय बग़लवाली दुकान से एक आवाज़ सुनाई पड़ी जो उस गली का नाम पूछ रही थी, जिसमें वे रहते थे।  हालाँकि उस गली में अके

तीन काल-कथा

22 जुलाई 2022
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अकाल  यह वाक़या दुद्धी तहसील के एक परिवार का है।  पिछले रोज़ चार दिनों से ग़ायब मर्द पिनपिनाया हुआ घर आता है और दरवाज़े से आवाज़ देता है। अंदर से पैर घसीटती हुई उसकी औरत निकलती है। मर्द अपनी धोती की

भाग 29

22 जुलाई 2022
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ज्यादा नहीं, हफ्ते दस दिन लगे सोनल को इस घर के एकांत और सन्नाटे के हिसाब से खुद को ढालने में! और जब ढल गई तब मजा आने लगा! अपने 'अकेलेपन' को एंज्वाय करने लगी। वह डेढ़-दो बिस्वे की रियासत की रानी थी -

भाग 28

22 जुलाई 2022
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रघुनाथ को कुछ पता नहीं कि वे अपने कमरे में कैसे पहुँचे ? कौन ले गया? कब ले गया? कैसे ले गया? कपड़े किसने उतारे? बदन किसने पोंछा और तीस साल पुराना खादी आश्रमवाला वह गाउन या ओवरकोट किसने पहनाया जिसके रो

भाग 27

22 जुलाई 2022
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जनवरी की वह शाम कभी नहीं भूलेगी! शाम तो मौसम ने कर दिया था वरना थी दोपहर! थोड़ी देर पहले धूप थी। उन्होंने खाना खाया था और खा कर अभी अपने कमरे में लेटे ही थे कि सहसा अंधड़। घर के सारे खुले खिड़की-दरवा

भाग 26

22 जुलाई 2022
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जीवनाथ वर्मा जाते-जाते एक नई मुसीबत खड़ी कर गए थे यह कहते हुए कि अपनों के लिए बहुत जी चुके रग्घू, अब अपने लिए जियो! यह वह बात थी जो कभी उनके अपने दिमाग में ही नहीं आई! अपनों से अलग भी अपना कुछ होता ह

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